Wednesday 18 April 2018

सरकार और रिजर्व बैंक दोनों की साख पर आँच


देश के अनेक राज्यों में नगदी का संकट सतह पर आ गया है। नोटबन्दी के बाद से ही मोदी सरकार नगदी रहित लेन देन को प्रोत्साहित करने में जुटी रही। डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए भी काफी जतन किये गये लेकिन अभी तक के नतीजे बहुत अधिक उत्साहित नहीं करते। अशिक्षा के अभाव में अभी भी बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसके लिए कार्ड से भुगतान या ई पेमेंट जैसे तरीके समझ से बाहर हैं। यद्यपि मोबाइल फोन के मामले में भारत पूरी दुनिया का सिरमौर बन चुका है लेकिन उसके जरिये वित्तीय लेनदेन अभी भी उतना प्रचलित नहीं है जितना प्रधानमंत्री सोचते थे। पिछले कुछ महीनों से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि एटीएम मशीनों में पर्याप्त राशि नहीं होने से आम जनता हलाकान हो रही है। उसके बाद जानकारी आई कि बैंकों की शाखाओं में भी करेंसी का अभाव है। बीच में 200 रुपये का नोट छापकर मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश हुई लेकिन उसका भी माकूल असर नहीं हुआ। इसी बीच नीरव मोदी कांड हो गया जिसकी वजह से पंजाब नेशनल बैंक सरीखे बड़े बैंक के डूबने की हवा उड़ गई। इससे भयातुर होकर काफी ग्राहकों ने बैंकों में जमा धनराशि आकस्मिक खर्च के लिए निकालकर रख ली। फिर भी किसी तरह काम चलता रहा किन्तु बीते दो-तीन दिनों में नगदी संकट कुछ ज्यादा ही विकराल हो गया है। शहरों में अधिकतर एटीएम खाली पड़े हुए हैं वहीं बैंकों की शाखाओं में भी करेंसी की उपलब्धता खतरनाक स्तर पर आ गईं है। इसकी वजह से तकरीबन 10 राज्यों में नगदी की समस्या उठ खड़ी हुई है। उधर वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ ही रिजर्व बैंक भी दावा कर रहा है कि बाजार में पर्याप्त नगदी है। इस विरोधाभासी स्थिति के बीच समस्या का असली कारण न ही किसी के पास है और न कोई ठोस आश्वासन ही मिल पा रहा है। बहरहाल एक व्यवहारिक वजह जरूर पता चली और वो ये कि अक्षय तृतीया से विवाह सीजन शुरू होने के कारण बड़ी मात्रा में नगदी लोगों ने बैंकों से निकालकर संग्रहीत कर ली। दूसरा कारण गेंहूँ की खरीदी का सीजन होने से भी बड़े पैमाने पर नगदी की जरूरत पड़ गईं। लेकिन ये कारण तो भारत में स्थायी हैं। विवाह और कृषि दोनों भारतीय अर्थव्यव्यस्था की रीढ़ हैं। इन दोनों में किसी भी तरह की कमी से बाजार और सरकार दोनों चिंता में पड़ जाते हैं। बाजार में रौनक तभी आती है जब अच्छी फसल आए और फिर ढेर सारी शादियां भी हों। इसलिए ये कहना कि शादियों और फसलों के कारण नगदी संकट है तो ये मुंह छिपाने जैसा है। केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक दोनों को बीते कुछ महीनों में नगदी की जो स्थिति क्रमश: गम्भीर होती गई उस पर निगाह रखकर समय रहते समुचित कदम उठाने चाहिए थे लेकिन सब खुशफहमी पाले बैठे रह गए। उधर 2 हज़ार वाला नोट काले धन वालों की तिजोरियों में भरने से भी मुद्रा संकट गंभीर होता चला गया। खबर है रिजर्व बैंक अब हरकत में आया है और नोटों की छपाई भी तेज कर दी गई है किंतु स्थिति सामान्य होने तक सरकार के आर्थिक प्रबंधन के साथ ही साख पर भी जोरदार प्रश्नचिन्ह लग गए हैं। नोटबन्दी के बाद जो नाराजगी मोदी सरकार के प्रति उत्पन्न हुई थी वह समय के साथ कम होने लगी थी किन्तु जीएसटी को लागू करने में आईं अकल्पनीय कठिनाइयों के बाद अब इस अघोषित सी नोटबन्दी से केंद्र सरकार और भाजपा दोनों की क्षमताओं पर शंका के बादल और गहरे हो गए हैं। ऐसा लगता है प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना अपराधबोध का शिकार होकर रह गई है। हर बात के लिए जनता से त्याग करने की अपेक्षा एक हद तक ही स्वीकार्य हो सकती है लेकिन सरकार को भी संवेदनशील होना चाहिए जिसका अभाव खुलकर महसूस किया जा सकता है। वर्तमान स्थिति किसी भी दृष्टि से केंद्र सरकार के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि नगदी का अभाव सामान्य व्यवसायिक भाषा में दिवालियापन कहलाता है जो सरकार जैसी संस्था के लिए किसी भी तरह से श्रेयस्कर नहीं होता। अब भले ही सरकार और रिजर्व बैंक मिलकर कितनी भी कोशिशें कर लें किन्तु उनकी साख और प्रबंधन क्षमता पर जो दाग लग गए वे आसानी से नहीं धुलने वाले। गलती से सीखने की बजाय उसे दोहराने की प्रवृत्ति ही इस हालत का असली कारण है ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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