Thursday 26 April 2018

कलियुगी भगवानों से सावधानी जरूरी


लाखों ही नहीं करोड़ों लोगों के आराध्य आसाराम (बापू) को जो सजा मिली उस पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। वृद्धावस्था के बाद भी उन्हें ताउम्र जेल में रखने के अदालती फैसले से असहमति रखने वाले भी गिने चुने होंगे। आसाराम के प्रति अखंड आस्था रखने वाले उनके आध्यात्मिक अनुयायी भी समझ नहीं पा रहे हैं कि किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें क्योंकि उन पर एक बालिका के साथ दुराचार का आरोप प्रमाणित हुआ है। आसाराम के साथ उस दुष्कर्म में सहयोगी रहे अन्य लोगों को भी कड़ी सजा अदालत ने दी। हालांकि अभी उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में अपील का अवसर उन सभी के पास है लेकिन जिस तरह का प्रकरण है उसे देखते हुए कोई राहत शायद ही मिल सके। ऐसे ही कुछ और मामले दूसरी जगह विचाराधीन हैं जिनमें आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं को दंडित किया जा सकता है। आसाराम की उम्र को देखते हुए ये सोचना गलत नहीं होगा कि शायद जेल की दीवारों के पीछे ही उनका जीवन कट जाए। लेकिन उनको मिली सजा उतना बड़ा मुद्दा नहीं जितना ये कि आखिर उन जैसे गृहस्थ व्यक्ति आध्यात्म के दुनिया में इतने प्रतिष्ठित कैसे हो गए? आसाराम का पूरा का पूरा परिवार एक आर्थिक साम्राज्य का मालिक बन बैठा। देश में उनकी कुल सम्पत्तियों की कीमत अरबों-खरबों में होगी। आसाराम पहले व्यक्ति नहीं हैं जो इस तरह के पाखंड के जरिये कुकृत्य करते रहे। इसके पहले राम-रहीम और कुछ अन्य  व्यक्ति भी आध्यात्म की आड़ में अवैध धंधे करते हुए पकड़े जा चुके हैं। सभी की कार्यप्रणाली करीब-करीब एक सी थी। लोगों की भावनाओं का शोषण करते हुए अपनी वासनाएं पूरी करने का ये तरीका जिस तेजी से बढ़ा उसके लिए केवल अशिक्षा और अंधविश्वास को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि अच्छे -अच्छे सुशिक्षित और संपन्न लोग भी जिस तरह से इन फर्जी भगवानों के मोहपाश में फंस जाते हैं वह देखकर आश्चर्य होता है। प्रशासनिक अधिकारी और न्यायाधीशों तक को इनके इर्द-गिर्द मंडराते देखा जा सकता है। इनके आभामंडल के विस्तार में सबसे बड़े सहायक बनते हैं राजनेता। चूंकि इन बाबाओं के पास अनुयायियों की बड़ी फौज होती है लिहाजा हर राजनीतिक दल को लगता है कि इन आध्यात्मिक हस्तियों को खुश करने से इनके चेलों का वोट थोक के भाव कबाड़ लिया जा सकता है। हाल के कुछ वर्षों में साधु-सन्त खुद  होकर भी सियासत में रुचि लेने लगे हैं। हाल ही में मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा देकर अपनी भद्द पिटवाई। इसी तरह हरियाणा और पंजाब के विधान सभा चुनाव में बाबा राम रहीम का समर्थन लेने दोनों राष्ट्रीय दलों के नेता मत्था टेकते रहे। जब भाजपा ये करती थी तब बाकी पार्टियाँ उसका मजाक उड़ाया करती थीं लेकिन गुजरात के चुनाव में राहुल गांधी भी मंदिरों के चक्कर काटते देखे गए और अब कर्नाटक में राहुल तथा अमित शाह वहां के मठों में जा-जाकर वोटों का प्रसाद मांग रहे हैं। एक समय था आसाराम के आगे-पीछे भी नेतागण मंडराते दिखाई देते थे। उनके पकड़े जाने के बाद उमा भारती और सुब्रमण्यम स्वामी ने उनके पक्ष में बयान भी दिए थे। हिन्दू बाबाओं के अलावा भी दुष्कर्म एवं इसी तरह के अपराधों में अन्य धर्मों से जुड़े धर्माचार्य भी लिप्त पाए जा रहे हैं। मदरसों में यौन अपराध के साथ ही ईसाई नन भी शारीरिक शोषण की शिकार हो रही हैं। इस तरह की घटनाओं से आध्यात्मिक विभूतियों के प्रति आस्था और सम्मान तो कम हो ही रहा है धर्म के बारे में भी विपरीत धारणाएं बनने लगी हैं। धर्म और साधु-संत पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं ये कहना तो गलत होगा लेकिन कलियुग की जो कल्पना पूर्वज कर गए वह काफी हद तक सही साबित होती लग रही है। आसाराम के पहले भी संतों के भेष में कुकर्म करने वालों का पर्दाफाश हो चुका है लेकिन उसके बाद भी लोगों की आंखें नहीं खुलतीं तो उसके लिए राजनीतिक नेता और समाज के वे प्रभावशाली शख्स जिम्मेदार हैं जो इन बाबाओं को सिर पर बिठाकर भगवान बना देते हैं। समय आ गया है जब इन फर्जी भगवानों से धर्म और आध्यात्म को आज़ाद करवाया जावे। लेकिन एक दिक्कत ये भी तो है कि जिन धर्माचार्यों के जिम्मे इस बीमारी को ठीक करने का जिम्मा है वे खुद भी इसे प्रश्रय दे रहे हैं। महामंडलेश्वर और जगद्गुरु की पदवी खरीदी जाने लगी है जिसका प्रमाण राधे मां जैसे लोग हैं। राम रहीम और आसाराम को सजा होने से धर्म के नाम पर फर्जीवाड़ा और अनैतिक काम रुक जाएंगे ये सोचना गलत होगा क्योंकि अंधविश्वास को फैलाने में समाज के जिम्मेदार तबके के साथ ही  समाचार माध्यमों का भी हाथ रहता है। बेहतर यही होगा कि राजनेता इन बाबाओं की चरणवंदना बन्द कर दें क्योंकि राजनीति की देखासीखी अन्य वर्ग भी अन्धभक्ति के जाल में फंसते हैं। आज भी देश में अनेक संत और धर्म स्थान हैं जहां पूरी तरह से सात्विकता है लेकिन आज का इंसान अच्छे बुरे में भेद करने की बजाय जल्दबाजी में किसी का भी अनुसरण करने लग जाता है। जिसका लाभ राम रहीम और आसाराम जैसे शातिर लोग उठा लेते हैं। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि उनको बिगाडऩे में भक्तों की भूमिका भी रहती है जो बिना कुछ समझे अपने घर की बच्चियों और महिलाओं को इनके आश्रम में जाने की छूट देते हैं। कुल मिलाकर पेट्रोल और आग को दूर  रखने जैसी सावधानी समाज को बरतनी होगी वरना ये घिनौना कारोबार यूँ ही चलता रहेगा ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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