Thursday 1 March 2018

मप्र बजट : लेकिन पैसा बंटेगा तो भ्रष्ट नौकरशाही के हाथ से ही

गत दिवस जब मप्र विधानसभा में वित्तमंत्री जयंत मलैया 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के लिए किसानों और कर्मचारियों के लिए सौगातों और राहतों का पिटारा खोल रहे थे उसी समय मुंगावली और कोलारस नामक दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव की मतगणना से भाजपा के पराजय के संकेत आने लगे थे। ऐसा लगता है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को नतीजों का पूर्वानुमान हो चुका था तभी उनकी सरकार के मौजूदा कार्यकाल के इस अंतिम बजट में किसानों और कर्मचारियों के साथ-साथ युवाओं विशेष रूप से विद्यार्थियों को लुभाने वाले प्रावधान किये गए हैं। श्री मलैया अपने पूर्ववर्ती वित्तमंत्री राघवजी भाई जैसे कुशल वित्त प्रबंधक तो नहीं माने जाते लेकिन एक उद्योगपति और व्यवसायी परिवार से आने की वजह से उन्हें काम धंधे की अच्छी समझ जरूर है। दूसरी तरफ  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कृषक पृष्ठभूमि से होने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र पर अधिक ध्यान देते हैं। इसके अलावा शहरी मध्यम वर्ग भाजपा का परंपरागत समर्थक माना जाता है। मतदान की आयु घटाकर 18 वर्ष करने के बाद से युवा वर्ग भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने लगा है। इस बजट के जरिये शिवराज सरकार ने उक्त सभी वर्गों को एक साथ साधने का प्रयास किया है। अर्थशास्त्र के ज्ञाताओं को भले ये लग रहा हो कि इन सबके लिए पैसा कहां से आएगा लेकिन चुनावी साल में कोई सरकार इसकी चिंता नहीं करती और इसीलिए ये सोचना बेमानी है कि श्री मलैया पहले से भारी कर्ज में डूबे होने के बाद भी बजट में दी जानी वाली भारी-भरकम सौगातों के लिए पैसे का जुगाड़ आखिर करेंगे कैसे? यदि चुनाव रूपी तलवार सिर पर नहीं लटकती होती तो हो सकता है वित्तमंत्री का काइयांपन जारी रहता। चित्रकूट उपचुनाव के बाद हालिया स्थानीय निकायों के चुनाव परिणामों के आशानुकूल नहीं रहने से भी मुख्यमंत्री मानसिक दबाव में थे। मुंगावली और कोलारस में उन्होंने मेहनत तो जी तोड़ की किन्तु वे ही नहीं पूरी पार्टी जानती थी कि वे सब हारी हुई लड़ाई लड़ रहे थे। इसीलिए श्री मलैया ने बजट को अर्थशास्त्रीय सोच से परे हटकर विशुद्ध राजनीतिक आधार देने की कोशिश की जिससे विधानसभा  चुनाव को किसी भी तरह से जीता जा सके। प्रश्न ये है कि शिवराज सिंह और वित्तमंत्री प्रावधान कितने भी आकर्षक और जनहितकारी क्यों न कर लें किन्तु जिस निकम्मी और सिर से पाँव तक भ्रष्ट नौकरशाही के जिम्मे बजट की घोषणाओं को अमली जामा पहिनाने का काम है क्या उसकी कार्य संस्कृति बदलेगी ? मुख्यमंत्री ने एक दशक से भी ज्यादा के शासन में स्वयं की जो संवेदनशील और जन हितकारी छवि बनाई थी उसका सत्यानाश करने का काम इसी नौकरशाही ने किया है जो जनता की नाराजगी मुख्यमंत्री तक पहुंचाने की बजाय उन्हें खुशफहमी में बनाये रखती है। अच्छी नीतियां और नीयत भी किसी शासक को अलोकप्रिय बना देती हैं यदि उनका क्रियान्वयन ईमानदारी से न हो। मप्र सरकार ने किसानों के लिये जितनी योजनाएं बनाईं उनको सही ढंग से लागू किया गया होता तो किसानों के बीच इस सरकार के प्रति जो नाराजगी दिखाई दे रही है वह शायद न होती। ऐसी स्थिति में जब प्रदेश सरकार को छह महीने बाद जनता की अदालत में पेश होना हो तब इस तरह का माहौल उसकी चिंता बढ़ाने वाला है। गत दिवस जो बजट प्रस्तुत हुआ उसमें किसानों पर जो राहत बरसाई गई वह हर तरह से प्रशंसनीय है लेकिन पिछले अनुभव बताते हैं कि किसानों तक पहुंचने वाली सरकारी मदद भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाती है। अब जबकि चुनाव में पूरा प्रशासनिक अमला व्यस्त होता जाएगा और आचार संहिता के चलते अंतिम दौर में निर्णय लेने की सरकार की स्वतंत्रता  जाती रहेगी तब इस बजट के अच्छे प्रावधान भी किसानों सहित समाज के अन्य वर्गों को किस तरह प्रभावित कर सकेंगे ये यक्ष प्रश्न है। शिवराज सिंह यूँ तो जनता के बीच सदैव बने रहते हैं लेकिन सरकारी सौगातों और राहतों का वितरण जिस सरकारी अमले के माध्यम से किया जाता है उसके पूरी तरह निर्मम और निरंकुश होने से वे बजाय प्रशंसा के सरकार को कोसने का कारण बन जाती हैं। ये सब देखते हुए यदि मुख्यमंत्री व्यक्तिगत तौर पर रुचि लेकर बजट प्रस्तावों का उसकी मूल भावनाओं के अनुरूप अक्षरश: पालन नहीं करवा सके तो फिर चुनाव रुपी वैतरणी पार करना भाजपा के लिए कठिन हो जाएगा। जनता का मूड इन दिनों बेहद अस्थिर और तात्कालिक होता जा रहा है। इसलिए अब शिवराज सिंह के समक्ष ये चुनौती है कि वे बजट में की गई घोषणाओं को हवा-हवाई होने से बचाते हुए जमीन पर उतारने के लिए गम्भीर प्रयास करें वरना सत्ता विरोधी रुझान की जो झलक चित्रकूट के बाद मुंगावली और कोलारस में दिखाई दी वह आगामी नवम्बर में और बड़े रूप में सामने आ सकती है। गुजरात चुनाव में ये बात साफ हो चुकी है कि मतदाताओं को अपनी जेब में रखने की सोच नुकसानदेह होती है। मप्र में चूँकि शिवराज सिंह ही भाजपा का चेहरा होंगे इसलिए अब उन्हें ही ये देखना पड़ेगा कि किसान, कर्मचारी, युवा, महिलाएं, वृद्ध, गरीब सभी वर्गों को बजट में दी गईं सौगातों का लाभ ईमानदारी और सरलता से मिल सके। यदि मुख्यमंत्री अब भी हद दर्जे तक बेईमान हो चुके सरकारी अमले के भरोसे बैठे रहे तो फिर भाजपा का भगवान ही मालिक है। रही बात जयंत मलैया द्वारा प्रस्तुत बजट की तो मौजूदा परस्थितियों में वे और कर भी क्या सकते थे?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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