Monday 20 April 2020

लॉक डाउन : छूट का दुरुपयोग खतरनाक



जान है तो जहान है से शुरू हुआ लॉक डाउन दूसरे चरण में आकर जान भी और जहान भी, में बदल रहा है। आज से देश के सैकड़ों जिलों में जनजीवन को सामान्य बनाने के उद्देश्य से लॉक डाउन में काफी छूट दी जा रही है। जरूरी चीजों की आपूर्ति बनाये रखने के साथ ही उनका उत्पादन करने की अनुमति भी आज से मिल गयी। कृषि कार्य के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में चल रहे उद्योगों को भी पूरी तरह काम करने का अवसर दिया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में कोरोना का प्रभाव कम है वहां चुनिन्दा दफ्तरों को आधे स्टाफ के साथ शुरू करने कह दिया गया है। सरकारी विभागों में भी काम सामान्य करने के प्रयास शुरू हो रहे हैं। किराना और दवाई की दुकानों के अलावा अस्पतालों की सेवाएं पूर्ववत किये जाने की व्यवस्था हो रही है। कोरोना के संक्रमण से ज्यादा प्रभावित जिलों को खतरनाक मानकर वहां किसी भी तरह की ढील नहीं दी जा रही। जिन कार्यालयों या सेवाओं को काम करने की छूट दी गई है उनके अलावा अन्य सभी सेवाओं में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के निर्देश हैं। राजमार्गों पर ट्रक परिवहन शुरू होने के कारण ढाबे , पंचर सुधारने वाले तथा मैकेनिकों को भी फिर से काम शुरू करने कहा गया है। लेकिन स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए अनेक राज्यों ने तो अभी से लॉक डाउन की अवधि 3 मई से भी आगे बढ़ा दी है। केंद्र सरकार ने पिछली गलतियों से सीख लेते हुए किसी भी तरह का यात्री परिवहन प्रारंभ करने का मन नहीं बनाया और टिकिटों के अग्रिम आरक्षण के लिए भी मना कर दिया है। यहाँ तक कि निजी चौपाहिया वाहन में अधिकतम दो लोग ही बैठ सकेंगे। उसमें भी एक चालक की और दूसरा पिछली सीट पर बैठेगा। वहीं दोपहिया वाहन के लिए केवल एक ही व्यक्ति को अनुमति होगी। और भी अनेक सुविधाएँ आज से प्रारंभ होने जा रही हैं। लेकिन व्यापार जगत के कड़े विरोध के कारण ऑन लाइन कम्पनियों को केवल जरुरी सामान बेचने की अनुमति रहेगी। उन्हें इलेक्ट्रानिक उपकरण की भी होम डिलीवरी करने की छूट दिए जाने का भारी विरोध होने पर उसे रद्द कर दिया गया। बहरहाल इस कोशिश के साथ सरकार ने लॉक डाउन के दौरान ही निजी, सामाजिक, सार्वजानिक जीवन को सामान्य करने के साथ ही सरकारी कामकाज में भी गति लाने का प्रयोगात्मक प्रयास किया है। जिसकी सफलता और विस्तार इस बात पर निर्भर करेगा कि जनता अपनी भूमिका के निर्वहन में कितनी ईमानदार रहती है। समझने वाली बात ये है कि केंद्र और राज्यों की सरकारों के साथ ही स्थानीय स्तर पर प्रशासन द्वारा लगाई गईं बंदिशे नागरिकों की सुरक्षा के लिए ही हैं। लॉक डाउन के दौरान नि:संदेह जनता को अकल्पनीय परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है लेकिन देखने वाली बात ये भी है कि प्रशासन और पुलिस को इसे लागू करवाने में जो मशक्कत करनी पड़ रही है उसके बारे में सोचने पर हमें अपनी दिक्कतें कम लगने लगेंगी। इसी तरह चिकित्सा के काम से जुड़े लोगों के लिए भी इस दौर में युद्ध जैसी स्थितियां उत्पन्न हो गईं। बीते तकरीबन एक माह से चिकित्सा अमले के हजारों कार्यकर्ता अपने घर तक नहीं जा पाए हैं। ऐसे में अब ये हमारा फर्ज है कि आज से जो छूट मिल रही है उसका दुरूपयोग करने की मूर्खता भूलकर भी न करें। वरना छूट वापिस होगी सो अलग लेकिन कोरोना से हमारी लड़ाई को जबरदस्त नुकसान पहुंचने के साथ ही अभी तक की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। लॉक डाउन का ही असर है कि भारत में अभी तक कोरोना सामुदायिक संक्रमण की पायदान तक नहीं पहुंचा। अनेक शहरों के कुछ इलाके जरुर हॉट स्पॉट बने हुए हैं लेकिन उनकी सघन घेराबंदी के कारण स्थिति भयावाह नहीं हुई  है। ये वाकई बड़ी बात है कि सैकड़ों जिले अभी भी कोरोना की पकड़ से बचे हुए हैं। गोवा जैसे राज्य ने तो अपने आपको पूरी तरह उससे मुक्त कर लिया। बीती एक अप्रैल से कोरोना के मरीजों में वृद्धि का प्रतिशत भी पूर्वापेक्षा घटा है। मृत्यु दर तो वैश्विक अनुपात से कम है ही। इसका सबसे ज्यादा श्रेय लॉक डाउन को ही है। कुछ सिरफिरे लोगों की हरकत न हुई होती तो बड़ी बात नहीं यदि अभी तक भारत कोरोना को परास्त करने की स्थिति में आ जाता। समाज के गरीब वर्ग को इस दौरान जो मुसीबतें उठानी पड़ीं उनकी वजह से अनेक बार लगा कि सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा मकसद ही बर्बाद हो गया। घनी बस्तियों में उसका पालन यूँ भी बेहद कठिन है। बावजूद इसके यदि हालात काबू में रहे तो ये देश का सौभाग्य ही कहा जा सकता है। ऐसे में आज से शुरू की गयी छूटों से बेपरवाह होने की जुर्रत आत्मघाती होगी। ये सभी का सामूहिक दयित्व है कि बिना जरूरत छूट के समय भी बाहर निकलने की स्वतंत्रता का इस्तेमाल न करें। कोरोना से बचाव ही उससे लड़ने का सर्वोत्तम उपाय है। सरकार को भी इस बात की चिंता है कि लोग काफी दिनों से घरों में बंद हैं। उस कारण कारोबार बंद पड़ा है। कामगार आजीविका के लिए भटक रहे हैं। वित्तीय संकट गहरा रहा है। लेकिन इस समय लॉक डाउन ही सबसे सफल साबित हुआ है। सोशल डिस्टेंसिंग इसे लागू करने का सबसे कारगर उपाय है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लॉक डाउन के दूसरे चरण में दी जा रही रियायतों का दुरूपयोग नहीं किया जाएगा। सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाया है। यदि जनता का रवैया सहयोगात्मक रहा तो और भी छूट मिल सकती हैं। लेकिन  भीड़ तंत्र हावी हुआ, अनुशासन टूटा तब ये सुविधा तत्काल वापिस ली जा सकती है तथा प्रतिबन्ध और लम्बे व कड़े हो सकते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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