Monday 2 April 2018

जनता का तेल निकाल रहे पेट्रोल-डीजल

पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम पदार्थों के दाम अचानक उछलने से आम जनता हलाकान है। मोदी सरकार के दौरान उक्त वस्तुओं की कीमतें उच्चतम स्तर को छू गईं हैं। बेशक इसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां जिम्मेदार होती हैं किंतु भारत सरकार ने कीमतें कम होने का लाभ चूंकि भारतीय उपभोक्ता को नहीं दिया इसलिये वह वैश्विक मंडी की तेजी से कीमतें बढऩे के औचित्य को साबित करने का नैतिक अधिकार भी खो चुकी है। तेल कंपनियों के पिछले घाटे की भरपाई के नाम पर अंधाधुन्ध करारोपण के जरिये जनता का तेल निकालने की जो धूर्तता बीते चार वर्ष में की जाती रही उसकी वजह से प्रधानमन्त्री की छवि पर भी विपरीत असर पड़ा है। आयातित कच्चे तेल की कीमतें बढऩे के बाद भी यदि केंद्र और राज्य सरकारें अपने करों को युक्तियुक्त रखें तब भी पेट्रोल-डीजल के दाम कम से कम 25 रु. प्रति लीटर तो कम हो ही सकते हैं। भाजपा शासित गोवा में ऐसा किया भी जा चुका है। विकास सम्बन्धी कार्यों के लिए पेट्रोल-डीजल पर की जा रही मुनाफाखोरी का औचित्य साबित करने की जो कोशिश सरकार की तरफ  से कभी-कभार होती है वह लोगों के गले नहीं उतरती क्योंकि जिस आसानी से विजय माल्या और नीरव मोदी अरबों रु. का घोटाला करने के बाद फुर्र हो गए उसकी वजह से आम जनता के मन में ये धारणा गहराई तक बैठ गई है कि मोदी सरकार अमीरों पर मेहरबानी करती है वहीं जनसामान्य के लिए परेशानी पैदा करना उसकी नीतिगत आदत बन चुकी है। समझ में नहीं आता कि ये लूटखसोट कब तक चलेगी? बीच में ये भरोसा जागा था कि पेट्रोल-डीजल को भी जीएसटी के तहत लाया जावेगा जिससे उनके दाम घटकर क्रमश: 50 और 40 रु. प्रति लिटर हो जाएंगे किन्तु वह उम्मीद भी मृगमरीचिका लगने लगी है। ऐसा लगता है मोदी सरकार को आम जनता की तकलीफों और गुस्से का एहसास करवाने में भाजपा संगठन या तो उदासीन है या फिर सत्ता सुंदरी के सान्निध्य ने उसकी जुबान पर ताले डाल दिये हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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