Saturday 7 April 2018

10 अप्रैल को लेकर सतर्कता जरूरी

बीते दिनों दलित समुदाय के भारत बंद के दौरान मप्र सहित देश के अनेक हिस्सों में हुई हिंसा के घाव अभी तक भरे नहीं हैं। जातिगत घृणा भी नए सिरे से सिर उठाने लगी है। प्रतिक्रियास्वरूप अब सवर्ण जातियों द्वारा आरक्षण हटाने की मांग को लेकर 10 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया गया है। इसके पीछे किसी राजनीतिक दल का हाथ तो नहीं दिखता क्योंकि दलित मतों के भयवश कोई भी पार्टी आरक्षण का विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखा सकती। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से अपने ऊपर लगे लांछनों से घबराए भाजपा नेता आरक्षण जारी रखने के लिए गंगाजल हाथ में उठाने तैयार हैं। ऐसे में केंद्र और राज्यों की सरकार को ध्यान रखना होगा कि 10 अप्रैल के प्रस्तावित बन्द के दौरान  भी हालात बेकाबू न हो जाएं। ये कहना गलत नहीं होगा कि आरक्षण को लेकर युवाओं के एक बड़े वर्ग में काफी गुस्सा है। नौकरी और पदोन्नति में आरक्षण के कारण जो सवर्ण अवसरों से वंचित रह जाते हैं  उनका सन्तोष समझा जा सकता है किन्तु जिस तरह जातीय नफरत के बीज अचानक अंकुरित होने लगे उसके पीछे किसी साजिश या षड्यंत्र की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। दलितों के ईष्टदेव के तौर पर प्रतिष्ठित डॉ आंबेडकर की जयंती भी निकट ही है। ये देखते हुए देश भर में अलर्ट की स्थिति बन जानी चाहिए। दलितों के संरक्षण सम्बन्धी कानून और आरक्षण को लेकर क्या होगा ये कोई नहीं बता सकता। अगले डेढ़ वर्ष चुनावी मौसम होने से जाति की राजनीति खुलकर चलेगी ये भी तय है। ऐसे में  सावधानी जरूरी है क्योंकि आंदोलनों के दौरान होने वाली हिंसा, आगजनी, तोडफ़ोड़ से देश का बड़ा नुकसान होता है। सभी  वर्गों को चाहिए कि वे भावना में बहकर बेकाबू न हों क्योंकि भीड़ का कोई विवेक तो होता नहीं और उन्माद से किसी का फायदा नहीं होता ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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