बंगाल की मुख्यमंत्री इन दिनों भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने में व्यस्त हैं। दो-तीन दिन दिल्ली में रुककर उन्होंने सोनिया गाँधी सहित अन्य विपक्षी नेताओं से तो भेंट की ही भाजपा के असंतुष्ट यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी से भी वे मिलीं। ममता बैनर्जी ने विपक्षी एकता के लिए चल रहे कांग्रेसी प्रयासों के समानांतर अपनी जो कोशिशें शुरू की हैं उनके पीछे उद्देश्य प्रधानमंत्री पद हेतु राहुल गांधी की उम्मीदवारी को पलीता लगाना है। श्रीमती गांधी से मिलकर लौटते समय पत्रकारों द्वारा राहुल सम्बन्धी सवाल को उन्होंने कोई महत्व नहीं दिया। दरअसल सुश्री बैनर्जी समझ गई हैं कि जयललिता के न रहने के बाद कोई और क्षेत्रीय नेता नहीं है जो अपने राज्य से 35 लोकसभा सीटें जीतकर ला सके। 2018 में यदि त्रिशंकु लोकसभा उभरी तब ममता प्रधानमंत्री पद हेतु अपना दावा पेश करने के उद्देश्य से विपक्षी एकता की बीन बजा रही हैं लेकिन भले ही भाजपा विरोध के नाम पर विपक्षी दल एकजुट हो जाएं किंतु ममता की महत्वाकांक्षाएं आसमान छूने वाली होने से इस एकता की सम्भावना न के बराबर है। और फिर उन सरीखी अस्थिर दिमाग वाली नेत्री कब क्या कर जाए कहना कठिन है। ऐसे मे विपक्षी एकता के लिए हो रही कोशिशों का सफल होना आसान नहीं है क्योंकि उसके पीछे कोई सिद्धांत या आदर्श तो हैं नहीं। विश्वास का संकट विपक्षी दलों के बीच भी कम नहीं है ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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