Wednesday 18 April 2018

राकेश : स्वतन्त्र छवि बनाने की चुनौती


आखिरकार मप्र में भाजपा ने संगठन का नेतृत्व बदल दिया। नंदकुमार सिंह चौहान को हटाकर विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले जबलपुर से तीसरी बार सांसद बने राकेश सिंह को उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेश महामंत्री और उपाध्यक्ष रह चुके श्री सिंह संसद में भाजपा के मुख्य सचेतक भी हैं। शिवराज सिंह चौहान की सरकार में ताकतवर कहे जाने वाले नरोत्तम मिश्रा का नाम  वैसे से तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की पसंद था लेकिन मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी ने नरोत्तम की बजाय राकेश पर हाथ रखा क्योंकि फिलहाल वे शिवराज सिंह के लिए किसी भी प्रकार की प्रतिद्वन्दिता उपस्थित करने की स्थिति में नहीं हैं। राकेश का राजनीतिक सफर प्रहलाद पटैल के साथ शुरु हुआ था।  दोनों उमाश्री भारती से जुड़े थे। बाद में उमा और प्रहलाद ने जब भाजपा छोड़ी तब राकेश बाहर नहीं आये। धीरे-धीरे उनमें और प्रहलाद में भी दूरियां बढ़ती गईं। 2004, 2009 और 2014 के तीनों लोकसभा चुनाव लम्बे अंतर से जीतने के कारण वे वरिष्ठ नेताओं में आ गए। संगठन कार्यों का उन्हें काफी अनुभव है लेकिन चुनाव के ठीक छ: महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष का पद सम्भालने के बाद वे पार्टी की विजय में कितने सहायक बन सकेंगे ये अभी कहना कठिन है। कहा ये भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री और श्री तोमर ने राकेश को प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर एक तो महाकोशल को साधने का दांव चला वहीं भविष्य के खतरे भी खत्म कर दिए। निवर्तमान अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को शिवराज सिंह का आज्ञाकारी माना जाता था। इसीलिये वे अपनी स्वतंत्र हैसियत नहीं बना सके। राकेश भी उनकी तरह मुख्यमंत्री के इशारों पर नाचते हैं या अपना दमखम दिखाते हैं इस पर उनका भविष्य तो निर्भर होगा ही पार्टी की किस्मत भी टिकी रहेगी। अध्यक्ष बदलने का निर्णय श्री चौहान की कमजोरी की वजह से नहीं अपितु शिवराज की लोकप्रियता में कमी की वजह से किया गया है। यदि विधानसभा चुनाव में अनुकूल नतीजे नहीं मिले तो मुख्यमंत्री के साथ ही राकेश पर भी गाज गिरेगी। राकेश सिंह का ये राजनीतिक प्रमोशन उनके लिए फायदे की वजह बनेगा या नुकसान की ये चुनाव परिणाम बताएंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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