Tuesday 20 March 2018

लिंगायत : अलग धर्म का दर्जा खतरनाक


कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां जोरों पर हैं। कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने और भाजपा उसे छीनने के लिए हरसम्भव कोशिश कर रही है। वहीं एच.डी देवगौड़ा की पार्टी जद (एस) दो की लड़ाई में तीसरे का फायदा वाली कहावत के चरितार्थ होने की बाट देख रही है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कांग्रेस के कब्जे वाले एकमात्र बड़े राज्य को हाथ से न जाने देने प्रयासरत हैं वहीं भाजपा के लिए कर्नाटक 2019 के महासंग्राम के पहले का एक महत्वपूर्ण मोर्चा बन गया है। हालिया उपचुनावी विफलताओं के कारण पार्टी के लिए ये दक्षिणी राज्य फतह करना अनिवार्यता बन गई है वरना मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव के पहले ही उसका मनोबल कमजोर होकर रह जायेगा। यही वजह है कि दोनों बड़ी पार्टियां कोई कसर नहीं छोड़ रहीं किन्तु गत दिवस सिद्धारमैया सरकार ने एक अप्रत्याशित निर्णय ऐसा किया  जिससे कांग्रेस को तात्कालिक राजनीतिक लाभ भले मिल जाए किन्तु भविष्य में ये न केवल कर्नाटक अपितु देश के लिए भी नुकसानदेह होगा। राज्य के बेहद प्रभावशाली लिंगायत और शैव लिंगायत समुदाय को अलग धर्म मानकर अल्पसंख्यक का दर्जा देने का जो फैसला सिद्धारमैया सरकार ने किया उसके पीछे उक्त समुदाय की बहुतायत वाली 100 विधानसभा सीटें हैं। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय काफी प्रभावशाली हैं। भाजपा के मुख्यमंत्री प्रत्याशी येदियुरप्पा भी इसी समुदाय के हैं। राज्य सरकार का ये कदम सम्भवत: उनके आभामंडल को फीका करने ही उठाया गया है किंतु महज चुनावी जीत-हार के लिए समाज को टुकड़ों में बांटना बेहद खतरनाक है। जातियों के जंजाल में उलझी राजनीति ने पहले से ही खेमेबाजी पैदा कर रखी है। अब यदि समुदायों को अलग धर्म मान लिया गया तब तो बहुत ही विकट स्थिति बन जाएगी। अल्पसंख्यक वर्ग को मिलने वाली सुविधाओं के नाम पर विराट हिन्दू  समाज को खण्ड-खण्ड करने का प्रयास बेहद खतरनाक है जिसका दूरगामी नतीजा सामाजिक विद्वेष का रूप लिए बिना नहीं रहेगा। इसके पहले अनेक राज्यों में जैन धर्म को भी अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया जा चुका है। उसके पीछे भी वही वोट बैंक की सियासत रही लेकिन लिंगायत जैसे समुदाय को अलग धर्म मान लेने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। इस सम्बंध में कर्नाटक सरकार की ये दलील गले नहीं उतरती कि कतिपय विशेषज्ञ पैनल ने इस बाबत सिफारिश की थी। सिद्धारमैया सरकार के इस फैसले को अनुमोदन हेतु केंद्र को भेजा जाएगा और संसद इस बारे में अंतिम निर्णय करेगी। वर्तमान स्थिति में केंद्र सरकार द्वारा इसे ठंडे बस्ते में डालकर रखे जाने की संभावना है जिसे कांग्रेस विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाए बिना नहीं रहेगी। कुल मिलाकर लगभग 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय की निर्णायक स्थिति के मद्देनजर सिद्धारमैया सरकार का ये दांव काँग्रेस के लिए कितना लाभदायक होगा ये तो चुनाव परिणाम ही बता सकेंगे किन्तु  इससे कर्नाटक के एक बड़े समुदाय को मुख्य धारा से अलग करने का जो बीजारोपण कर दिया गया वह राजनीति से अलग सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है। कुछ वर्ष पूर्व मप्र और छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी नामक संगठन चुनाव के  मैदान में उतरा और उसे आंशिक सफलताएँ भी मिल गईं लेकिन धीरे धीरे वह कांग्रेस और भाजपा के हाथ का खिलौना बनकर राजनीतिक दृष्टि से तो उतनी असरकारक नहीं रही लेकिन उसके माध्यम से आदिवासी समुदाय के बड़े वर्ग में ये भावना फैलाई जाने लगी कि वे हिन्दू नहीं हैं। उनके अलग देवी - देवता होने की बात जमकर प्रचारित की जाने लगी। इन बातों का असर भी दिखाई देने लगा जिसका लाभ ईसाई मिशनरियां और नक्सली दोनों उठाते हैं। इसी तरह का षडयंत्र दलित समुदाय के भीतर भी रचा जा रहा है। ये विषय केवल हिन्दू समाज ही नहीं बल्कि देश की एकता का है। पूर्वोत्तर राज्यों में जिस तरह अलगाववाद ने मजबूती से पांव जमाए उसके पीछे वहां हुए धर्मांतरण के साथ ही आदिवासी समुदाय को हिन्दू समाज से अलग करना भी बड़ा कारण है। कश्मीर घाटी में भी अलगाववाद का ज़हर फैलना तभी सम्भव हुआ जब घाटी से हिंदुओं को लगभग बाहर कर दिया गया। कर्नाटक देश के भीतरी हिस्से में है इसलिए वहां किसी भी सामाजिक हलचल का असर पड़ोसी राज्यों में पड़े बिना नहीं रहेगा। भाषा के आधार पर पहले ही राज्यों के बीच भेदभाव पैदा हो चुका है। सिद्धारमैया सरकार तो कर्नाटक का अलग ध्वज बनाने जैसा कदम तक उठा चुकी है। लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देकर अल्पसंख्यक मानने का उसका ताज़ा निर्णय शांतिपूर्ण राज्य को सामाजिक संघर्ष की आग में झोंकने का कारण बन सकता है। ज़ाहिर है केन्द्र सरकार उसकी सिफारिश को स्वीकार नहीं करेगी जिसे चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस लिंगायत समुदाय की भावनाएं भड़काने का प्रयास कर सकती है। इसका उसे लाभ होगा या  हानि ये तो मतदाता तय करेंगे किन्तु इस तरह के निर्णय देशहित में कतई नहीं हैं। हिन्दू समाज को बांटकर कमजोर करने की किसी भी कोशिश के पीछे भले ही दिखाई न देती हो लेकिन कोई विदेशी षडयंत्र अवश्य होता है। इतिहास की गलतियों से सबक न लेना एक तरह से हमारा चरित्र बन गया है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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