Monday 6 April 2020

कोरोना से असली लड़ाई तो अब शुरू हुई है




बीती रात देश एक अभूतपूर्व अनुभव से गुजरा। इस दौरान साबित हो गया कि कोरोना नामक आपदा के बावजूद जनता का मनोबल ऊंचा बना हुआ है और वह लॉक डाउन से हो रही परेशानी के बावजूद व्यवस्था बनाये रखने में शासन - प्रशासन के साथ है। प्रधानमन्त्री ने लॉक डाउन के 12 दिन बीत जाने के बाद जनमानस का मनोवैज्ञनिक परीक्षण करने का जो अभिनव तरीका आजमाया वह अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफल रहा। चंद अपवादों को छोड़ दें तो प्रधानमन्त्री के अनुरोध पर पूरे देश ने ये दिखा दिया कि वह एकजुट है और इस महामारी से लडऩे के लिए सरकार के प्रयासों के साथ है। कुछ लोगों को इस तरीके में अवैज्ञानिकता नजर आई। ये बात तो दिया जलाने वाले अधिकतर लोगों को भी ज्ञात थी कि नौ मिनिट की यह दीपावाली इस आपदा का इलाज नहीं थी लेकिन इसका जो सांकेतिक महत्व था उसके प्रति आम सहमति से देश में एक आत्मविश्वास का सृजन हुआ जो ऐसे अवसरों पर बेहद कारगर रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जनास्था एक बार फिर पूरे जोशोखरोश के साथ सामने आई। यद्यपि इस जोश में पटाकों का उपयोग हर समझदार को नागवार गुजरा। बीते कुछ दिनों से देश में वायु प्रदुषण की मात्रा में जो कमी आई उसे देखते हुए इस तरह उत्साह का अतिरेक समूचे आयोजन का वह भाग था जिसकी कड़ी आलोचना की जानी चाहिए और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो इसका भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है। ये भी जानकारी में आया कि कुछ अति उत्साही लोगों ने तो अपनी बंदूकों से इस तरह गोलियां दागीं मानों वे जंग जीतकर आये हों। बहरहाल प्रधानमन्त्री की इस पहल से देश में जिस एकजुटता और हौसले का प्रमाण मिला वह भविष्य के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है लेकिन ये भी देखा जाना जरूरी है कि इसे विजयोल्लास मानकर लोग निश्चिन्त न हो जाएं। कोरोना का संक्रमण जिस स्थिति में आ चुका है उसे देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि अभी तक जो भी हुआ वह तो लड़ाई की प्रारम्भिक और आकस्मिक तैयारी थी। असली जंग तो अब शुरू हुई है क्योंकि बीते एक सप्ताह के भीतर ही संक्रमित लोगों का आंकड़ा तेजी से बढ़ते हुए 4 हजार को पार कर चुका है और मृतकों की संख्या में भी लगातार वृद्धि होती जा रही है। ये भी सही है कि संक्रमण का दायरा कमोवेश पूरे देश में फैल गया जिसके लिए दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तबलीगी जमात में संक्रमित हुए  सदस्यों का देश के विभिन्न राज्यों में चले जाना है। संक्रमित लोगों के अलावा कोरोना के संदेह के चलते क्वारंटाइन किये गये लोगों की संख्या भी लगातार ऊपर उठ रही है। केंद्र सरकार द्वारा। अप्रैल से बड़े पैमाने पर कोरोना की जांच कराए जाने का कार्यक्रम बनाया गया है। जिसके अंतर्गत जो इलाके संक्रमण के मामले में अग्रणी हैं वहां के रहवासियों की सघन जांच के अलावा दूसरी जगहों से लौटे लोगों की भी जांच का इंतजाम किया जा रहा है। इस प्रकार अब तक जो हुआ वह एकाएक हुए हमले से बचाव का काम था लेकिन अब जो कुछ भी आगे होगा वह सही मायनों में कोरोना पर हमला करने जैसा कहा जा सकता है। क्योंकि अब तक बीमारी के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल चुकी है। इलाज के तरीके और औषधियों के बारे में भी चिकित्सा जगत काफी अनुभवी होता जा रहा है। सावधानियों के लिए ज़रूरी उपकरण और सामग्री की आपूर्ति भी होने लगी है। शासन, प्रशासन और समाज के बीच अच्छा समन्वय भी देखा जा रहा है। किसी महामारी से लडऩे में ये सब काफी सहायक होता है किन्तु सबसे बड़ी बात है लॉक डाउन का कड़ाई से पालन होना। जरूरी सामान खरीदने के लिए दिए गये समय और छूट के दौरान जिस तरह की अव्यवस्था अनेक जगहों पर देखी जा रही है वह नुकसानदायक हो सकती है क्योंकि एक संक्रमित व्यक्ति अनगिनत लोगों को कोरोना के जाल में फंसाने की ताकत रखता है। कोरोना के बारे में लापरवाह रवैये का जो नुक्सान इटली , स्पेन और अमेरिका को उठाना पड़ा उससे सबक लेते हुए भारत को अगले चरण में और ज्यादा सावधानी की जरूरत है। इस समय पूरा देश कोरोना मरीजों से भरा हुआ है। तबलीगी जमात से निकले लोगों की पतासाजी करना कठिन कार्य बन गया है। उनके अलावा भी काफी संख्या ऐसे लोगों की है जो संदिग्ध होने के बाद प्रशासन को चकमा देकर गायब हो गए। 14 अप्रैल के बाद लॉक डाउन में कुछ छूट देना जरूरी होता जा रहा है। जरूरी चीजों का जो स्टाक था उससे अभी तक का काम तो चल गया किन्तु जल्द ही उत्पादन शुरू नहीं करवाया गया तो फिर आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है। ऐसे में कारखानों और व्यापारिक गतिविधियों को प्रारम्भ करवाने की कार्ययोजना बनाने के साथ ही ये भी देखना होगा कि इससे सोशल डिस्टेंसिंग नामक व्यवस्था चरमरा न जाए। प्रधानमंत्री बहुत ही सधे कदमों से जनता को मनोवैज्ञनिक तरीके से कोरोना के विरुद्ध मजबूती से खड़े रहने के लिए तैयार तो कर ले गये  लेकिन अब आगे की और भी कठिन लड़ाई के लिए उन्हें देश को मोर्चे पर डटे रहने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना पड़ेगा। लोगों को ये समझ लेना चाहिए कि अंधविश्वास और अति विश्वास दोनों ऐसे अवसरों पर बहुत ही नुकसानदेह होते हैं। भारत भावनाप्रधान देश है। यहां के लोग जितनी जल्दी उत्साहित होते हैं उतनी ही जल्दी उनमें निराशा भी घर कर जाती है। इसी तरह जरा सी ढिलाई होते ही वे अनुशासन की लक्ष्मण रेखा लांघने को आतुर हो उठते हैं। इसलिए आगे की जंग बेहद महत्वपूर्ण है । अभी तक कोरोना का स्वरूप एक बड़ी बीमारी तक ही सीमित रहा लेकिन जरा सी असावधानी उसे महामारी में बदल सकती है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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