Saturday 25 April 2020

ताकि लॉक डाउन बढ़ाने की नौबत न आये



दूसरे लॉक डाउन को भी दस दिन हो गए। जाँच का दायरा ज्यों-ज्यों फैलता जा रहा है त्यों-त्यों कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या निरंतर बढती जा रही है। मौतें भी हो रही है और लोग ठीक होकर भी घर जा रहे हैं। लेकिन अभी तक इस बात के कोई संकेत नहीं मिल रहे जिनसे ये अंदाज लगाया जा सके कि 3 मई के बाद लॉक डाउन हटाने का निर्णय किया जा सकेगा या नहीं। वैसे आज आई एक रिपोर्ट के अनुसार लॉक डाउन अपने उद्देश्य में सफल होता दिख रहा है क्योंकि संक्रमित मरीजों की संख्या अब 10 दिनों में दोगुनी हो रही है। लेकिन इस आँकड़े के साथ भी ये पेंच है कि इसे आनुपातिक आधार पर देखा जा रहा है जबकि होना ये चाहिए कि नये मामलों की अपनी संख्या में रोजाना कमी हो। हालाँकि विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमित लोगों की संख्या 50 हजार पहुंचने के बाद ही नए संक्रमणों का आंकड़ा क्रमश: नीचे आता जाएगा। यद्यपि एक वर्ग इस विश्लेषण से सहमत नहीं है। बावजूद इसके ये बात उम्मीद जगाने वाली है कि देश के अनेक जिले कोरोना संक्रमण से मुक्त भी हो चले हैं। लेकिन एक नया खतरा पैदा हो सकता है। विभिन्न राज्य सरकारें जनमत के दबाव और समाचार माध्यमों में हो रही आलोचना के कारण दूसरे राज्यों में फंसे अपने मजदूरों को वापिस लाने की व्यवस्था कर रही हैं। इनकी संख्या भी बड़ी है। पहले तो इतने लोगों का परिवहन बड़ी समस्या होगी और यात्रा के दौरान सोशल डिस्टेसिंग का पालन भी लगभग असंभव होगा। राज्य में आने वाले इन लोगों को आइसोलेशन में रखना छोटी बात नहीं होगी। चूँकि इस तबके में अशिक्षित लोग ही ज्यादा होते हैं अत: उनसे अनुशासन की ज्यादा अपेक्षा करना भी व्यर्थ है। लेकिन ये ऐसा मुद्दा है जिसकी ज्यादा समय तक उपेक्षा भी नहीं की जा सकती। इसी तरह देश के अनेक शहरों में कोचिंग हेतु रह रहे विद्यार्थियों को भी वापिस लाने की व्यवस्था की जा रही है। हालांकि राज्य सरकारें अपने स्तर पर काफी प्रयासरत हैं लेकिन बड़ी संख्या में बाहर से लाये गये लोगों के कारण संक्रमण न फैल जाए ये देखना जरुरी है। इस दृष्टि से लॉक डाउन के बचे हुए दिनों में यदि नये संक्रमणों की संख्या में कमी नहीं आती तब उसे आगे बढ़ाना जरूरी हो जाएगा। और इसी बात का प्रचार जोरों से होना चाहिए। लॉक डाउन की उपयोगिता तो साबित हो चुकी है। पूरी दुनिया ये मान रही है कि भारत जैसे विशाल देश में इतनी बड़ी जनसंख्या को घरों में सीमित कर देना आसान नहीं था किन्तु तमाम विसंगतियों और अव्यवस्थाओं के बाद भी लॉक डाउन का पालन अधिकतर लोगों ने किया। हालाँकि घनी बस्तियों और झोपड़ पट्टी में सोशल डिस्टेंसिंग नहीं हो पा रही। इसी तरह मुस्लिम बस्तियों में भी घनी बसाहट की वजह से संक्रमित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई। कोरोना संकट से भारत कब तक आजाद होगा ये अभी कोई नहीं बता सकेगा। सरकार की तरफ  से जो बन पड़ रहा है वह कर रही है लेकिन कहीं जलीकुट्टी के बैल की शवयात्रा में हजारों लोग शामिल होकर कोरोना के फैलाव को आमंत्रण देने पर आमादा हैं तो कहीं मस्जिदों में सामूहिक नमाज पढ़ने की जिद की जा रही है। कुछ पढ़े लिखे लोग भी अनावश्यक घूमकर सुनसान शहर का हाल देखने की मूर्खता से भी बाज नहीं आ रहे। एक बात सबको ध्यान रखना होगी कि जब तक कोरोना का एक भी संक्रमित मरीज रहेगा उसकी वापिसी नामुमकिन है और इसके लिए आगामी 3 मई तक के लॉक डाउन को पूरी तरह सफल बनाना जनता का फर्ज है। किसी जिले या राज्य से संक्रमण पूरी तरह खत्म होने का भी कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि न तो वहां के लोग बाहर जा सकेंगे और न ही बाहर से कोई वहां आ पाएगा। ये देखते हुए कोरोना से चल रही लड़ाई में हर किसी को योद्धा की भूमिका निभाना होगी। कोरोना एक जंजीर की तरह से है। उसमें नई कड़ियाँ न जुड़ें तभी उसे तोड़ पाना सम्भव होगा वरना वह और लम्बी होते हुए मजबूत होती जायेगी। उसका फैलाव रोकने का ये बड़ा ही नाजुक समय है वरना हमें एक और लॉक डाउन के लिए तैयार हो जाना चाहिए जो हो सकता है इससे भी लम्बा हो। इसलिए खुद भी सतर्क रहें और दूसरों को भी ये समझाएं  कि लॉक डाउन सजा न होकर बचाव का उपाय है। बेशक इसके कारण हमारा सामान्य जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है लेकिन यदि हम अपनी और अपने परिजनों की सुरक्षा चाहते हैं तो हमें ये तकलीफ सहनी ही होंगी क्योंकि जीत का यही एकमात्र रास्ता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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