Friday 23 March 2018

जकरबर्ग की माफी : दाल में काले की पुष्टि


भारत में फेसबुक के करोड़ों उपयोगकर्ता बीते दो-तीन दिन से परेशान हैं। उसके मालिक जकरबर्ग द्वारा माफी मांगे जाने से चिंता और बढ़ गई । भाजपा की तरफ  से केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर आरोप लगा दिया कि वे 2019 के चुनाव में केम्ब्रिज एनालिटिका नामक विदेशी कम्पनी की सेवाएं लेने वाले हैं।  ये कम्पनी सोशल मीडिया से लोगों की निजी जानकारी एकत्र कर अपने ग्राहक को चुनाव जितवाने में मदद करती है। फेसबुक इसका सबसे बड़ा औजार बताया जा रहा है। अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की भारी जीत पर मंडराने वाले शक के बादल अभी पूरी तरह छंटे नहीं हैं। रूस द्वारा डाटा चोरी कर चुनाव अभियान को प्रभावित करने का आरोप लगने के बाद यद्यपि उसे प्रमाणित तो नहीं किया जा सका किन्तु आज भी अमेरिका में ये मानने वाले बहुत हैं कि ट्रम्प की जीत का माहौल बनाने हेतु सोशल मीडिया से लोगों की निजी राय और रुचियों के बारे में जानकारी एकत्र कर चुनाव संचालकों को दी गई।  भारत में अभी तक ऐसा आरोप तो नहीं लगा किन्तु रविशंकर प्रसाद के बयान और उसके बाद कांग्रेस द्वारा उल्टे भाजपा पर आरोप मढ़ देने के बाद कैम्ब्रिज एनालिटिका और भारत में उसकी सहयोगी कंपनियों द्वारा चुनाव अभियान में सेवाएं देने सम्बन्धी बात उजागर हो गई है। राहुल गांधी ने रविशंकर के आरोप का सीधे खंडन करने की बजाय पलटकर आरोप लगा दिया कि भाजपा इराक़ में मारे गए 39 भारतीयों की मौत सम्बन्धी गलत जानकारी से मचे विवाद पर परदा डालने हेतु डाटा चोरी का शिगूफा छोड़ रही है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला तो भाजपा पर ही अतीत में उक्त कम्पनी की सेवाएं लेने का आरोप लगाने से नहीं चूके। बात कितनी सच है ये तो साधारण व्यक्ति की समझ से परे है लेकिन भारत सरकार द्वारा फेसबुक के उपयोगकर्ताओं का निजी डाटा इक_ा कर राजनीतिक दलों को देने और सोशल मीडिया के जरिये चुनाव प्रभावित करने पर कड़ी कार्रवाई किये जाने की चेतावनी के बाद जकरबर्ग द्वारा माफी मांगे जाने और इसे रोकने सम्बन्धी पुख्ता इंतजाम करने का आश्वासन दिए जाने से रविशंकर के आरोप को वजन तो मिला ही। धीरे-धीरे ये बात भी स्पष्ट हो गई कि बीते चुनावों में विभिन्न दलों और निजी तौर पर कुछ प्रत्याशियों ने उन पेशेवर एजेंसियों की सेवाएं ली थीं जो सोशल मीडिया से लोगों की निजी जानकारी एकत्र कर उनका राजनीतिक विश्लेषण करते हुए चुनावी रणनीति बनाने में मदद करती हैं। चुनाव सर्वेक्षण के लिए निजी संस्थानों की सेवाएं लेने का चलन भारत में भी काफी बढ़ गया है। इनके जरिये जनमत को प्रभावित करने का काम भी होता है। विभिन्न राजनीतिक दल इन सर्वेक्षणों के माध्यम से ही प्रत्याशी चयन करते हैं। कुल मिलाकर चुनाव अपने संगठन के बलबूते लडऩे का जमाना खत्म होता जा रहा है और उसकी जगह तरह - तरह की नई पेशेवर संस्थाएं लेती जा रही हैं। भारत में इनका पदार्पण काफी समय पहले हो चुका था लेकिन फेसबुक और इस जैसे ही सोशल मीडिया की अन्य शाखाओं के माध्यम से चुनाव अभियान को अपने मनमाफिक मोडऩे की कोशिश निश्चित रूप से अब सामने आ रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले से ही भाजपा ने सोशल मीडिया का अत्यंत योजनाबद्ध तरीके से उपयोग  करते हुए कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया था। बाद में कांग्रेस ने भी इस माध्यम को अपनाते हुए जवाबी टक्कर देनी शुरू कर दी। जहां तक बात 2019 की है तो इसे जीतने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों कोई कसर नहीं छोड़ेंगीं। रही बात डाटा चोरी की तो ये काम तो सम्बन्धित एजेंसियां करती हैं न कि राजनीतिक दल। इसलिए अपराध तो कैम्ब्रिज एंटालिटिका जैसी एजेंसियों के खाते में जाता है लेकिन फेसबुक सरीखे नेटवर्क से यदि उपयोगकर्ताओं सम्बन्धी जानकारी बाहर जाती है तो इसके लिए सोशल मीडिया नेटवर्क को कसूरवार माना ही जाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा बनाए गए दबाव के तुरंत बाद जकरबर्ग द्वारा माफी मांगते हुए भविष्य में डाटा चोरी रोकने के लिए बेहतर सुरक्षा प्रबंध करने के ऐलान के बाद भी उसे रोक पाना सम्भव नहीं हो सकेगा क्योंकि इंटरनेट के विकास के साथ ही हैकिंग भी समानांतर व्यवसाय के रूप में पनप रहा है। कम्प्यूटर से वायरस दूर करने की तकनीक के साथ- साथ वायरस फैलाने वाले भी उतनी ही तेजी से सक्रिय हैं। भारत में आधार कार्ड को लेकर भी निजी डाटा चोरी होने का भय व्याप्त है। सर्वोच्च न्यायालय इस बारे में विचार कर ही रहा है। ये जो नया विवाद सामने आया है इससे निजी जानकारी की सुरक्षा का प्रश्न एक बार फिर प्रासंगिक हो गया है। फेसबुक के उपयोगकर्ताओं के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है। इंटरनेट भी करोड़ों आम भारतीयों की जि़ंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। 125 करोड़ की आबादी का ये मुल्क विश्व भर के लिए एक बड़ा बाजार है जिसका दोहन करने के लिए उपभोक्ताओं की निजी जानकारी बेहद उपयोगी और मददगार होती है। लेकिन चुनाव एक अलग मुद्दा है जिसे प्रभावित करने के लिए यदि निजी डाटा चोरी किया जाता है तो वह निश्चित रूप से आपत्तिजनक है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के आरोपों के पीछे उनके अपने निहित स्वार्थ हैं किंतु जब बात बेपर्दा हो ही गई है तब उसे आम आदमी की निजता से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए क्योंकि वह महज मतदाता या उपभोक्ता ही नहीं अपितु एक स्वतंत्र शख्सियत है। जकरबर्ग की माफी और आश्वासन से ये तो स्पष्ट हो ही गया कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों पर लगने वाले डाटा चोरी के आरोप सही थे। राजनीतिक दल पैसा देकर मतदाताओं की निजता का जो सौदा करते हैं वह केवल अपराध ही नहीं अपितु अनैतिकता भी है। सूचना क्रांति के इस दौर में भले ही कुछ भी छिपाना कठिन होता जा रहा है लेकिन इसका ये अर्थ भी नहीं है कि शयनकक्ष और स्नानागार से दरवाजे हटा दिए जाएं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment