Monday 6 April 2020

जब उन्हें मालूम होगा कि हमने ,उस रात को देखा था.



 
किसी भी युद्ध में सेनापति का नेतृत्व सबसे महत्वपूर्ण होता है | ऐसे अवसर भी आते हैं जब शत्रु तुलनात्मक रूप से मजबूत होता है | लेकिन ऐसे क्षणों में कुशल सेनापति अपनी सेना में विजय का उत्साह भरता है  और उसकी प्रेरणा से सैनिक भी अभावों और परिस्थितिजन्य दबावों के बावजूद पूरे जोश से मैदान में कूदकर जीत हासिल करके ही मानते हैं | 

इस बारे में एक बड़ा ही प्रसिद्ध प्रसंग है | नेपोलियन बोनापार्ट की सेनाएं युद्ध हेतु जा रही थीं | बीच में आल्प्स पर्वत आ गया | सेना को उसे पार करने में परेशानी हुई तो उसने अपनी असमर्थता व्यक्त की | जैसे ही  नेपोलियन को ये पता चला , वह अपना घोड़ा लेकर आगे आया और बोला समझ लो आल्प्स है ही  नहीं और फिर उसके पीछे पूरी सेना उस पर्वत को पार कर गई |

 भारत भी एक युद्ध लड़ रहा है | और वह भी ऐसे शत्रु से जिसकी आक्रामक क्षमता जबरदस्त है और रणनीति भी कोई नहीं जानता | पौराणिक काल के युद्धों में मायावी तौर - तरीके भी इस्तेमाल होते थे | शत्रु अदृश्य होकर आक्रमण करता था जिसे पराजित करने के लिए दैवीय शक्तियों की मदद लेनी होती थी | आज का युग विज्ञान का है और उसने इस अत्यंत शक्तिशाली अदृश्य शत्रु का नामकरण किया है कोरोना वायरस |

 भारत पर आक्रमण करने से पहले ये शत्रु दुनिया  के अनेक ताकतवर देशों को लोहे के चने चबवा चुका है | इसलिए जब ये भारत पर आक्रमण करने आया तब हमारे पास उससे लड़ने की न तो रणनीति थी और न ही संसाधन | ये कहना भी गलत  नहीं होगा कि उसके आने की आहट होने के बाद भी उसका मुकाबला करने के बारे में हमारी तैयारी पर्याप्त नहीं थी | ये भी कहा जा सकता है कि हमने उसकी ताकत का सही अनुमान नहीं लगाया और ये भी कि अपनी स्वभावगत कमजोरी के चलते ,जब आएगा तब देखेंगे वाली प्रवृत्ति पर चलते रहे |

 लेकिन जब दो - दो हाथ करना मजबूरी हो गयी तब पता लगा कि कोरोना से लड़ाई लम्बी चलने के साथ केवल एक मैदान तक सीमित न रहकर पूरा देश ही युद्धभूमि में बदल जायेगा और ये शत्रु कभी आमने - सामने आकर लड़ेगा तो कभी छापामार शैली का सहारा लेगा |

 इस तरह के युद्ध के लिए न तो हमारे पास पर्याप्त सैन्य बल था और न ही लड़ने के लिए जरूरी अस्त्र - शस्त्र | सेना को रसद की आपूर्ति जारी रखना भी बहुत कठिन समस्या थी | ये भय भी बना हुआ था कि कहीं नेपोलियन  की तरह हमारी सेना भी पर्वत चढ़ने से इंकार न कर दे |

 लेकिन यहीं सेनापति का कौशल और आगे बढ़कर नेतृत्व करने की क्षमता कसौटी पर कसी गई और बीती रात देश ही नहीं अपितु दुनिया ने जो देखा उसके बाद कम से कम ये आत्मविश्वास तो मजबूत हुआ ही कि तमाम प्रतिकूलताओं के बाद हम जीतेंगे क्योंकि सेनापति में नीति बनाने और निर्णय करने की काबिलियत तो है ही लेकिन वह सैनिकों के साथ देश की जनता में भी विजय के प्रति आत्मविश्वास और उत्साह का संचार करने में सिद्धहस्त  है |

 गत रात्रि 9 बजे 9 मिनिट के लिए दीप, मोमबती , टॉर्च या मोबाईल  से प्रकाश उत्पन्न करने का जो आह्वान प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने किया उसकी सफलता तो छोड़िये सार्थकता पर भी अनगिनत सवाल उठाये गये | उसे अंधविश्वास , पागलपन , संकट के समय उत्सव मनाना , अपनी छवि को चमकाने हेतु किया गया इवेंट मैनेजमेंट जैसे विशेषण दिए गए | 9 मिनिट के बाद बिजली के ग्रिड में आने वाली खराबी को लेकर भी ज़माने भर का प्रपंच हुआ |

 ये आरोप भी लगा कि  कोरोना से जान गँवा बैठे लोगों की लाश पर जश्न मनाने जैसी अशोभनीय हरकत की जा रही है | दिन , तरीख , समय , गृह नक्षत्र की स्थिति आदि पर भी जमकर ज्ञान बघारा गया | उसके पहले प्रधानमन्त्री के आह्वान पर 22 मार्च की शाम 5 बजे थाली और ताली बजाने वाले आयोजन के लेकर भी अब तक मजाक उड़ाने का काम जारी है |

 लेकिन गत रात्रि जो हुआ उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि संकट की इस अभूतपूर्व घड़ी में भी देश का विश्वास अपने प्रधानमन्त्री पर है | उन 9 मिनिटों में पूरे देश में जो स्वस्फूर्त उत्साह , एकरूपता और उमंग दिखाई दी वह अधिकतर लोगों के लिए जीवन का ऐसा अनुभव बन गया जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी |

 अब सवाल ये है कि 9 मिनिट के इस आयोजन की जरूरत क्यों पड़ी ? और इसक सीधा जवाब है कोरोना के मरीजों की संख्या में अचानक आया उछाल | और इससे भी बढ़कर तबलीगी जमात से जुड़े लोगों का पूरे देश में फ़ैल जाना | पिछले कुछ दिनों में ही 2 हजार के आसपास झूल रहा कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा 3500 पार कर गया जिसमें 30 फीसदी जमात के लोग हैं |

 इसकी वजह से देश में जबरदस्त घबराहट और भय व्याप्त हो गया | 25 मार्च से घरों में बैठे करोड़ों देशवासियों को अनगिनत परेशानियों का जिस प्रकार सामना करना पड़ रहा है उसकी वजह से उनकी मानसिकता भी प्रभावित हो सकती थी | कुछ अप्रिय घटनाओं के कारण अफरातफरी और असंतोष बढ़ने का खतरा भी था | वहीं  सामाजिक स्तर पर विभाजन की आशंका भी प्रबल होने लगी | देश को भीतर से कमजोर करने में लगी   ताकतों के  लिए ये स्वर्णिम अवसर था | और उन्होंने अपने प्रयास शुरू भी कर  दिए थे |  

 ये सब देखते हुए  भावनात्मक एकता के प्रदर्शन के साथ ही विभाजनकारी शक्तियों को ये सन्देश देने की भी जरूरत थी कि देश को अपने नेतृत्व पर विश्वास है और जनता उसके बताये रास्ते पर चलने से इंकार नहीं करेगी |

 
प्रधानमन्त्री चाहते तो संचार माध्यमों के जरिये देश से रोज मुखातिब होते रहते । लेकिन उन्हें पता था कि वह कारगर नहीं होगा | और इसीलिए उन्होंने एक अभिनव तरीका निकला जिसके जरिये पूरे देश में बिना कुछ कहे ही आपसी संवाद कायम हो गया | दीप जलाकर पूरे देश के लोगों के मन में एक सैनिक का भाव श्री मोदी ने भर दिया |

 9 मिनिट के छोटे से समय में पूरे देश की जनचेतना को जगाने का ये चमत्कारिक तरीका पूरी दुनिया के लिए तो अचरज का कारण बना ही , घरों  में बंद भारत की विशाल  जनसँख्या के मन की उदासी और मानसिक तनाव भी काफूर हो गया | जिस उत्साह से लोगों ने समय का पालन करते हुए प्रधानमन्त्री के आह्वान को एक उत्सव की शक्ल दी वह लड़ाई के लम्बे खिंचने की स्थिति में जनता को धैर्य बनाये रखने में सहायक बनेगा |

 14 अप्रैल को लॉक डाउन खत्म हो जाएगा या उसकी अवधि और बढ़ेगी इसे लेकर अभी अनिश्चितता है | लेकिन ये भी सही है कि लॉक डाउन ज्यादा लम्बा होने से अनेक व्यवहारिक दिक्कतें आयेंगीं जिनकी वजह से अव्यवस्था फ़ैल सकती है | उस स्थिति को टालने के लिए जरूरी है कि नेता  और जनता के बीच भावनात्मक एकरूपता बनी रहे और  9 मिनिट के उस प्रयोग की ऐतिसासिक सफलता ने साबित कर  दिया कि श्री मोदी जनता के मन को पढ़ने की कला में पारंगत हैं |

 यदि चुनाव होता तब उनके इस पैंतरे को राजनीति प्रेरित बताकर उसकी आलोचना की जा सकती थी लेकिन वर्तमान माहौल में राजनीति करने का न तो सही समय है और न ही कोई गुंजाईश | प्रधानमन्त्री ने गरीब जनता तक हरसंभव मदद पहुंचाकर सामाजिक असंतोष की जड़ ही खत्म कर दी | इसका बड़ा लाभ हुआ | वरना लॉक आउट को लेकर जिस तरह की लापरवाही आये दिन देखने मिल रही है उसे देखते हुए तो अब तक अराजकता फ़ैल जानी थी |

 हालांकि 9 मिनिट के दौरान अति उत्साही लोगों ने पटाके फोड़कर गम्भीरता को कम किया लेकिन मूल भावना बरकरार रही | प्रधानमन्त्री के आह्वान पर लोग यदि बुझे मन से दीपक या मोमबत्ती  जलाकर रस्म अदायगी कर देते तब शायद पूरी कवायद व्यर्थ चली जाती | लेकिन ये कहने में संकोच नहीं होगा कि आम जनता ने श्री मोदी की उम्मीदों से भी ज्यादा उत्साह दिखाते हुए ये संकेत दे दिया कि वह प्रधानमंत्री का समर्थन ही नहीं सम्मान भी करती है |

 और यही इस जंग में भारत की सबसे बड़ी ताकत है | सेनापति की ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता के प्रति सेना ही नहीं जनता के मन में भी भरोसा बनाये रखना सबसे अच्छी रणनीति होती है और सौभाग्य से प्रधानमन्त्री इसमें सफल रहे |

 कोरोना से जंग दीपक और मोमबत्ती जलाने से बेशक नहीं जीती जा सकती लेकिन इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रसंग यहाँ उल्लेखनीय है | प्लासी की लड़ाई में अंगरेज और सिराजुद्दौला की सेनाओं के बीच युद्ध चल रहा था | वह युद्ध देश के भविष्य के लिए निर्णायक था | लेकिन अंग्रेज उसे जीतने में इसलिये सफल रहे क्योंकि क्षेत्रीय जनता अपने सैनिकों की मदद करने नहीं आई | कहने का आशय ये कि निःसंदेह लड़ाई सेना लड़ती है लेकिन उसका मनोबल बढ़ाने के लिए समाज को भी अपना उत्साह प्रदर्शन और भागीदारी करनी होती है |

 कल की रात चंद मिनिटों के लिए भारत की जनता ने ये दिखा दिया कि वह दूर बैठकर नजारा नहीं देख रही बल्कि कोरोना नामक दुश्मन से लड़ रहे सैनिकों के योगदान के प्रति उसके मन में आदर और आभार दोनों का भाव है |

 वे 9 मिनिट कहने को तो बहुत ही छोटा समय था लेकिन उसने इस दौरान जन्मे नये भारत की हिम्मत  और हौसले का एक इतिहास रच डाला | वैसे तो भारत में प्रतिवर्ष परम्परागत तरीके से दीपावली मनाई जाती है लेकिन इस बेमौसम दीपावली के पीछे जो भावना थी उसमें लक्ष्मी की साधना से धन संपत्ति अर्जित करने की इच्छा न होकर देश के स्वस्थ होकर निकलने की प्रार्थना के अलावा कोरोना से लड़ रहे चिकित्सक , सरकारी अमला , ;पुलिस कर्मी , स्वच्छता मित्र , भोजन और जरूरी सामग्री जरुरतमंदों तक पहुंचा रहे निःस्वार्थ स्वयंसेवकों की  सलामती और उत्साह्वर्धन की कामना थी |

 इस अभूतपूर्व और अकल्पनीय दृश्य को देखकर हर भारतीय के मन में देशप्रेम और एकता का जो भाव जागा वह बहुत बड़ी शक्ति बनकर सामने आया है | जो इस लडाई में विजयी होकर निकलने का आधार बनेगा | 

अपने बुजुर्गों से अतीत की ऐतिहासिक घटनाओं का वृतान्त तो खूब सुना था। लेकिन अब हमें भी भावी पीढ़ियों को सुनाने के लिए कल की दीपावली का अकल्पनीय अनुभव मिल गया जिसे सुनकर उन्हें हम पर नाज जरूर होगा।

No comments:

Post a Comment