Friday 13 April 2018

अब चाहे जो कर लो किरकिरी तो हो ही चुकी

बीती रात सीबीआई द्वारा दुष्कर्म के आरोपी उन्नाव के भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की गिरफ्तारी का निर्णय लेने के बाद आज भोर के समय उन्हें हिरासत में ले लिया गया। विशेष जांच दल की रिपोर्ट और उच्च न्यायालय के निरंतर दबाव के बाद उप्र की योगी सरकार राजनीतिक तौर पर पूरी तरह पिछले पाँव पर खड़ी होने बाध्य हो गई थी। उच्च न्यायालय द्वारा पूछे जाने पर सरकार द्वारा सेंगर की गिरफ्तारी न करने का कारण सबूत न होना बताया तो इसकी देशव्यापी प्रतिक्रिया हुई लेकिन ज्योंही योगी सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपा तो आरोपी विधायक के विरुद्ध उसे सबूत मिल गए जिसके आधार पर उसने कल देर रात ही दबोचने की तैयारी करते हुए कुछ ही घण्टों में उसे उठा लिया। सीबीआई को मामला सौंपकर एक तरह से उप्र सरकार ने अपना पिंड छुड़ा लिया। सही कहें तो आरोपी विधायक को बचाने का कोई रास्ता भाजपा और सरकार दोनों के पास नहीं बचा था। मुख्यमंत्री पर क्षत्रिय समर्थक होने का आरोप भी खुलकर लगाते हुए ये कहा जाने लगा कि सेंगर भी चूंकि ठाकुर हैं इसलिए उनके गिरेबाँ पर हाथ डालने से पुलिस कांप रही थी। बहरहाल अब बात सीबीआई के हाथ आने के बाद ये उम्मीद बांधी जा रही है कि पीडि़ता के साथ न्याय होगा तथा दुष्कर्म और हत्या के दोषी सजा के हकदार बनेंगे। ये मामला इतना न मचता यदि दुष्कर्म पीडि़त युवती के पिता की मौत हिरासत में न होती जिसके जुर्म में सेंगर का भाई पहले ही जेल भेजा जा चुका है। प्रश्न ये है कि  विधायक के प्रति इतनी नरमी क्यों दिखाई गई? ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार को असलियत न पता हो। आखिर खुफिया विभाग भी तो है जो इस तरह के मामलों पर नजर रखता है। यदि मामला उजागर होते ही योगी सरकार सेंगर को गिरफ्तार कर लेती तो उससे वह फजीहत से बच जाती। सेंगर को निर्दोष होने का प्रमाणपत्र जारी करने का काम अदालत को सौंप दिया जाता तो उसमें आम जनता में सरकार और पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ता। उससे भी बड़ी बात ये होती कि सफेदपोश नेता और उनके पिछलग्गुओं में ये डर बैठता कि मुख्यमंत्री केवल पेशेवर अपराधियों के प्रति नहीं बल्कि गलत काम करने वाले हर व्यक्ति के प्रति उतने ही सख्त हैं चाहे वह उनकी पार्टी का विधायक ही क्यों न हो? अब भले ही विधायक गिरफ्त में आ गया लेकिन ये कहना पूरी तरह सत्य होगा कि बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले में बेहद लचर साबित हुए। ये उनकी सियासी मज़बूरी थी अथवा प्रशासनिक अनुभवहीनता, वह विश्लेषण का विषय है किन्तु उसकी वजह से विपक्ष को उनकी सरकार को घेरने का मौका मुफ्त में हासिल हो गया। इसके कारण केंद्र की मोदी सरकार को भी आलोचना झेलनी पड़ी। सीबीआई मामले को किस तरह निपटाती है ये अभी कहना कठिन है क्योंकि मप्र के बहुचर्चित व्यापमं घोटाले की जांच जबसे सीबीआई को दी गई तबसे वह मामला ठंडा पडऩे लगा। अनेक संगीन प्रकरणों में सीबीआई का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। बावजूद इसके राज्यों की पुलिस की अपेक्षा उसकी कार्यप्रणाली आज भी बेहतर है। इसलिए लोगों की अपेक्षा थी कि योगी जी उन्नाव कांड की जांच बिना समय गंवाए सीबीआई को सौंपकर अपनी निष्पक्षता साबित करते लेकिन वे मौका चूक गए। अब भले ही सीबीआई आरोपी विधायक को कितना भी कड़ा दंड दें किन्तु जो किरकिरी होना थी वह तो हो ही चुकी। सत्ता की अंधी दौड़ में भाजपा भी चूंकि उसी रास्ते पर चल पड़ी है इसलिए उसे भी वही काम करना पड़ रहे हैं जिनके लिए वह अब तक कांग्रेस और अन्य पार्टियों को कठघरे में खड़ा करती रही। वरना कुलदीप सिंह सेंगर जैसे लोगों को वह गोद में नहीं बिठाती ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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