Tuesday 21 April 2020

पेट्रोल-डीजल के उपयोग पर भी लॉक डाउन किया जाये



अमेरिका में गत दिवस कच्चे तेल के भाव जमीन से भी नीचे चले गये। कहा जा रहा है वहां बोतलबंद पानी पेट्रोल से भी महंगा बिक रहा है। अमेरिका के पास अपने तेल भंडार भी हैं लेकिन वह उन्हें सुरक्षित रखते हुए तेल उत्पादक बाकी देशों से कच्चा तेल खरीदता है। विलासितापूर्ण जीवन शैली के कारण वहां ऐसी कारें बड़ी संख्या में हैं जिनमें ईधन खर्च बहुत ज्यादा है। जिन शहरों में लॉक डाउन नहीं है वहां भी लोग घरों से कम ही निकल रहे हैं। बड़ी कम्पनियों ने कर्मचारियों को घर में रहकर काम करने की सुविधा पहले से ही दे दी थी। इस वजह से सड़कों पर वाहनों की संख्या भी घट गयी। इसी तरह उद्योगों में भी जहां कच्चे तेल से बनी चीजों का उपयोग होता है, वहां भी काम बंद होने से उसकी जरूरत कम हो गई। अमेरिका ही नहीं अपितु दुनिया के दूसरे सम्पन्न देशों में भी पेट्रोल - डीजल का उपयोग बड़े पैमाने पर घट जाने से कच्चे तेल की मांग में कल्पनातीत कमी आ गयी। चीन और भारत इसके सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। चीन में तो जनजीवन सामान्य होने से फिर भी मांग है लेकिन भारत में लॉक डाउन के कारण मांग नाम मात्र की रह गयी। और कोई समय होता तो, हर देश ये कोशिश करता कि बाजार के टूटे रहने की स्थिति में वह अधिक से अधिक कच्चे तेल का भंडारण कर ले। लेकिन कोरोना प्रभाव की वजह से पहले खरीदा गया तेल ही उपयोग में नहीं आ सका। अमेरिका की समस्या तो ये हो गयी कि उसने जरूरत के मद्देनजर खरीदी के जो अग्रिम सौदे किये थे उनको पूरा करने में भी दिक्कत होने लगी क्योंकि उसकी तेल भंडारण क्षमता पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। ये स्थिति अभूतपूर्व तो है ही लेकिन कल्पना से भी बाहर की है। कुवैत और ईराक की जंग के समय विश्व में तेल की कमी का संकट नहीं आया। पश्चिम एशिया में बीते अनेक सालों से जंग के हालात होने से कच्चे तेल के दाम भले ही ऊपर नीचे हुए हों लेकिन ये स्थिति नहीं आई कि कोई उसे लेने को तैयार नहीं हो। इसकी वजह से तेल कम्पनियों के शेयर तो नीचे आये ही लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था भी अजीब से संकट में फंस गई। ये पहला अवसर है जब काला सोना कहे जाने वाले कच्चे तेल का तेल इस बुरी तरह निकला हो। कोरोना संकट आने वाले अनेक महीनों तक जारी रहेगा। वायरस के निष्क्रिय होने के बाद भी दुनिया को पटरी पर लौटने में लम्बा अरसा लग सकता है।  हवाई यातायात पूरी तरह कब तक रफ्तार पकड़ेगा ये बता पाना भी किसी के बस में नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन पूरी तरह चौपट हो चुका है। कोरोना संक्रमण का भय लोगों को सैर-सपाटे से रोकेगा। व्यवसायिक यात्राएं भी कम हो जायेंगीं। बड़ी-बड़ी बैठकें तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होने लगेंगी। अर्थव्यवस्था में आयी गिरावट के चलते चूंकि ऑटोमोबाइल उद्योग भी लम्बी चपत खा गया है अत: नये वाहनों की बिक्री का आंकड़ा भी उछलने के आसार नहीं है। कुल मिलाकर कोरोना ने जिस तरह पूरी दुनिया को उलट पुलट कर दिया तब कच्चा तेल आखिर कहां बच सकता था। उसका उत्पादन घटाने को लेकर तेल उत्पादक देश एकमत नहीं हैं। खाड़ी और अरब के मुल्कों ने पहल की भी थी लेकिन वेनेजुएला राजी नहीं हुआ जिसका दारोमदार तेल पर ही टिका हुआ है। ऐसे में कोरोना बाद की वैश्विक व्यवस्था में पर्यावरण संरक्षण सबसे बड़ा विषय होगा। बीते कुछ महीनों में प्रकृति को जो राहत मिली उसे जारी रखने के लिए पेट्रोल - डीजल का उपयोग घटाने पर जोर दिया जायेगा। चीन और भारत दोनों इलेक्ट्रानिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। सौर उर्जा के बढ़ते उपयोग ने भी पेट्रोल-डीजल के उपयोग को कम करने का रास्ता खोल दिया। ऐसे में अब तेल उत्पादक देशों का भविष्य भी कोरोना ने संकटमय बना दिया है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद कच्चा तेल वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ ही महाशक्तियों के बीच तेल स्रोतों पर कब्जे की होड़ में फंस गया। इस्लामिक आतंकवाद के पीछे भी इसी काले सोने से आई अकूत दौलत ही तो है। पश्चिम एशिया में बीते अनेक दशकों से  जिस तरह के हालात हैं वे भी बेशुमार दौलत से उपजे अहंकार का ही नतीजा है। विश्व की महाशक्तियां अरब देशों को अपने उन्नत हथियार बेचने के लिए वहां युद्ध का वातावारण बनाये रखती हैं। लेकिन अब जबकि तेल के खेल पर काफी हद तक विराम लगने की परिस्थिति उत्पन्न हो गई तब अमेरिका जैसे देशों को अपने हथियार बेचने में परेशानियां आना तय है। इन हालातों की कल्पना किसी ने नहीं की थी। अब से कुछ महीनों के बाद दुनिया का समूचा शक्ति संतुलन बदला हुआ होगा। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में नये लोगों के आकर बसने पर रोक लगा दी है। अन्य देश भी अपनी व्यवस्थाएं बदल रहे हैं। ऐसे में भारत भी कैसे अछूता रह सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में आ रही गिरावट का तात्कालिक लाभ भले हम ले लें लेकिन वह स्थायी नहीं होगा। बेहतर तो यही होगा कि वैकल्पिक ऊर्जा की तरफ  हमारे कदमों की रफ्तार बढ़े। भारत का मौसम सौर उर्जा के असीमित उत्पादन के लिए अनुकूल है। ऐसे में ये संकट भारत के लिये वरदान साबित हो सकता है। विश्व का नेतृत्व करने के लिए सबसे बड़ी जरूरत है अपने पैरों पर खड़े होने की। तेल के इस खेल में खुश होकर उछलने की बजाय हमें उसका उपयोग घटाकर अपनी प्राथमिकताएं नये सिरे से निर्धारित करनी होंगी। कोरोना संक्ट में जब अर्थव्यवस्था ठप पड़ी है तब भी विदेशी मुद्रा का भंडार भरा होने का कारण कच्चे तेल के आयात में आई जबरदस्त गिरावट ही है। अच्छा होगा कि अब भारत में पेट्रोल-डीजल के उपयोग पर भी समय-समय पर लॉक आउट किया जाए। जिसके फायदे दूरगामी होंगे।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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