लोकसभा में मोदी सरकार के विरुद्ध वाईएसआर कांग्रेस और तेलुगुदेशम दोनों अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे चुकी हैं लेकिन सदन में हंगामे की वजह से अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव के पक्ष में आवश्यक 50 सदस्यों की गिनती नहीं हो पाने के कारण वह चर्चा हेतु स्वीकृत नहीं हो पा रहा। तेलुगु देशम सहित अन्य विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि सरकार डर रही है जबकि सदन को न चलने देने की परिस्थिति तो खुद उन्हीं पार्टियों ने पैदा कर रखी है जो अविश्वास प्रस्ताव की सूत्रधार हैं। कांग्रेस और तृणमूल वगैरह के समर्थन से अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी 50 सदस्यों की संख्या हो जाती है किन्तु ऐसा लगता है तेलुगु देशम और वाईएसआर कांग्रेस भी नहीं चाहते कि बहस हो क्योंकि उस स्थिति में उनकी कमजोरी जाहिर हो जाएगी। आंध्र को विशेष राज्य के दर्जे के अलावा ऐसा कोई और मुद्दा उक्त दोनों दलों के समक्ष नहीं है जिस पर वे केंद्र सरकार को घेर सकें। तेलुगु देशम तो अभी हाल तक केंद्र सरकार में भागीदार तक रही और एनडीए भी उसने पिछले हफ्ते ही छोड़ा है। आंध्र की उक्त दोनों पार्टियों को ये चिंता भी सता रही है कि उनकी कोशिशों का लाभ कांग्रेस को न मिल जाए। कुल मिलाकर विपक्षी खेमे के भीतर भी एक दूसरे के प्रति जबरदस्त अविश्वास है। संसद का बजट सत्र जिस तरह हंगामे की भेंट चढ़ रहा है उससे विपक्ष ही नुकसान में है क्योंकि सत्ता पक्ष तो शोरशराबे के बीच भी जरूरी प्रस्ताव पारित करवाती जा रही है। आश्चर्य की बात ये है कि कांग्रेस भी छोटी पार्टियों के खेल में शरीक हो जाती है जबकि राष्ट्रीय दल होने के नाते उसे सदन चलाने की पहल करनी चाहिए। सदन की कार्रवाई यदि सही ढंग से चले तो विपक्ष को अपनी बात कहने का पर्याप्त अवसर मिल जाएगा। भले ही कांग्रेस को ये महसूस न होता हो लेकिन हंगामे से सर्वाधिक नुकसान तो कांग्रेस का होता है क्योंकि बतौर राष्ट्रीय पार्टी भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी वही है और जिन क्षेत्रीय दलों की पीठ पर वह हाथ रखती है वे मूल रूप से उसके विरोधी हैं चाहे तेलुगु देशम हो या वाईएसआर कांग्रेस।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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