Saturday 17 March 2018

कड़वाहट बढ़ती ही जा रही है

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में भाजपा की पराजय पर कहा कि उत्तर भारत की राजनीति में जाति एक कटु सत्य है। दोनों सीटों पर सपा और बसपा के तालमेल ने पिछड़ी और दलित जातियों को नजदीक लाकर भाजपा के विजय रथ को रोक दिया। श्री पासवान खुद चूंकि जातिवादी राजनीति की उपज हैं इस कारण वे उसके महत्व को स्वीकार करेंगे ही लेकिन जिन डॉ. लोहिया के पासवान जी चेले रहे वे जाति तोडऩे के सबसे बड़े हिमायती थे। उस दृष्टि से ये विडम्बना ही है कि उनके तमाम अनुयायी जाति की सियासत में आकंठ डूबे हुए हैं। बात केवल चुनावों तक सीमित न रखकर राष्ट्रीय हितों की करें तो जाति नामक इस कटु वास्तविकता की कड़वाहट निरंतर बढ़ते जाने के कारण पूरा वातावरण दूषित होता जा रहा है। सवाल केवल एक या कुछ पार्टियों और उनके नेताओं के नफे-नुकसान का नहीं बल्कि समाज में बढ़ रहे जातिगत विवादों को लेकर है। सन्दर्भित दोनों उपचुनावों के परिणामों की समीक्षा में ये बात खुलकर सामने आई कि फलां-फलां जातियों की गोलबंदी के कारण जीत-हार हुई। रणनीतिक समीक्षा की दृष्टि से भले ऐसे विश्लेषण उचित ठहराए जाएं किन्तु इनसे जातिगत वैमनस्य बढऩे की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। श्री पासवान ने जो कहा वह केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं है। समूचे देश में कहीं कम तो कहीं ज्यादा भले हो लेकिन जाति का प्रभाव राजनीति पर पड़ता ही पड़ता है। पहले इसकी धमक इतनी नहीं सुनाई देती थी किन्तु अब तो डंके की चोट पर जाति की राजनीति समूचे देश को प्रभावित कर रही है लेकिन उससे भी बड़ा मसला ये है कि क्या समाज को इसी तरह टुकड़ों में बांटकर देखा जाता रहेगा। जातियों के भीतर से भी अब उपजातियां निकल कर सामने आ रही हैं। समाज का एक बड़ा वर्ग इस की जकड़ में आ चुका है। इस प्रवृत्ति को रोकने की बजाय बढ़ावा देना बेहद घातक है किंतु दुर्भाग्य ये है कि जिन नेताओं पर जातिगत विद्वेष दूर कर सामाजिक समरसता का वातावरण बनाने का दायित्व है वे ही जातियों के बीच खाई चौड़ी करने पर आमादा हैं ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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