Saturday 11 April 2020

लॉक डाउन के अगले चरण में ज्यादा चुनौतियां



नाउम्मीदी के अँधेरे के बीच उम्मीद की किरणें भी रह-रहकर सम्बल देती हैं। देश में कोरोना संक्रमण के शिकार तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। देश की व्यावसायिक राजधानी मुम्बई के बारे कहा जाने लगा है कि वह अमेरिका के न्युयॉर्क  जैसी हालत में जा पहुंची है। पूरे देश में कोरोना की जाँच में तेजी आने से नये मामले सामने आ रहे हैं और आने वाले 10 दिनों के भीतर संख्या में और वृद्धि की पूरी सम्भावना है। इस वजह से ये आशंका भी उत्पन्न हुई है कि कोरोना भारत में सामुदायिक संक्रमण की स्थिति में पहुँच गया है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने तो इस आशय की घोषणा भी कर दी लेकिन केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने इसका खंडन किया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभी मुख्यमंत्रियों से वीडियो चर्चा करने के बाद लॉक डाउन बढ़ाने संबंधी फैसले को अंतिम रूप देंगे। यद्यपि अनेक राज्यों ने तो बिना प्रतीक्षा किये ही उसकी अवधि दो सप्ताह के लिए बढ़ा दी है। इस सबके बीच अच्छी खबर ये है कि भारत में कोरोना ग्रसित लोगों के ठीक होने का आँकड़ा 10 फीसदी जा पहुंचा है। अस्पताल से ठीक होकर लौटे ये लोग कोरोना को लेकर व्याप्त भय और गलतफहमियों को दूर करने में सहायक बन रहे हैं। लोगों को ये लगने लगा है कि कोरोना का इलाज संभव है। दूसरी तरफ अस्पतालों में अब पहले से अधिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। शासन और प्रशासन के स्तर पर जानकारियों और अनुभवों का आदान-प्रदान होने से भी बीमारी से लडऩे में काफी मदद मिल रही है। लेकिन अभी भी एक वर्ग ऐसा है जो जांच से भाग रहा है। विशेष रूप से तबलीगी जमात के दिल्ली स्थित मुख्यालय मरकज से निकलकर देश भर में फैले जमाती कोरोना के विरुद्ध चल रही जंग को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। सामुदायिक संक्रमण सम्बन्धी आशंका के पीछे भी ये जमाती ही हैं जिन्होंने मस्जिदों के अलावा मुस्लिम बस्तियों में छिपकर अपनी बिरादरी के बाकी लोगों को भी कोरोना का संक्रमण बांटा। भले ही ये कहना कुछ लोगों को बुरा लगे लेकिन जमातियों की गन्दी सोच ने इस लड़ाई को लंबा और कठिन बना दिया। वरना 21 दिन के लॉक डाउन के बाद अभी तक भारत कोरोना को हराने के मामले में काफी हद तक सफल हो चुका होता। बावजूद इसके हालात नियन्त्रण में बने हुए हैं। लेकिन लॉक डाउन के दूसरे चरण में सबसे बड़ी समस्या साधनहीन तबके की जरूरतों को पूरा करने की है। बीते दो हफ्ते में समाज की सामूहिक संवेदनशीलता का श्रेष्ठतम स्वरूप देखने मिला। शासन ने भी इस तबके की भरसक मदद की और प्रशासन का सेवा भाव भी काबिले तारीफ रहा किन्तु लॉक डाउन यदि दो सप्ताह और बढ़ा तब भी क्या ऐसी ही परोपकारी भावना बनी रहेगी, ये बड़ा सवाल है। इसी के साथ ये भी देखना होगा कि जरुरी सामान की आपूर्ति क्या पहले जैसी ही कायम रह पायेगी? इसीलिये ये सुनने में आया है कि सरकार द्वारा लॉक डाउन के अगले चरण में इनका उत्पादन करने वाली इकाइयों को दोबारा शुरू करने की अनुमति कुछ शर्तों के साथ दी जायेगी । बीते कुछ दिनों में एक बात ये भी देखने आई है कि सोशल डिस्टेंसिंग का जितना पालन शहरों में हो रहा है उतना कस्बों और ग्रामीण इलाकों में नहीं हो पा रहा। मप्र में ही कुछ छोटे शहरों में मिले कोरोना के मरीज इसका प्रमाण हैं। दूसरी समस्या उन राज्यों में हो रही है जहां अन्य राज्यों के मजदूरों को बिना काम के रोक लिया गया है। कल गुजरात के एक शहर में किसी निर्माणाधीन भवन के काम में लगे उड़ीसा के मजदूरों ने उन्हें घर वापिस भेजने की मांग करते हुए उपद्रव कर दिया। कुछ और जगहों से भी ऐसी खबरें मिली हैं। भले ही ये खबरें इक्का-दुक्का हों किन्तु इन्हें हांडी का एक चावल मानकर आने वाले दिनों में बेरोजगार हो चुके करोड़ों लोगों की न्यूनतम जरूरतें पूरी करने की समुचित और अचूक व्यवस्था बनानी होगी। सबसे बड़ी परेशानी आ रही है राशन की दुकानों तथा उन बैंकों में जहां अनाज और खाते में जमा सहायता राशि प्राप्त करने के लिए भीड़ उमड़कर अव्यवस्था फैला रही है। इसके चलते प्रशासन के काम में समस्याएं आ रही हैं। बेहतर हो इन मोर्चों पर कोरोना वॉरियर्स के रूप में सेवाएं दे रहे स्वयंसेवकों को तैनात किया जाए जिनका क्षेत्रीयजनों से जीवंत सम्पर्क होता है। इसके साथ ही जनप्रतिनिधियों की सेवाएँ भी ली जा सकती हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि लॉक डाउन का अगला चरण पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा दबाव वाला होगा। पहले दौर में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या सैकड़ों में थी जो 25 - 30 प्रतिदिन की दर से बढ़ रही थी। लेकिन अब ये संख्या  8 हजार हो रही है और नित्य प्रति 10 प्रतिशत की वृद्धि देखी जा रही है। इसके अलावा बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन्हें संदेह के कारण क्वारंटाइन में कर रखा गया है। ऐसे में शासन-प्रशासन पर अतिरिक्त भार बढ़ता जा रहा है। चिकित्सा के काम में लगे डाक्टर्स और उनके सहयोगी भी दिन रात अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं। ऐसे में लॉक डाउन बढऩे के बाद समाजसेवा में लगे व्यक्तियों और संस्थाओं को भी दोगुनी शक्ति से मैदान में डटना होगा। इसके साथ ही आम जनता को भी देखना और सोचना होगा कि ये संकट असाधारण और अप्रत्याशित होने से व्यवस्थाएं अपर्याप्त होना स्वाभाविक है और बजाय असंतोष फैलाने के हमें हालातों के साथ जीने की आदत डालना होगी। कोरोना संकट से उबरना तभी सम्भव हो सकेगा जब देश में उसके नये मरीज मिलने बंद हो जायेंगे। इसलिए स्थिति सामान्य होने की निश्चित अवधि कोई नहीं बता सकेगा। बेहतर होगा हम केवल अपेक्षा करने की बजाय व्यवस्था में सहयोग करे क्योंकि वह हमारी सुरक्षा और सुविधा के लिए ही तो बनाई गई है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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