हिन्दू संगठन खुश हैं। मनमोहन सरकार के दौरान भगवा और हिन्दू आतंकवाद के नाम पर लादे गए मुकदमों के आरोपी एक-एक करते हुए छूटते जा रहे हैं। 2007 में हैदराबाद की मक्का मस्जि़द में हुए बम विस्फोट के आरोपी असीमानंद सहित शेष चारों आरोपियों को विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में दोषमुक्त कर दिया और इसी के साथ हिन्दू आतंकवाद जैसा शब्द गढऩे वाले तमाम कांग्रेस नेताओं पर भाजपा और अन्य हिन्दूवादी संगठनों ने शाब्दिक हमले तेज कर दिए। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से माफी मांगने भी कहा जा रहा है। पिछली सरकार में गृहमंत्री रहे शिवराज पाटिल, पी चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे सहित हिन्दू संगठनों पर तीखे आरोप लगाने के लिए मशहूर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से समाचार माध्यमों ने जब अदालती निर्णय में सभी आरोपियों को ससम्मान बरी करने को लेकर प्रश्न पूछे तब वे सभी कन्नी काटते नजर आए। श्री पाटिल तो झल्लाते से दिखे वहीं श्री चिदंबरम ने यहां तक कह दिया कि हिन्दू आतंकवाद शब्द उन्होंने नहीं दिया था। दिग्विजय सिंह सवालों का जवाब देने की बजाय कार के शीशे बन्द करते हुए आगे बढ़ लिए। टीवी चैनलों द्वारा भी वे पुरानी रिकार्डिंग निकाल-निकालकर सुनवाई गई जिनमें कांग्रेस के नेतागण हिन्दू आतंकवाद को मुस्लिम आतंकवाद के समकक्ष खड़ा करते दिखाई दिए। उधर मुसलमानों के सबसे बड़े सियासी नेता बने असदुद्दीन ओवैसी ने तो सीधे-सीधे जांच एजेंसियों पर ही मामले को ठण्डा करने का आरोप मढ़ दिया। कांग्रेस भी ऐसे ही सवाल उठा रही है। लेकिन इन सबके विपरीत यूपीए सरकार में गृह सचिव रह चुके एक अधिकारी ने तो सीधे-सीधे पिछली सरकार पर खुला आरोप लगा दिया कि उसने मक्का मस्जिद मामले में आरोपी बनाए गए हिंदुओं को झूठा फंसाया था। जिसके पीछे मकसद उन मुस्लिमों को बचाना था जिन पर वह जघन्य कृत्य करने का पुख्ता संदेह जांच एजेंसियों को प्रारम्भ से ही था। उक्त अधिकारी ने दो टूक कहा कि उस पर दबाव डालकर असीमानंद और अन्य चार पर मिथ्या आरोप लगवाए गए थे। दरअसल शुरुवात में बड़ी संख्या में एक मुस्लिम संगठन के सदस्यों को पकड़ा गया था लेकिन बाद में सभी को रिहा कर दिया गया। 2014 में केंद्र सरकार बदलने के बाद से उक्त प्रकरण के तमाम गवाह पलट गये। असीमानन्द के अलावा अन्य आरोपियों ने भी ये कहते हुए अपने इकबालिया बयान बदले कि जांच एजेंसियों ने उन पर दबाव डालकर आरोप स्वीकार करवाए थे। कल ज्योंही विशेष अदालत का फैसला आया त्योंही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति जमकर चल पड़ी। भाजपा और रास्वसंघ से जुड़े अन्य संगठन जहां बेहद आक्रामक होकर हिन्दू आतंकवाद का शिगूफा छोडऩे वालों पर शब्दों की मिसाइलें छोडऩे में जुटे वहीं ओवैसी सरीखे मुस्लिम नेता को जांच एजेंसियों के काम में गड़बड़ी नजर आ रही थी। मोदी सरकार आने के उपरांत गवाहों के पलट जाने से भी भाजपा विरोधी खेमे को मौका मिल गया। बहरहाल फिलहाल तो हिंदूवादी संगठनों के पास जश्न मनाने का समुचित मौका है। भगवा आतंक नामक जो प्रतीक खड़ा किया गया वह कपोल कल्पित साबित होता जा रहा है। पूर्व गृह सचिव का सार्वजनिक रूप से ये कहना कि हिंदुओं को फंसाने के लिए दबाव डाला गया अपने आप में जांच का विषय है। उनकी इस बात का अदालत को भी संज्ञान लेना चाहिए। यदि जैसा वे कह रहे हैं वैसा हुआ तब तो हिंदुओं को बदनाम करने वाली साजिश के उन कर्ताधर्ताओं को भी कठघरे में खड़ा करना चाहिए जिन्होंने देश के बहुसंख्यक वर्ग की देशभक्ति पर सन्देह करने का माहौल बनाकर मुस्लिम आतंकवाद के बचाव का षड्यंत्र रचा। झूठा प्रकरण दर्ज करने वाली जांच एजेंसियों के अधिकारियों से भी पूछताछ जरूरी है वरना सरकारें राजनीतिक स्वार्थों की खातिर इसी तरह के षड्यंत्र रचती रहेंगी। इनसे कुछ लोगों को जो निजी परेशानी होती है वह तो अपनी जगह है किन्तु सामाजिक वातावरण भी दूषित होता है। यद्यपि जिस न्यायाधीश ने कल का निर्णय सुनाया उसने तत्काल बाद त्यागपत्र देकर सन्देह के नए कारण पैदा कर दिए हैं। हालांकि न्यायालयीन स्तर पर ये स्पष्ट किया गया कि न्यायाधीश के इस्तीफे का उक्त फैसले से कोई सम्बन्ध नहीं है लेकिन उसे आसानी से हवा में उड़ाना भी सही नहीं होगा। हो सकता है वे इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील प्रकरण की सुनवाई कर फैसला देने के लिए ही रुके हों किन्तु जब तक वे खुद होकर कुछ नहीं कहते तब तक संदेह बना ही रहेगा। बावजूद इन सबके भगवा आतंकवाद का जो दुष्प्रचार बीते कई वर्षों से होता आया वह धीरे-धीरे निराधार साबित होता जा रहा है। अदालती फैसले पर कांग्रेस और ओवैसी कितने भी सवाल उठाएं लेकिन हिन्दू समाज में ये धारणा तो घर कर ही रही है कि राजनीतिक लाभ के लिए हिन्दू संगठनों पर आतंकवाद का झूठा आरोप लगाकर मुस्लिम तुष्टीकरण किया गया। अदालत के फैसले पर सन्देह जताना भी उसी राजनीति का हिस्सा है। ये बात सही है कि यूपीए सरकार के समय आतंकवादी घटनाओं के आरोप में पकड़े गए तमाम हिन्दू आरोपी अदालतों से निर्दोष साबित होते जा रहे हैं। रही बात सरकार बदलने से मुकदमा कमजोर किये जाने की तो ये भी कहा जा सकता है कि झूठा प्रकरण बनाने के लिए भी इसी तरह सरकारी तंत्र का दुुरूपयोग किया गया होगा। जो भी हो फिलहाल तो हिन्दू संगठनों को ये कहने का अवसर मिल ही गया कि पिछली सरकार ने अपने आपको मुस्लिमों का हितचिंतक साबित करने के लिए हिन्दू संगठनों को आतंकवादी साबित करने का फर्जीबाड़ा रचा। कर्नाटक चुनाव के पहले आए इस फैसले से भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीदें तो बढ़ ही चली हैं क्योंकि ओवैसी सरीखे मुस्लिम नेता इस मामले में जितना ज्यादा मुंह चलाएंगे हिन्दू ध्रुवीकरण उतना ही तेज होगा ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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