मामला चूंकि फिल्म स्टार से जुड़ा है इसलिए पूरे देश का ध्यान उस पर जाना स्वाभाविक था। समाचार माध्यमों ने भी अतिरिक्त कवरेज देकर अभिनेता सलमान खान को 5 साल की सजा मिलने का खूब प्रचार किया। अधिकतर टीवी चैनल जेल में उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी जुटाने में लगे रहे। एक तरह से उनको मिली सजा और जेल जाना सबसे बड़ी खबर बन गई। हालांकि इसके पहले इसी मामले में सलमान जोधपुर जेल में कुछ दिन रह चुके थे लेकिन इस मर्तबा उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई जाने से खबर और बड़ी बन गई। इसको लेकर जनमानस में तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ हुईं। अधिकतर ने अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और कानून के समक्ष समानता की पुष्टि हो गई। स्मरणीय है किसी अन्य प्रकरण में सलमान के बरी होने पर लोगों ने न्यायपालिका पर उंगलियां उठाई थीं लेकिन काले हिरण के शिकार का अपराध साबित होने के बाद सलमान को 5 साल की सजा मिलने से ये एहसास जागा है कि बड़ी हैसियत वाले भी कानून की निगाह से नहीं बच सकते। हाल ही में लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के कई मामलों में लंबी सजाएं होने से भी न्यायपालिका के प्रति विश्वास बढ़ा है। हालांकि सलमान के साथ आरोपी बनाए गए अन्य अभिनेता-अभिनेत्रियों को बरी किये जाने पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन मुख्य आरोपी चूंकि सलमान रहे इसलिये उन्हें दंडित करने का निर्णय न्यायाधीश ने किया। बहरहाल इस फैसले के बाद एक बार फिर न्याय की धीमी गति पर बहस चल पड़ी है। 20 साल बाद हुए इस फैसले में विरुद्ध ऊपरी अदालतों में अपील होंगी। सर्वोच्च न्यायालय तक ये विवाद जाने की उम्मीद है। ऐसे में अंतिम निपटारा होने में कम से कम 5 वर्ष लगना बड़ी बात नहीं होगी। निश्चित रूप से ये स्थिति आदर्श नहीं कही जा सकती। लालू को भी जिन मामलों में सजा मिली वे सब दशकों पुराने हैं। न्यायालयों में लंबित मुकदमों के ढेर की वजह से ही निपटारे में विलम्ब होता है वहीं अभियोजन पक्ष को सबूत और गवाह बचाए रखने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। विशेष रूप से अति विशिष्ट और सम्पन्न लोगों के मामले तो कछुआ से भी धीरे चलते हैं। जनअपेक्षा है महत्वपूर्ण प्रकरणों को दस-बीस साल खींचने की बजाय एक निश्चित समय सीमा में निपटाया जाए जिससे न्यायपालिका की छवि भी सुधरे तथा अपराधियों को साक्ष्य नष्ट करने का अवसर न मिल पाए। न्यायपालिका का डर भी तभी रहेगा जब त्वरित न्याय की स्थितियां बनें।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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