Thursday 8 March 2018

सदन को बाधित करना दण्डनीय अपराध हो


संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू हो चुका है लेकिन संसद चल नहीं रही है। बैठक शुरू होते ही हंगामा शुरू हो जाता है और स्थिति बेकाबू होती देख आसंदी द्वारा सदन पहले कुछ घण्टे और फिर पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया जाता है। विपक्ष की मांग है नीरव मोदी कांड पर प्रधानमन्त्री सदन में जवाब दें। बहस किस नियम के तहत हो इस पर भी गतिरोध है। उधर सत्ता पक्ष के सहयोगी तेलुगु देशम और शिवसेना के अपने मुद्दे हैं। लेकिन सदन न चलने देने में मुख्य भूमिका कांग्रेस की है। 2014 से अब तक शायद ही कोई सत्र रहा होगा जिसमें विपक्ष ने इसी तरह सदन को बाधित न किया हो। उसकी कुछ मांगें वाजिब भी होती हैं किंतु अधिकतर का कोई औचित्य नजर नहीं आने से लगता है वह हंगामे के जरिये खबरों में बने रहकर सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर अमल करता है किंतु इसका विपरीत असर ही हो रहा है। भले ही सत्ता पक्ष बहुमत के जोर पर विपक्ष के हर हमले को बेअसर कर देता है किन्तु संसद में होने वाली बहस में विपक्ष को अपनी बातें कहने का भरपूर अवसर तो मिलता ही है। एक जमाने में कांग्रेस का दोनों सदनों में प्रचंड बहुमत हुआ करता था। विपक्ष की संख्या भी उंगली पर गिनने लायक होती थी किन्तु तबके विपक्षी नेता सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलवाते हुए अपने धारदार भाषणों से सत्ता पक्ष पर चौतरफा हमले करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाते थे। संसद की पिछली कार्यवाहियों को पढ़कर उस दौर के विपक्ष का स्तर और पैनापन देखा जा सकता है। उस वक्त टीवी पर सीधे प्रसारण की व्यवस्था नहीं होने से जनता को अखबारों से ही विपक्ष की  भूमिका का पता चलता था। खबरों में भी उसे उतना स्थान नसीब नहीं हो पाता था। लेकिन तब विपक्ष के चार-छह दिग्गज ही सत्ता पक्ष के विशाल संख्याबल पर भारी पड़ जाते थे। दुर्भाग्य से अब वो बात नहीं रही तो इसके लिए काफी हद तक विपक्ष का रवैया ही जिम्मेदार है। सत्ता पक्ष का बहस से भागना तो समझ आता है लेकिन विपक्ष यदि अपने पास उपलब्ध हथियार का प्रयोग करने में विफल रहता है तो ये उसकी गलती है। वर्तमान सत्र में बजट जैसे अति महत्वपूर्ण विषय पर विपक्ष के पास अपने विचार देश के समक्ष रखने का अवसर है। और भी विधायी कार्य लंबित हैं। लेकिन इन सबको छोड़ वह नीरव मोदी प्रकरण पर हंगामे के जरिये सदन को ठप्प करने पर आमादा है। पीएनबी सहित अनेक बैंकों में हुए जो घोटाले  हाल ही में उजागर हुए उन पर सदन में विचार होना जरूरी है। विस्तृत जानकारी सदन में रखना सरकार का दायित्व है और सरकार को घेरना विपक्ष का अधिकार  किन्तु सदन को न चलने देने से एक आभास ये भी पैदा हो रहा है कि कहीं पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के बेटे कार्ति पर की जा रही कार्रवाई को रोकने के लिए तो ये दबाव नहीं बनाया जा रहा ? उल्लेखनीय है श्री चिदम्बरम के पुत्र को बीते दिनों सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया था तथा उनसे पूछताछ में काफी ऐसे बातें सामने आ रही हैं जिनकी वजह से पूर्व वित्तमंत्री की गर्दन में भी फंदा कस सकता है। राजनीति के जानकार संसद में विपक्ष के हंगामे को श्री चिदम्बरम के बचाव से जोड़कर भी देख रहे हैं जिसे पूरी तरह से खारिज कर देना भी ठीक नहीं होगा। सत्ता पक्ष से वरिष्ठ मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कार्ति की गिरफ्तारी के बाद सीधे श्री चिदम्बरम पर हमले करते हुए  आरोप लगाया है कि 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के एन पहले बतौर वित्तमंत्री उन्होंने गीतांजलि नामक कम्पनी को लाभ पहुँचाने के लिए स्वर्ण आयात सम्बन्धी जो निर्णय लिए उनसे नीरव प्रकरण में उनकी सहभागिता साबित होती है। इस कांड के उजागर होने के बाद पूरी तरह दबाव में आ चुकी मोदी सरकार ने जिस तरह पूर्व वित्तमंत्री पर निशाने साधे उसकी वजह से विपक्ष के हमलों की धार कमजोर पडऩे लगी है। यदि श्री चिदम्बरम भी गिरफ्तार हुए तब कांग्रेस के लिए भी मुंह छिपाने वाली स्थिति बने बिना नहीं रहेगी। हो सकता है इसीलिए सदन को ठप्प कर वह सरकार से सौदेबाजी करना चाह रही हो लेकिन नीरव मोदी के घोटाले को पहले यूपीए सरकार की देन बताना और फिर अपनी सरकार के जाते-जाते श्री चिदम्बरम द्वारा आरोपी कंपनी को फायदा देने की गरज से नीतिगत निर्णय लिए जाने का ऐलानिया आरोप लगाने से साबित हो रहा है कि अब सत्ता पक्ष के हाथ बड़ा मुद्दा आ गया है। कार्ति की गिरफ्तारी को राजनीतिक बदले से जोड़कर प्रचारित करने वाली कांग्रेस के लिए अपने पूर्व वित्तमंत्री का बचाव करना कठिन होता जा रहा है। यदि कल को सीबीआई ने श्री चिदम्बरम को भी पकड़ धरा तब कर्नाटक विधान सभा चुनाव के पहले कांग्रेस के लिए वह बड़ा झटका हो सकता है। लेकिन इससे बचने के लिए वह संसद को बाधित करने का दांव चल रही है तो उसकी रणनीति गलत है। पता नहीं अन्य विपक्षी दल कांग्रेस के जाल में फंसकर सदन को न चलने देने में मददगार क्यों बन जाते हैं? जबकि इससे उन्हें देश के सामने अपनी बात रखने के अवसर से वंचित होना पड़ता है। बात-बात में सर्वेक्षण करवाने वाले राजनीतिक दलों को कभी इस बात पर भी जनमत को जानने का प्रयास करना चाहिए कि संसद को ठप्प करने की उनकी रणनीति का जनमानस में कितना विपरीत असर होता है। बिना काम हुए संसद पर लाखों रु. प्रतिदिन बरबाद होना जनता के साथ बेईमानी है। यदि कोई बाहरी व्यक्ति संसद की कार्यवाही बाधित करे तो उसे दण्ड दिया जाता है लेकिन कानून बनाने वाले ही उसके संचालन में अवरोध उत्पन्न करें तो उनके ऊपर भी कड़ी दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। कांग्रेस का ये आरोप पूरी तरह सही है कि 2004 से 2014 तक विपक्ष में रहकर भाजपा ने भी सदन को पूरे सत्र न चलने देने की नीति अपनाई थी। ऐसे में प्रधानमंत्री, जो तरह-तरह के सुधारों के जरिये व्यवस्था परिवर्तन के लिये प्रयासरत हैं, को चाहिए वे संसद और विधानसभाओं के सुचारू संचालन हेतु कड़े और प्रभावशाली नियम बनाने की पहल करें क्योंकि लोकतंत्र की सार्थकता केवल उसकी मज़बूती में ही नहीं अपितु उससे अधिक उसकी परिपक्वता में है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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