Sunday 26 April 2020

दो वर्ष की लिए आयकर मुक्त हो भारत अर्थव्यवस्था को पंख लगाने का क्रान्तिकारी उपाय




 
विगत दो दिनों में  मैंने कोरोना के बाद भारत के आर्थिक परिदृश्य पर अनेक लोगों के विचार जानने का प्रयास किया | कुछ को संचार  माध्यमों के जरिये सुनने और पढ़ने का अवसर मिला तो कुछ से फोन पर वार्तालाप हुआ | इस दौरान समस्याओं और संभावनाओं को लेकर विभिन्न विचार जानकारी में आये | आशा और निराशा दोनों पहलुओं से परिचय हुआ | विश्वास से भरे स्वर भी सुनने मिले और अनिश्चितता  का भाव भी सामने आया | कुछ लोगों का ये मानना है कि भारत के लिए ये एक स्वर्णिम अवसर है | लेकिन ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि मछली खुद आकर नहीं फंसेगी , हमें जाल फैलाना पड़ेगा | चीन के प्रति वैश्विक स्तर पर व्याप्त अविश्वास और नाराजगी का लाभ सीधे भारत को मिल जायेगा , इस आशावाद पर भी प्रश्नचिन्ह लगाने वाले हैं | ये मानने वाले  भी हैं कि चीन इतनी आसानी से बाजी  अपने हाथ से नहीं जाने देगा और कोरोना से सबसे पहले उबरकर उसने अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का चौधरी बनने की कार्ययोजना पर काम भी शुरू कर दिया है |

 जहां तक बात भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य की है तो उसे दुनिया की पांच प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मानने वाली धारणा तो 2019 आते - आते ही कमजोर पड़ने  लगी थी , जिसे मंदी का असर माना गया | 2019 - 20 के केन्द्रीय बजट में ही उसकी  झलक साफ़ दिखी | केंद्र सरकार का राजस्व संग्रह अनुमान  से काफी पीछे रहना चिंता का माहौल पैदा कर ही रहा था कि कोरोना ने भारत में अपने पैर जमाने शुरू किये | 

प्रारंभ में ऐसा लगा मानो वह भारतीय हालातों में ज्यादा प्रभावशाली नहीं होगा लेकिन वह खुशफहमी गलत साबित हुई और आज की स्थिति में देश का बड़ा भाग उससे जूझ रहा है | बीती शाम तक संक्रमित लोगों का आंकड़ा तकरीबन 27 हजार जा पहुंचा है | बीते 24 घन्टों में ही लगभग 2000 नए मरीजों का मिलना दर्शाता है कि कोरोना की श्रृंखला टूटने का नाम नहीं ले रही | हालांकि 800 से ज्यादा मौतों के बावजूद 5000 से अधिक  संक्रमित ठीक भी हुए किन्तु जिस तरह संख्या रोज बढ़ती जा रही है उसके मद्देनजर अब ये सम्भावना भी बलवती है कि सोमवार  को मुख्यमंत्रियों के साथ वीडयो कान्फ्रेंसिंग के बाद प्रधानमन्त्री लॉक डाउन  को 3 मई से आगे बढ़ाने का निर्णय करेंगे | हालांकि जिन इलाकों में संक्रमण पर काबू पा लिया गया है वहां लॉक डाउन में ढील दिए जाने की बात भी कही जा रही है |

 और ऐसा होने पर अर्थव्यवस्था संबंधी अनुमान और आकलन एक बार फिर पुनर्निर्धारित करने पड़ सकते हैं |  जैसा कि जानकारों और उद्योग - व्यापार जगत का कहना है यदि 30 मई तक लॉक डाउन खिंचा तब तक  कारोबारी  जगत को 25 से 30 लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो चुका होगा | और इसका सीधा असर सरकार की राजस्व वसूली पर पड़ेगा | कोरोना आते ही केंद्र सरकार ने करदाताओं को राहत देते हुए करों का भुगतान 30 जून तक करने की  छूट भी दे दी | आयकर रिटर्न की तारीख भी बढ़ा दी | बिजली के देयकों का भुगतान करने हेतु भी समय दे दिया गया |  बैंकों के कर्ज न पटाने पर एनपीए की समय सीमा में वृद्धि के साथ ही कर्जे की किश्तें आगे बढ़ाने का फैसला भी हो गया |

 बीते कुछ दिनों में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक दोनों ने तमाम ऐसे कदम उठाये जिनसे कोरोना से प्रभावित उद्योग व्यापार में फिर से चेतना लौट आये | बैंकों को सस्ती दरों  पर पूंजी उपलब्ध करवाने के निर्देश भी दिए | इनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था में संभावित गिरावट को जितना हो सके रोकना है | लेकिन जैसा सुझाव चारों तरफ से आ रहा है उसके अनुसार सरकार को कारोबारी जगत को सस्ते कर्ज के साथ ही ऐसा कुछ तोहफा देना पड़ेगा जो उसके नुकसान की पूरी न सही किन्तु कुछ भरपाई तो कर सके | ऐसा करना  इसलिये भी जरूरी है जिससे करोड़ों की संख्या में घर बैठ गये श्रामिकों को रोजगार वापिस मिल सके | बीते एक माह से उद्योगों के बंद रहने के बाद भी जरूरी चीजों की  आपूर्ति में रूकावट नहीं आई | लेकिन 3 मई के बाद भी यदि लॉक डाउन जारी रखने के स्थिति बनी तब अभाव को टालने के लिए उत्पादन इकाइयों में काम शुरू करवाना पड़ेगा | हालांकि उसके लिए कितनी छूट मिलेगी ये आगामी एक दो दिन में  पता चलेगा किन्तु बड़े शहरों से पलायन कर गये श्रामिक जल्दी लौटेंगे इसमें संदेह है | फिर भी उत्पादन शुरू करना प्राथमिक आवश्यकता बन गई है | इसी के साथ ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि इससे कोरना के विरुद्ध जारी लड़ाई में व्यवधान न आ जाए | अभी तक भारत सरकार की नीति लोगों की ज़िन्दगी के नाम पर अर्थव्यवस्था को बचाने की नहीं रही | अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ये मूर्खता की जिसका खामियाजा अमेरिका जैसी महाशक्ति को भोगना  पड़ रहा है | लेकिन इस बारे में देखने वाली बात ये है कि हमारे देश में जरूरी चीजों का उत्पादन यूँ भी कम होता है और बीते दो दशक में छोटी - छोटी चीजों के लिए चीन पर हमारी निर्भरता चरम पर जा पहुँची | चूँकि फिलहाल व्यावसायिक  गतिविधियां पूरी तरह से अवरुद्ध हैं और निकट भविष्य में चीन से आयात होने की संभावना भी कम दिख रही है इसलिए यदि सरकारी संरक्षण और पूंजीगत सहयोग मिल जाए तो भारत के मृतप्राय छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्योगों की साँसें लौट सकती हैं |

 सबसे  बड़ी बात ये है कि इस समय देश का जनमानस चीन से बेहद नाराज है | ऐसे में यदि उसमें  आर्थिक राष्ट्रवाद का भाव जगा दिया जावे तो भारतीय जनता सस्ता होने के बाद भी चीनी सामान से परहेज करने लगेगी | लेकिन इसके लिए सरकार को देशी उद्योगों की पीठ पर हाथ रखना होगा |  यद्यपि ये बात भी अपनी जगह सच है कि भारत सरकार के लिए  इस समय दरियादिली दिखाना आसान नहीं  है | उसकी राजस्व वसूली तो रुकी ही है,  नए वित्तीय वर्ष की पहली  तिमाही लॉक डाउन की बलि  चढ़ने जा रही है | चूँकि इस अवधि में कारोबार पूरी तरह बंद रहा इसलिए भी सरकार  के खजाने की हालत खस्ता है | जो था वह भी कोरोना के बचाव ,राहत और पुनर्वास में खर्च हुआ जा रहा है |

 अब सवाल ये है कि क्या अर्थव्यवस्था को लावारिस छोड़ दिया जावे या फिर उसे कैसे भी हो दोबारा खड़ा करते हुए भावी चुनौतियों के लिए तैयार किया जा सके | हालत काफी पेचीदा हैं लेकिन ऐसी स्थितियों में ही किसी देश की परीक्षा होती है | और फिर भारत अकेला नहीं होगा ऐसे हालात का सामना करने वाला | चीन भले कोरोना से उबरने का दावा कर रहा हो लेकिन आर्थिक मोर्चे पर वह भी तगड़ी चोट खा चुका है | अमेरिका जैसा सबसे बड़ा बाजार उसके हाथ से खिसकने को है | यही हाल यूरोप के अनेक देशों के साथ भी है | इस महामारी ने चीन नाम को ही संदिग्ध और डरावना बना दिया है | उसकी चालाकी से तो सभी वाकिफ थे लेकिन कोरोना के बाद से चीन की छवि ऐसे क्रूर देश की बन गई है जो अपने लाभ के लिए समूची मानव जाति के अस्तित्व को खतरे में डालने से भी हिचकता |

ऐसी वैश्विक स्थिति में भारत को थोड़ा दुस्साहसी बनना होगा | अर्थात आर्थिक नीतियों में  खतरा उठाने की पहल यदि की जाए तो उसके चमत्कारिक परिणाम आ सकते हैं | इसके लिए युद्धस्तरीय रणनीति बनाकर किसी भी स्थिति  में अधिकाधिक उत्पादन को ही एकमात्र लक्ष्य बनाते हुए मेक इन इण्डिया नारे को जमीनी हकीकत में बदलने की जरूरत है | कोरोना संकट से निपटने के बाद समूचे यूरोप ही नहीं अमेरिका तक में कारोबारी गतिविधियां जल्द रफ्तार नहीं पकड़ सकेंगी | चीन जैसा पूर्व में कहा जा चुका है खलनायक की छवि के साथ विश्वासनीयता के संकट में फंसा रहेगा | ऐसे में भारत को  एक बड़े शून्य को भरने का स्वर्णिम अवसर नियति ने दिया है |

 वैसे भारत सरकार के सामने भी बड़ा अर्थ संकट है | जमा पूंजी भी खत्म होती जा  रही है और बैंक पहले से ही एनपीए की  वजह से नगदी के संकट में हैं | ऐसी सूरत में किसी औद्योगिक क्रान्ति की कल्पना पर  सवाल उठना स्वाभाविक है | लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जिन पर गम्भीरता से विचार  करने के बाद यदि प्रभावी कदम उठा लिये जाएं तो भारत का पूंजी संकट दूर होते  देर नहीं लगेगी | इसका सबसे ताजा प्रमाण है फेसबुक और रिलायंस की जिओ में हुआ व्यापारिक समझौता  जिसके अंतर्गत फेसबुक ने जिओ में तकरीबन 43  हजार करोड़ का निवेश करते हुए मुकेश अम्बानी को फिर से एशिया का सबसे धनी व्यक्ति व्यक्ति बना दिया | इससे एक बात सिद्द्ध हो गयी कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अभी  भी अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का भरोसा बदस्तूर कायम है |

 उल्लेखनीय है कुछ बरस पहले  चीन में गैर लोकतान्त्रिक शासन के बावजूद भी विदेशी  पूंजी का जबर्दस्त प्रवाह था | चीन की आर्थिक सम्पन्न्त्ता का राज वही पूंजी थी | एक कट्टर साम्यवादी देश का पूंजीवादी देशों के साथ व्यावसायिक नज्दीकियां  बना लेना माओ त्से तुंग के वंशजों से  अनपेक्षित था  | परन्तु कोरोना नामक वायरस ने चीन की विश्वसनीयता को जबरदस्त धक्का पहुंचा दिया है | जो भारत के लिए वरदान बन सकता है |

 लेकिन इसके लिए भारत सरकार को अपना पूरा फोकस उत्पादन बढ़ाने पर केन्द्रित करना होगा । मेरे विचार से और जैसा विभिन्न लोगों से चर्चा उपरांत सुझाव आया कि केंद्र सरकार  1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2022 तक अर्थात अगले दो वित्तीय वर्ष को आयकर मुक्त घोषित कर दे | इससे बेशक राजस्व हानि होगी लेकिन बहुत सारा ऐसा धन जो अर्थव्यवस्था से बाहर पड़ा हुआ है वह चलन में आने से बाजार में पूंजी का संकट काफी हद तक कम हो सकेगा तथा कारोबारी सुस्ती भी दूर होते देर नहीं लगेगी | नोट बन्दी के बाद लोगों के पास काफी ऐसा धन पड़ा हुआ है जिससे वे व्यापार में नहीं लगा पा रहे थे | सरकार के पास उस धन को मुख्य धारा में लाने का फिलहाल और कोई रास्ता भी नहीं है |

 वैसे सुनने में ये सुझाव अटपटा लगेगा किन्तु इस समय ऐसा ही कुछ करने की जरूरत है जिससे  अर्थव्यवस्था को पंख लगाये जा सकें | उल्लेखनीय है 31 जनवरी 2020 तक प्रत्यक्ष करों से केवल 7.52 लाख करोड़ ही एकत्र हुए थे | वहीं 31 मार्च तक का अनुमान 11.70 लाख करोड़ एकत्र करने का था |

इस सुझाव का उद्देश्य काले धन को प्रोत्साहित करना नहीं अपितु उसे अर्थव्यवस्था में शामिल कर पूंजी के संकट को दूर करना  है |  आयकर को दो वर्ष के लिए स्थगित करने से कारोबारी जगत में जो सक्रियता आयेगी और उत्पादन बढ़ेगा उसके परिणामस्वरूप जीएसटी की वसूली में आनुपातिक दृष्टि से जो वृद्धि होगी वह आयकर स्थगन से होने वाले घाटे की पूर्ति तो करेगी ही बेरोजगारी दूर करने में भी ये कदम सहायक बनेगा | निश्चित रूप से ये निर्णय बहुत ही चौंकाने वाला होगा लेकिन मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था को इसी तरह की क्रांतिकारी सोच की जरूरत है | यदि ऐसा नहीं किया जाता और कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था पुराने ढर्रे पर रेंगते हुए आगे बढ़ी ,तब तक ये अवसर हाथ से चला जाएगा |

 सामान्य समय होता तब इस मुद्दे पर बहस भी होती लेकिन युद्ध जैसी परिस्थिति में निर्णय भी उसी तरह के होते हैं | यद्यपि नोट बंदी भी आयकर समाप्त करने की दिशा में उठाया गया प्रायोगिक कदम था किन्तु बात आगे नहीं बढ़ सकी | आयकर से मुक्ति का सबसे बड़ा लाभ होगा भ्रष्टाचार पर लगाम | क्योंकि ये बात किसी से छिपी नहीं है कि काले धन को बढ़ावा देने में हमारे भ्रष्ट तंत्र का कितना बड़ा योगदान है |

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