Saturday 28 April 2018

चीन : स्वागत-सत्कार से खुशफहमी न पालें मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चौथी चीन यात्रा को लेकर जो खबरें आ रही हैं या प्रचारित की जा रहीं हैं  उनसे तो ऐसा प्रतीत होता है मानों भारत के साथ चीन के रिश्ते बहुत ही प्रगाढ़ हों। राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने गर्मजोशी से सामान्य शिष्टाचार तोड़कर श्री मोदी का स्वागत करते हुए जिस तरह से दोस्ती की कसमें खाईं और भारत का गुणगान किया वह हालिया अतीत में उनके अपने और चीनी राजनयिकों के बयानों सहित वहां के सरकारी प्रचारतंत्र पर प्रसारित भारत विरोधी सामग्री के एकदम विपरीत है। डोकलाम विवाद में दोनों देशों की सेनाओं के आमने-सामने आकर खड़े हो जाने के कारण लम्बे समय तक जबरदस्त तनाव बना रहा। अनेक अवसर पर तो लगा कि युद्ध अवश्याम्भावी है किंतु इसकी नौबत नहीं आई। लेकिन चीन द्वारा उस इलाके में सड़कें बनाने का काम जारी है और अभी भी वह डोकलाम के बड़े इलाके पर कब्जा जमाने के मंसूबे पाले हुए है। भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा जिस माहौल में शुरू हुई उसे कूटनीतिक दृष्टि से अनुकूल नहीं माना जा रहा था। विदेश नीति के अनेक जानकारों के अनुसार चीन और अमेरिका के बीच आर्थिक मामलों को लेकर उत्पन्न जबर्दस्त तनाव की वजह से भी स्थितियां सही नहीं लग रही थीं। उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी एक दूसरे पर गुर्राने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे थे। भारत चूंकि अमेरिका के काफी करीब माना जाता है इसलिए चीन भी मन ही मन भन्नाया हुआ था। जापान के साथ भी उसका झगड़ा जारी है जिसके साथ श्री मोदी ने काफी दोस्ताना बना लिया है। राष्ट्रपति चिनपिंग की महत्वाकांक्षी वन रोड वन बेल्ट परियोजना से दूरी बनाकर भी भारत ने चीन को चिढ़ाने का जो साहस दिखाया उसकी वजह से ही बाकी तनाव पैदा हुए। अरुणाचल और तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा को लेकर भी बीजिंग में बैठे हुक्मरान भारत के प्रति अपनी नाराजगी ज़ाहिर करते रहे हैं। बीते दिनों चिनपिंग ने ज्योंही अपने आजीवन राष्ट्रपति बने रहने सम्बन्धी व्यवस्था की त्योंही ये कयास लगने लगे थे कि वे भी माओत्से तुंग की तरह कठोर तानाशाह बनकर सामने आएँगे लेकिन श्री मोदी की मौजूदा दो दिवसीय यात्रा में जो माहौल दिखाई दिया वह चौंकाने वाला कहा जा सकता है। चिनपिंग जिस तरह से शक्तिशाली राष्ट्रप्रमुख बने उसके बाद पूरी दुनिया उनसे जो अपेक्षा करती थी उसके ठीक विपरीत उनका व्यवहार श्री मोदी की यात्रा के दौरान रहना भारतीय कूटनीति की वजनदारी मानी जा सकती है लेकिन चीन का इतिहास और चरित्र दोनों उसकी किसी भी सदाशयता पर आसानी से भरोसा करने की इजाजत नहीं देते और उस आधार पर श्री मोदी को भी बीजिंग में हुए भव्य स्वागत और मीठी-मीठी बातों से पिघलने से बचना होगा। चीन ने द्विपक्षीय सहयोग के तमाम विषय इस दौरान उठाते हुए भारत के साथ मिलकर विश्व रंगमंच पर साझा भूमिका निर्वहन करने की जो बात कही वह सुनने में तो अच्छी लगती है। लेकिन दोनों देशों के बीच विवाद के जो दो प्रमुख कारण हैं उन पर चिनपिंग ने न तो कोई खास आश्वासन दिया और न ही अपनी नीति में परिवर्तन का संकेत। इनमें पहला है सीमा विवाद और दूसरा पाकिस्तान को बीजिंग का स्थायी समर्थन। जब तक ये दोनों मुद्दे नहीं सुलझते तब तक चीन से कितनी भी अच्छी बातें हों उनसे लाभ नहीं होने वाला। नरेंद्र मोदी विदेश नीति के मोर्चे पर काफी सक्रिय और प्रभावशाली साबित हुए हैं। उनकी हालिया यूरोप यात्रा भी काफी सफल बताई गई। सभी विश्वशक्तियों से वे जिस आत्मविश्वास के साथ बात करते हैं उससे उनकी और भारत दोनों की बेहतर छवि बन सकी है लेकिन चीन सबसे अलग ही नहीं धूर्त भी है। चिनपिंग को भारत में श्री मोदी ने जो आदर सत्कार दिया उसका प्रतिफल बहुत आशाजनक नहीं मिला। पाकिस्तान को लेकर उनकी नीति यथावत है वहीं अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत के महत्व को बढऩे से रोकने में भी वह कोई संकोच नहीं करता। ये सब देखते हुए श्री मोदी को बीजिंग में मिले स्वागत से किसी खुशफहमी में नहीं आना चाहिए क्योंकि धोखेबाजी चीन के डीएनए में है और उसकी विदेश नीति में सज्जनता का पूरी तरह अभाव है। चिनपिंग भले ही ऊपर से कितने भी आधुनिक और हँसमुख दिखाई देते हों लेकिन उनका दिल भी माओ युग की कुटिलताओं से भरा है। यदि नरेंद्र मोदी इसे नहीं समझते तो फिर उन्हें भी पछतावा झेलना पड़ेगा ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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