Wednesday 7 March 2018

श्रीलंका की लपटें कहीं हमें भी न झुलसा दें


श्रीलंका का सबसे खूबसूरत शहर कैंडी इन दिनों साम्प्रदायिक हिंसा की आग में जल रहा है। हालात इस हद तक बिगड़े कि देश में आपातकाल लगाना पड़ गया। तमिल उग्रवादी संगठन ( लिट्टे) के खात्मे के बाद बीते अनेक वर्षों से श्रीलंका में शांति कायम रहने से वह विकास की राह पर तेजी से बढऩे लगा। कानून-व्यवस्था की बेहतर स्थिति के कारण ही इस टापूनुमा देश के विदेशी पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई जिससे अर्थव्यवस्था को भी पंख लगने शुरू हो गए। बौद्ध धर्मावलंबी सिंहली वहां बहुसंख्यक हैं वहीं दूसरी सबसे बड़ी आबादी तमिलभाषी हिंदुओं की है और फिर आते हैं मुस्लिम। उत्तरी श्रीलंका में पृथक तमिल राष्ट्र के लिए चले लम्बे सशस्त्र संघर्ष के बाद भी देश के अन्य हिस्सों में तमिल या हिन्दू सुरक्षित रह रहे हैं। चाय बागानों में कार्यरत अधिकतर श्रमिक भी तमिलभाषी ही हैं। बौद्ध और हिंदुओं के बीच समन्वय का ही उदाहरण है कि कैंडी सहित अनेक बड़े मंदिर परिसरों के भीतर बौद्ध और हिन्दू दोनों के उपासना स्थल हैं जिनमें श्रद्धालु इच्छानुसार पूजा-अर्चना करते हैं। रामकृष्ण मिशन और चिन्मय मिशन जैसी हिन्दू संस्थाएं भी वहां सक्रिय हैं। ऐसे में अचानक ऐसा क्या हो गया कि शान्ति का टापू बनता जा रहा श्रीलंका साम्प्रदायिक झगड़ों की चपेट  में आ गया और हालात आपातकाल लगाने जैसे बन गए। जो खबरें सामने आईं हैं उनके मुताबिक इसकी तह में बौद्ध धर्म के अनुयायी सिंहली और मुस्लिमों के बीच हुआ विवाद है। छोटे से विवाद के बाद सिंहली व्यक्ति की हत्या मुस्लिमों द्वारा कर दिए जाने से तनाव इस हद तक बढ़ा कि पूरा देश उसकी चपेट में आ गया। जो जानकारी छन-छनकर आ रही है उसके अनुसार ये स्थितियां एकाएक उत्पन्न नहीं हुईं अपितु उनके पीछे देश में मुस्लिम आबादी के बढऩे के साथ ही उनकी सम्पन्नता भी है जो अरब देशों में नौकरी कर रहे श्रीलंकाई मुस्लिम युवकों द्वारा की जा रही कमाई का नतीजा है। ज्यों-ज्यों मुसलमान संख्या और धनबल में मज़बूत होते जा रहे हैं त्यों-त्यों उनका दबदबा भी बढऩे लगा और देश में मदरसों तथा मस्जिदों की संख्या भी बढऩे लगी। आग में घी का काम किया म्यांमार (बर्मा) से आए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण दिए जाने ने। सर्वविदित है कि म्यांमार में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों का वहां के मूल निवासी बौद्धों से खुला संघर्ष चल रहा है। बांग्लादेशी माने जाने वाले इन रोहिंग्या मुसलमानों को घुसपैठिया मानकर म्यांमार सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से मना कर दिया जिससे एक तरह का जातीय या यूँ कहें कि नस्लीय संघर्ष शुरू हो गया। आरोप लगा कि रोहिंग्या अपने लिए अलग देश मांग रहे थे जिसके लिए म्यांमार सरकार कतई तैयार नहीं हुई जिसके बाद वहां की सेना ने उनके विरुद्ध वैसा ही रवैया अख्तियार कर लिया जैसा श्रीलंका ने तमिल राष्ट्र मांगने वाले लिट्टे विद्रोहियों को लेकर अपनाया था। परिणामस्वरुप म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन शुरू हो गया। बांग्लादेश के अलावा बड़ी संख्या वे भारत में भी घुस आए जिसे लेकर काफी बवाल भी हुआ लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते उन्हें खदेडऩे पर ऐतराज करने वाले भी सामने आ गए और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा। 1971 में आये करोड़ों बांग्लादेशी मुसलमानों के स्थायी रूप से भारत में बस जाने के कारण देश के कई पूर्वी राज्यों में जनसंख्या संतुलन गड़बड़ा चुका है। इसका असर चुनावी राजनीति पर भी स्वाभाविक रूप से पडऩे लगा। यही वजह रही कि रोहिंग्या मुसलमानों के बतौर शरणार्थी आने पर पूरे देश में उथलपुथल मची किन्तु श्रीलंका में रोहिंग्या मुसलमानों को शरण दिए जाने का मुखर विरोध बढ़ते-बढ़ते इस हद तक आ गया कि बौद्ध सम्प्रदाय के साथ सीधे संघर्ष की स्थितियाँ बन गईं। भारत श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी है। इस कारण वहां का प्रभाव हमारे यहां पड़े बिना नहीं रहता। अलग तमिल राष्ट्र के लिए चले संघर्ष के समय भी हजारों तमिल भागकर तमिलनाडु आ गए थे। बौद्धों और मुसलमानों के बीच शुरू हुआ दंगा अगर बढ़कर तमिल हिंदुओं तक पहुंचा तब शरणार्थी समस्या पुनर्जीवित होकर भारत का सिरदर्द बढ़ा सकती है। बड़ी बात नहीं रोहिंग्या मुसलमान भी बढ़ते विरोध के चलते भारत का रुख कर लें। कुल मिलाकर श्रीलंका में उत्पन्न ताजा हालात पर हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि उनका सीधा असर भारत पर पडऩे की आशंका है। श्रीलंका में चीन का बढ़ता दखल यूँ भी भारत के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। बौद्ध और मुस्लिमों के बीच शुरू साम्प्रदायिक दंगों में चीन भी अपनी टांग फंसा सकता है जिस पर भारत को नजर रखनी पड़ेगी। श्रीलंका सरकार ने जिस तेजी से आपातकाल लगाया उससे एक बात तो साबित हो गई कि उसने स्थिति को गंभीरता से लिया है। भारत के लिए देखने वाली बात ये है कि रोहिंग्या मुसलमान उसके लिए भी ऐसी ही समस्या न बन जाएं। वैसे श्रीलंका की घटनाएं मुस्लिम जगत में चल रहे संघर्ष से उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से भी कहीं न कहीं सम्बंध रखती हैं। हो सकता है श्रीलंका सरकार ने भविष्य के खतरे को भांपते हुए आपातकाल लगाकर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता दोहराई हो। वास्तविकता जो भी हो लेकिन श्रीलंका में लगी आग की लपटें हमारे देश को न झुलसाएं इसकी फिक्र तत्काल प्रभाव से करते हुए सावधानी बरतनी होगी। भूलने वाली बात नहीं है कि अतीत में श्रीलंका की आंतरिक स्थितियों का सही विश्लेषण करते हुए उचित कदम उठाने की बजाय तदर्थवादी सोच ने भारत को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया और उसी के चलते राजीव गांधी को प्राण गंवाना पड़े। इसलिए वहां के मौजूदा हालातों पर भारत को पैनी निगाह रखनी चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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