Thursday 12 April 2018

सीबीआई को जांच सही निर्णय

उप्र के एक भाजपा विधायक पर लगे दुष्कर्म के आरोप पर जमकर बवाल मचा है। पीडि़ता के पिता की हिरासत में मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु का कारण मारपीट बताए जाने के बाद विधायक के भाई को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। दुष्कर्म की शिकार युवती ने विधायक पर बलात्कार का आरोप लगाया किन्तु उसके कतिपय बयानों में विरोधाभास का लाभ लेकर उन्नाव की पुलिस ने प्राथमिकी में विधायक का नाम नहीं लिखा जिसके कारण हल्ला मचा गया। विशेष जांच दल भी बना दिया गया जिसकी रिपोर्ट सम्भवत: कल रात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंच गई। उधर अलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी मामले का स्वत: संज्ञान लेकर दबाव बनाया। बाद में देर रात विधायक अपने समर्थकों के साथ लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के यहां चहल कदमी करते जा पहुंचे। टीवी रिपोर्टर्स को अपनी बेगुनाही की दलीलों के साथ उन्होंने ये भी बताया कि उनकी फरारी के बारे में समाचार माध्यमों द्वारा फैलाई गई अफवाहों के निराकरण के लिए वे खुद होकर पुलिस को ये बताने आये हैं कि जब जहां जरूरत हो, बुलाने पर वे हाजिर हो जाएंगे। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक घर पर मिले नहीं सो विधायक जैसे गए वैसे ही मय काफिला लौट आये। इस कवायद के पीछे दो बातें बताई जा रही हैं। पहली तो ये कि योगी जी ने उन्हें प्रगट होने कहा और दूसरी ये कि विशेष जांच दल की रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाए जाने सम्बन्धी जानकारी मिलने के बाद वे शहीदाना अंदाज में आ गए जिससे गिरफ्तारी होने पर ज्यादा किरकिरी न हो। पूरे मामले में भाजपा की जो फज़ीहत हो रही है उसे देखते हुए भी विधायक को गिरफ्तार करवाकर जनाक्रोश ठंडा करने की कार्ययोजना बनाई गई होगी। उप्र को अपराधियों से मुक्त करवाने के लिए जुटे मुख्यमंत्री की छवि और क्षमता पर ऐसी घटनाएं सवाल खड़े कर रही हैं। अब तक सौ से ऊपर कुख्यात अपराधी और उनके सरगनाओं को एनकाउंटर के जरिये मारकर योगी जी की सरकार ने जो विश्वास पैदा किया वह उन्हीं की पार्टी के  विधायक की करतूत से खंडित होने लगा है। दो उपचुनाव हारने के बाद राजनीतिक दृष्टि से रक्षात्मक हो गये मुख्यमंत्री के लिए तो उन्नाव दुष्कर्म कांड बड़ा झटका है ही, पूरी भाजपा इसकी वजह से शर्मसार हो गई है। अब विधायक की गिरफ्तारी हो भी जावे तो पार्टी और सरकार के दामन पर लगे दाग आसानी से धुलने वाले नहीं हैं। ऐसे मामलों में यद्यपि आरोप साबित करना आसान नहीं होता और वीआईपी का नाम होने से पुलिस और प्रशासन के हाथ भी बंधे होते हैं किन्तु आज का दौर प्रजातन्त्र के पांचवे स्तम्भ के तौर पर स्थापित हो चुके सोशल मीडिया का है जो किसी भी जांच दल और अदालत से तेज कार्रवाई कर फैसले भी सुना देता है। अनेक चर्चित मामले सोशल मीडिया के कारण ही प्रकाश में आते हैं। ज्यादा न सही इतना तो कहा ही जा सकता है कि उसकी वजह से अब ऐसे प्रकरणों पर पर्दा डालने के प्रयास सफल नहीं हो पाते। उन्नाव के भाजपा विधायक पर लगे आरोप कितने सही हैं ये तो अदालत तय करेगी किन्तु दुष्कर्म के साथ ही पीडि़ता के पिता की संदिग्ध मौत भी चूंकि हो गई इसलिये मामला और भी सनसनीखेज हो गया। भाई की गिरफ्तारी के बाद विधायक को गिरफ्तार करने की मांग स्वाभाविक तौर पर तेज हो गई थी। बीती रात जो भी हुआ वह नाटक था या विधायक जी की सरलता, ये तो वे ही जानें किन्तु इस एक मामले ने उप्र की सरकार और भाजपा दोनों को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कल रात विधायक जी स्वयं को भाजपा का कार्यकर्ता बताते हुए परम पवित्र होने का जो दावा कर रहे थे वह तब विश्वसनीय माना जाता जब आरोप लगते ही वे पुलिस के पास जाकर जांच में सहयोग की बात कहते। उनकी  ये बात मान भी लें कि उनके विरुद्ध साजिश हुई है तब उन्हें साजिशकर्ताओं के नाम उजागर करना चाहिए जो वे अब तक नहीं कर सके। जिन स्थितियों में पीडि़ता के पिता की मौत हुई उसकी वजह से विधायक और उनके कुनबे पर सन्देह के बादल और भी घने होते जा रहे हैं। मामला जिस तरह उलझ गया है उसमें जांच सीबीआई सही तरीके से कर सकेगी क्योंकि उप्र पुलिस और विशेष जांच दल पर जनता को उतना भरोसा नहीं रहेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निजी ईमानदारी पर सन्देह नहीं होने के बावजूद भी ये तो कहना ही पड़ेगा कि दुष्कर्म पीडि़त युवती द्वारा लगाए गए सार्वजनिक आरोप के बाद भी यदि विधायक का नाम प्राथमिकी में दर्ज नहीं हुआ तब राज्य सरकार की भूमिका पर ऊँगली उठना स्वाभाविक है। जनापेक्षा ये है कि जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरणों में त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई होनी चाहिए वरना कानून व्यवस्था में लोगों का बचा-खुचा भरोसा भी जाता रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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