Monday 27 April 2020

लॉक डाउन : नियंत्रण और संतुलन की नीति पर चलना होगा



आज प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो चर्चा के उपरान्त कोरोना सम्बन्धी आगामी रणनीति बनाकर इस बात का निर्णय करेंगे कि 3 मई के बाद लॉक डाउन को लेकर क्या निर्णय किया जावे। चूँकि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है इसलिए लॉक डाउन को पूरी तरह खत्म कर देना मूर्खता होगी। लेकिन जिन क्षेत्रों में उसका प्रकोप नियन्त्रण में है वहां इस तरह की छूट देना जरूरी हो गया है जिससे कारोबार भी शुरू हो तथा जनजीवन भी पटरी पर वापिस लौट सके। यद्यपि जैसे कि संकेत मिल रहे हैं उनके अनुसार अनेक राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने तो प्रधानमन्त्री से चर्चा के पूर्व ही लॉक डाउन बढ़ाने की मंशा व्यक्त कर दी है जिनमें मप्र के शिवराज सिंह चौहान भी हैं। जिन राज्यों में कोरोना का कहर पूरे जोर पर है वे भी लॉक डाउन खत्म करने का खतरा उठाने तैयार नहीं हैं। और ये सही भी है। लेकिन अनेक राज्यों में हालात तेजी से सामान्य होते जा रहे हैं। वहां सावधानी रखते हुए लॉक डाउन में शिथिलता दी जा सकती है। लेकिन इसके साथ ही ये भी देखना होगा कि सोशल डिस्टेंसिंग जिसे अब फिजिकल डिस्टेंसिंग कहा जाने लगा है को कोरोना से बचाव का सबसे कारगर तरीका माना जा रहा है, के पालन के प्रति लोगों में दायित्व बोध बरकरार रखा जाए। हमारे देश में जनसंख्या की अधिकता की वजह से शारीरिक दूरी बनाये रखना बेहद कठिन काम है। लॉक डाउन के दौरान सब्जी बाजारों में जिस तरह से भीड़ उमड़ती दिखी उससे ऐसा लगता है कि तमाम समझाइश के बावजूद एक तबका सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लापरवाह है। ऐसे में थोड़ी सी ढील मिलते ही लोगों के स्वछन्द होने का खतरा है। जिन शहरों में कोरोना का फैलाव होता जा रहा है उनमें भी कुछ इलाके ही हॉट स्पॉट के तौर पर चिन्हित हुए हैं जो कि घनी बस्तियों में हैं। उन्हें पूरी तरह से सील करने के उपरांत शहर के बाकी हिस्सों में संक्रमण रोकने में सफलता मिली है। लेकिन अभी तक ये समझ में नहीं आ रहा कि आखिर कोरोना कब तक चलेगा और यही सरकार तथा जनता दोनों के लिये बड़ा सिरदर्द है। चिकित्सा जगत के अनेक लोगों ने इस बात के संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि कोरोना भी मलेरिया, डेंगू, फ्लू, चिकिन गुनिया, स्वाइन फ्लू की तरह हमारे जीवन से स्थायी तौर पर जुड़ा रहेगा । यद्यपि उसकी तीव्रता पूर्ववत नहीं रहने वाली। इसी के साथ ही ये भी सही है कि जल्दी ही कोरोना के उपचार के लिए सही दवाई और बचाव के लिए टीके भी तैयार हो जाएंगे। भारत में भी चिकित्सा जगत इस बारे में शोध कर रहा है और जल्द ही परिणाम सामने आ सकते हैं । लेकिन तब तक पूरे देश में सावधानी बरतने पर जोर देना जरूरी होगा। अभी भी कोरोना को लेकर भ्रम की स्थिति है। जिन स्थानों पर उसके मरीज नहीं हैं या काफी कम हैं वहां लॉक डाउन को जारी रखे जाने पर बवाल मचाया जा रहा है। खास तौर पर व्यापारी वर्ग चाहता है कि बाजार खुले जिससे उसका कारोबार चल सके। जनता भी यही चाह रही है । गोवा और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में तो ऐसा किया जा सकता है किन्तु जिस राज्य और उसके विभिन्न शहरों में अभी भी कोरोना संक्रमित मौजूद हैं और उनकी संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है वहां किसी भी प्रकार की जल्दबाजी विस्फोटक हो सकती है। मप्र को ही लें तो इंदौर सबसे बड़ा व्यवसायिक नगर है लेकिन कोरोना का सबसे बड़ा केंद्र भी यही बन गया। जिस तरह वहां रोज नए मामले आ रहे हैं इसे देखते हुए न तो वहां किसी भी तरह की ढील संभव है  और न ही पड़ोसी जिलों में। प्रदेश की राजधानी भोपाल में तो स्वास्थ्य विभाग ही सबसे ज्यादा बीमार है और उसके साथ ही पुलिस कर्मी भी। प्रदेश के बाकी जिलों में जबलपुर में बीते एक सप्ताह के भीतर ही अचानक नए संक्रमित बड़ी संख्या में मिल गये। लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से बाकी जिले और संभागों में हालात पूरी तरह सामान्य होने से लॉक डाउन में रियायत सम्भव है लेकिन एक जिले से दूसरे तक आवाजाही की अनुमति अभी भी नहीं दी जा सकती। ऐसा ही महाराष्ट्र में भी है जहाँ मुम्बई, पुणे और नागपुर आदि में हालात काफी खराब हैं। ये तीनों राज्य के सबसे बड़े नगर हैं। और व्यवसायिक तौर पर भी इनका महत्व है। ऐसे में सरकार के सामने विकट समस्या है। लॉक डाउन को लम्बे समय तक जारी रखना संभव नहीं है और उसे पूरी तरह से हटा लेना भी घातक होगा। इस उहापोह के बीच आज मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री की बैठक का क्या नतीजा निकलता है इस पर देश की नजर रहेगी। लॉक डाउन के कारण कोरोना अभी तक सामुदायिक संक्रमण में तो नहीं बदल सका किन्तु उसकी श्रृखला चूँकि टूटने का नाम नहीं ले रही है इसलिए ऐसा रास्ता निकालने की जरूरत है जिसमें नियन्त्रण और संतुलन बना रह सके। एक महीने से ज्यादा की बंदी के बाद हालात के मद्देनजर सरकार जो भी कदम उठायेगी वे तो अपनी जगह हैं लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शारीरिक दूरी बनाये रखने वाली पुरानी संस्कृति को अपनाने की आदत हर किसी को डाल लेना चाहिए जो किसी भी प्रकार के संक्रमण को रोकने की पहली आवश्यकता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment