Thursday 9 April 2020

नई औद्योगिक क्रांति के लिए कर ढांचे में सुधार जरूरी



अब ये मान ही लेना चाहिए कि लॉक डाउन 14 अप्रैल के बाद और आगे बढ़ेगा। गत दिवस संसद के अनेक विपक्षी नेताओं से वीडियो कांफे्रंसिंग के जरिये प्रधानमंत्री ने कई घंटों तक चर्चा की। सभी दलों ने अपने - अपने सुझाव और अपेक्षाएं इस दौरान उन्हें बताईं और अंत में लॉक डाउन में वृद्धि का अधिकार उन पर छोड़ दिया। इस समर्थन के बाद 11 अप्रैल को श्री मोदी यही प्रक्रिया राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ दोहराएंगे और उसी के बाद देश को ये पता चल सकेगा कि लॉक डाउन के दूसरे चरण की अवधि और स्वरूप क्या होगा ? बीते एक पखवाड़े में कोरोना को रोकने के अभियान को मिली - जुली सफलता की बात कही जा सकती है। देश के कुछ हिस्सों में तो बहुत ही बढिय़ा तरीके से उस पर काबू कर लिया गया वहीं कुछ जगहों पर हालात बेहद खराब हैं। इसके लिए सरकार और जनता दोनों की लापरवाही को जिम्मेदार माना जा सकता है। लेकिन ये समय आलोचना करने की बजाय आत्मलोचन का है। कोरोना से राष्ट्रीय जीवन में जो ठहराव आया है उसका दूरगामी प्रभाव चिंतित करने वाला है। निराशावाद के प्रवर्तक अनेक समूह इस अवसर पर जनमानस को भयभीत करने के अपने परम्परागत पेशे के अनुरूप भविष्य को पूरी तरह अंधकारमय बताने अभियान चला रहे हैं। यदि वे सरकार और जनता को आने वाली वास्तविकता से अवगत करवाने के लिये ऐसा करें तब वह दायित्वबोध के अंतर्गत आयेगा लेकिन उनका मकसद इस माध्यम से देश में अस्थिरता और उसके बाद अराजकता फैलाना ही है। इसलिए सरकार को इस मोर्चे पर प्राथमिकता के साथ ध्यान देना चाहिए। विभिन्न औद्योगिक और व्यापारिक संगठनों ने केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष अपनी दिक्कतें पेश करते हुए राहत की मांग की है। जैसी आज खबर मिली उसके अनुसार लॉक डाउन की अवधि बढ़ाने के साथ ही केंद्र सरकार किसी बड़े राहत पैकेज का ऐलान करने जा रही हैं। ये क्या और कितना होगा इसके बारे में कोई अधिकृत जानकारी तो नहीं है लेकिन इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों को तात्कालिक तौर पर संबल देना है जो बिना देर किये रोजगार सृजन करने में सक्षम हैं। कारखाने और प्रतिष्ठान बंद रहने पर भी बिजली के फिक्स बिल आने से कारोबारी जगत परेशान है। ऐसे में जरूरत है इस तरह की कार्ययोजना लागू करने की जिससे उत्पादन बढ़ाने के काम में तेजी आ सके और इसके लिए केंद्र सरकार को कम से कम 5 साल के लिए कर पर्व (टीए एण्ड हॉलीडे) घोषित कर देना चाहिए। उत्पादन करने वाली इकाइयों और संस्थानों पर न्यूनतम कर लगाए जाएं। जीएसटी की दरों के विभिन्न स्तर अलग करते हुए अधिकतम दो किये जावें जो 5 से 10 फीसदी के भीतर रहें। इससे उत्पादन लागत घटेगी और उत्पादक पर बोझ कम होने से वह अपनी पूरी क्षमता से काम करते हुए उत्पादन में वृद्धि करेगा। लगात कम होने का असर चीजों के बिक्री मूल्य पर भी पड़ेगा। उनके और सस्ती होने से मांग और खफत में भी खासी वृद्धि होगी। ऐसा होने से सरकार को भी तुलनातमक रूप से उतना ही राजस्व मिलेगा जितना अधिक दरों से प्राप्त होता था। भारत की विशाल आबादी को बतौर बाजार मानकर विदेशी कम्पनियां यहां पैर फैला रही हैं। उसकी वजह से देश के उद्योगों के साथ ही छोटे व्यापार को भी जबरदस्त नुकसान हुआ है और आगे भी होगा। ऐसे में भारतीय सामान को सस्ता करने से वह आयातित चीजों के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में तो आसानी से टिकेगा ही विदेशी बाजारों में भी उसकी पकड़ मजबूत होगी। सवाल ये है कि सरकार के पास कर की आय घटने से उसका काम कैसे चलेगा? और इसका जवाब ये है कि मौजूदा हालात में तो उत्पादन में वृद्धि और रोजगार सृजन नामुमकिन होने से राजस्व की आवक तो वैसे भी थम गयी है। और इस कर ढांचे में उत्पादन वृद्धि के लिए उद्योगों से अपेक्षा करना भी निरी मूर्खता होगी। कम मुनाफे से ज्यादा बिक्री वाले आधारभूत सिद्धांत का उपयोग करते हुए एक नई औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिल सकता। केंद्र सरकार ने इस समय जरुरतमंदों के लिए अपना खजाना जिस तरह खोला है वही एक कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है। बेहतर हो इसी श्रेणी में व्यापार और उद्योग जगत को भी शामिल कर लिया जावे क्योंकि उसके पहियों पर ही विकास रूपी गाड़ी चलती है। सामान्य समय में बड़े निर्णय लेने में अनेक व्यवहारिक परेशानियां आती हैं लेकिन ऐसे वक्त में लीक से हटकर क्रांतिकारी फैसले लेने से भविष्य में किये जाने वाले सुधारों और बदलावों की बुनियाद मजबूत होती है। प्रधानमंत्री श्री मोदी का संगठन से सत्ता की राजनीति में पदार्पण गुजरात में आये विनाशकारी भूकम्प के फौरन बाद हुआ था। वहां का मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने खंडहरों की जगह पर विकास की जो अट्टालिका तानी उसी वजह से वे दुनिया की नजर में आये। उनकी कार्यप्रणाली से अवगत लोग जानते हैं कि वे छोटी-छोटी बात को भी गम्भीरता से लेते हैं। उद्योग और व्यापार जगत की समस्याओं से वे अनभिज्ञ होंगे ये सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता। उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना संकट प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया अभियान को सफलीभूत करने में सहायक होगा। कोरोना के बाद के भारत में नई आर्थिक और औद्योगिक क्रांति की अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं। दुनिया के तमाम विकसित देशों की अर्थव्यवस्था जिस तरह से तबाह हुई है उसके बाद भारत विश्व बाजार में एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर पैर जमा सकता है। रही बात चीन से प्रतिस्पर्धा की तो कोरोना वायरस को लेकर उसकी संदिग्ध भूमिका से पूरी दुनिया खार खाए बैठी है। जबकि भारत की छवि एक जिम्मेदार और विश्वसनीय देश के तौर पर और मजबूत हुई है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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