Tuesday 27 March 2018

बंदरों के हाथ से उस्तरा छीनो वरना .......


एक तरफ तो सब कुछ डिजिटल करने की होड़ मची है और आधुनिक दिखने के फेर में ऑन लाइन होने के इंतजाम किए जा रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ  सारी कवायद डाटा चोरी के चलते अपराधबोध का कारण बनती जा रही है। भाजपा द्वारा कांग्रेस पर कैम्ब्रिज एनालिटिका नामक फर्म की सेवाएं लेने का आरोप लगाने के बाद राहुल गांधी ने पलटवार करते हुए आरोप मढ़ दिया कि प्रधानमंत्री के नाम पर बने नमो एप से सूचनाएं विदेश भेजी जाती हैं। भाजपा ने इसका खण्डन करते हुए पहले तो राहुल और कांग्रेस दोनों पर अल्पज्ञानी होने की तोहमत लगाई और फिर कांग्रेस के अधिकृत एप  विद आईएनसी पर उपलब्ध जानकारी सिंगापुर के रास्ते देश से बाहर भेजे जाने का आरोप उछाल दिया। नमो नामक एप के बारे में लगाए आरोप को सिद्ध करने के पहले ही अपने दामन पर उछली कीचड़ से सनाके में आए राहुल ने आनन-फानन में कांग्रेस के एप को बंद करवा दिया।  ये कार्रवाई आरोप के सही होने की वजह से की गई या इसके पीछे झंझट से बचने की रणनीति थी ये तो स्पष्ट नहीं हो सका लेकिन इस विवाद से एक बात जरूर सामने आ गई कि देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां तकनीक को अपनाने के प्रति जितनी उत्साहित हैं उतना ही उसके उपयोग में बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर उदासीन भी हैं। डाटा चोरी और हैकिंग, इंटरनेट के समानांतर चलने वाला व्यवसाय है।  इसमें अपराधी तत्व भी शामिल हैं और पेशेवर भी। व्यक्तिगत और संस्थागत दोनों स्तरों पर ये विश्वव्यापी कारोबार चल रहा है।  जहां तक प्रश्न नमो और विद आईएनसी एप के डाटा को विदेश भेजने का सवाल है तो जांच का विषय ये है कि क्या ये काम  सुनियोजित  तरीके से हो रहा है या फिर उसके पीछे डाटा चोरी करने वाले गिरोह की भूमिका है। ये भी उजागर होने चाहिए कि जो जानकारी विदेश गई या भेजी गई उससे हमारे राष्ट्रीय हित और चुनाव प्रक्रिया पर क्या असर पड़ सकता है? खबर है नमो एप में डेटा की सुरक्षा हेतु अतिरिक्त प्रबंध किए जा रहे हैं।  राहुल के निर्देश पर कांग्रेस ने तो अपना अधिकृत एप ही बन्द करवा दिया जिससे लगता है वह या तो घबरा गई या पकड़े जाने के डर से उसने वैसा किया।  असलियत जो भी हो लेकिन डाटा की चोरी अथवा व्यापार के इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच जो सबसे बड़ी बात हो रही है वह है राजनीतिक दलों की लापरवाही।  सही बात तो ये है कि जिस तरह सरकारी दफ्तरों में कम्प्यूटर और इंटरनेट लगा तो दिए गए किन्तु मौजूदा स्टाफ प्रशिक्षण के बाद भी उनका उपयोग करने में उतना पारंगत नहीं है जितना जरूरी है।  यही स्थिति कमोबेश राजनीतिक दलों की भी है जिन्होंने आईटी सेल बना तो दिए लेकिन उनमें जिन लोगों की नियुक्ति होती है उनमें से अधिकतर अकुशल श्रमिक की तरह होते हैं। उसी का परिणाम ये हुआ कि भाजपा और कांग्रेस दोनों डाटा चोरी के आरोपों में फंसते ही पिछले पाँव पर खड़े होने मज़बूर हो गए। राहुल के आरोप पर भाजपा ने उनके अज्ञानी होने की बात उछाली तो उन्होंने जिस तेजी से पार्टी का एप बंद करवाया उससे शक की सुई लटकना स्वाभाविक है। नमो एप संबंधी जो सन्देह व्यक्त किया गया उस पर भी स्पष्टीकरण आना ही चाहिए क्योंकि बात प्रधानमंत्री से जुड़ी है। बहरहाल भाजपा-कांग्रेस दोनों को इस बारे में गंभीरता से पेश आना चाहिए क्योंकि ये महज राजनीतिक लाभ लेने तक सीमित रहने वाला विषय न होकर बेहद संवेदनशील है। दोनों दलों की देश की सत्ता में हिस्सेदारी रही है।  निश्चित रूप से  विदेशी शक्तियों को इन दलों में रुचि रहती है और इसके लिए वे डाटा चोरी भी करती हैं और इन पार्टियों में अपने सम्पर्कों के जरिये भी जानकारी एकत्र कर लेती हैं।  ये देखते हुए भाजपा और कांग्रेस दोनों के शीर्ष नेतृत्व को चाहिये वह बंदरों के हाथ में उस्तरे देने से बचे वरना किसी दिन ऐसी स्थिति बन सकती है जिसमें मुंह छिपाना मुश्किल हो जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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