Monday 26 March 2018

क्रिकेट : जीत के जुनून और पैसे की हवस का शिकार

क्रिकेट को भद्र पुरुषों का खेल मानने की धारणा को एक बार फिर ठेस पहुंची है। द.अफ्रीका के साथ केपटाउन में चल रहे टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलियाई टीम के एक खिलाड़ी द्वारा गेंद को खुरचने जैसा कृत्य कैमरे में कैद हो जाने से बवाल मच गया। पूरी दुनिया में उक्त दृश्य टीवी के जरिये करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों ने देखा। हर कोई उस घटिया हरकत पर ऑस्ट्रेलियाई टीम को कोसता दिखा। आईसीसी ने कठोर रुख अपनाते हुए तत्काल टीम के कप्तान स्टीव स्मिथ और दोषी खिलाड़ी बेनक्राफ्ट पर गाज गिराने का दबाव बनाया। उधर इस घटना से हुई बदनामी ने ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के साथ ही सरकार तक को हिला दिया। प्रधानमन्त्री भी निंदा करने वालों में शामिल हो गये। ऑस्ट्रेलिया के कप्तान और उपकप्तान बदल दिए गए। मैच फीस के जुर्माने के अलावा जीवन भर के लिए प्रतिबंधित किये जाने पर भी विचार हो रहा है। इस वारदात ने न सिर्फ  ऑस्ट्रेलियाई टीम अपितु क्रिकेट नामक खेल को भी कलंकित कर दिया। यद्यपि ये पहला अवसर नहीं है जब ऐसी किसी हरकत ने खेल और खिलाड़ी को बदनाम कराया हो। अनेक नामी-गिरामी क्रिकेटर नियमों के उल्लंघन के अलावा अनैतिक कृत्य करने के दोषी पाए जाने पर अपमान झेल चुके हैं। मैच फिक्सिंग के आरोप तो आम बात हो गई है। ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई टीम की ताजा हरकत सामान्य ही मानी जा सकती थी। और फिर कैमरे की कैद में वह घटना न आई होती तो कोई जान भी नहीं पाता कि हुआ क्या था? कई दशक पहले इंग्लैंड के एक तेज गेंदबाज जॉन स्नो द्वारा गेंद को चमकाने के लिए ग्लिसरीन का उपयोग करने का खुलासा हुआ था। इस तरह की घटनाएं यदा-कदा होती ही रहीं है। 1932 -33 में अंग्रेज कप्तान डगलस जार्डिन की कप्तानी में लारवुड द्वारा बॉडी लाइन गेंद फेंककर ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों को घायल किये जाने के कारण एशेज श्रंखला के बीच इतना तनाव उत्पन्न हो गया था कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक संबंध तक टूटने की कगार पर आ गए। उसके बाद से नियमों में लगातार सुधार किए जाते रहे जिससे इस खेल की गरिमा बनी रहे। बीच में एक दौर ऐसा भी आया जब वेस्ट इंडीज के फै्रंक वारेल और ऑस्ट्रेलिया के रिची बैनो सरीखे कप्तानों के नेतृत्व में क्रिकेट ने भद्रता के चर्मोत्कर्ष को भी देखा किन्तु जब से कैरी पैकर ने इस खेल को पूरी तरह व्यावसायिक बनाया तब से जीत के जुनून और पैसे की हवस ने इस खेल को भी फार्मूला हिंदी फिल्म की तरह बनाकर रख दिया। किसी भी कीमत पर जीत के फेर में खिलाड़ी रेस के घोड़े जैसे हो गए। सट्टेबाजी ने खेल की पवित्रता को ही नष्ट कर दिया। और फिर आईपीएल सरीखे आयोजनों ने बची-खुची कसर भी पूरी कर दी। इसलिये केपटाउन में जो भी हुआ उस पर आश्चर्य तो नहीं किन्तु अफसोस जरूर हुआ। किसी भी कीमत पर जीत की उन्मादी सोच ने निम्नस्तरीय हरकतों के लिए विश्वविजेता टीम को यदि प्रेरित कर दिया तब छोटे-छोटे देशों से क्या अपेक्षा की जा सकती है? द. अफ्रीका के कप्तान रहे हैंसी क्रोनिए का कैरियर मैच फिक्सिंग में ही तबाह हो गया था। भारतीय कप्तान अजहरुद्दीन भी उसी लपेटे में आकर बदनाम हुए। आईपीएल में तो चियर गर्ल और मैच के बाद की रंगीनियों के किस्से उजागर हो ही चुके हैं। विजय माल्या जैसे लोगों ने इस खेल को भी शराब की बोतल में उतारने जैसा काम किया। कुल मिलाकर इस लोकप्रिय खेल की आत्मा तक बिकने की स्थिति बन गई है। ऑस्ट्रेलियाई टीम की ताजा हरकत ने एक बार फिर ये सवाल उठा दिया है कि आखिर हर समय खेलते रहने का जो धंधा आईसीसी ने चला रखा है उसकी वजह से क्रिकेट रुपया छापने की मशीन भले बन गया हो किन्तु उसकी कलात्मकता लुप्त होकर रह गई है। भारत में तो इस खेल के प्रति दीवानगी आसमान छूती जा रही है। बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड बन गया है लेकिन खिलाडिय़ों के ऊपर जो मानसिक दबाव है उसकी वजह से खेल की नैसर्गिकता लुप्त होती जा रही है। पता नहीं ये सिलसिला कहाँ जाकर रुकेगा लेकिन ये बात सौ फीसदी सही है कि पैसे की बरसात और खिलाडिय़ों की फिल्मी  सितारों जैसी छवि के बावजूद क्रिकेट के प्रति पहले जैसा सम्मान नहीं बचा। जो कैमरे की गुप्त आंख ने देख लिया वह तो दुनिया को नजर आ गया वरना न जाने और क्या-क्या ऐसा होता होगा जिस पर ध्यान नहीं जाता। मो.शमी नामक भारतीय क्रिकेटर पर उसकी पत्नी द्वारा बीते दिनों लगाए आरोपों में पारिवारिक विवाद के अलावा मैच फिक्सिंग का जो दुबई कनेक्शन बताया गया वह काफी कुछ कह गया। केपटाउन में जो हुआ वह बेहद निन्दाजनक और शर्मनाक है। अच्छा होगा यदि ऑस्ट्रेलिया को कुछ समय के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट से बाहर कर दिया जाए वरना खेल को व्यापार मानकर अनैतिक तरीके अपनाने का सिलसिला चलता रहेगा ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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