Thursday 30 April 2020

अनिश्चितता के बाद भी उम्मीद की किरण





चूंकि इस समय निजी तौर पर आंकड़ों का संग्रहण संभव नहीं है इसलिए जो सरकारी जानकारी मिल रही है उसे ही अधिकृत माना जा रहा है। और उस लिहाज से संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी होने में अब 11 दिन से भी ज्यादा लग रहे है वहीं ठीक होने वाले मरीजों का प्रतिशत भी निरंतर बढ़ता जा रहा है। लेकिन सरकारी आश्वासनों की बाद भी ये कहना गलत नहीं होगा कि नए मरीजों का मिलना भी न केवल जारी है अपितु उनकी संख्या भी प्रतिदिन पिछले से ज्यादा हो रही है। हॉट स्पॉट के रूप में चिन्हित इलाकों के अलावा अब फुटकर मरीज भी सामने आ रहे हैं जिनमें सरकारी स्टाफ  भी है। उदहारण के तौर पर जबलपुर में पुलिस महकमे के एक नाई के कोरोना संक्रमित होने की जानकारी मिलने के बाद अब उन अफसरों की भी जांच की जा रही है जो उसकी सेवाएं लॉक डाउन के दौरान लेते रहे। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के तमाम लोग भी चूंकि अपने कर्तव्य के निर्वहन के कारण विभिन्न लोगों के संपर्क में आते हैं इसलिए उनमें से भी अनेक संक्रमित हो रहे हैं। बहरहाल संतोष का विषय ये है कि महाराष्ट्र, गुजरात और मप्र के इंदौर शहर को छोड़कर शेष स्थानों पर कोरोना का संक्रमण उतना गम्भीर नहीं है। शुरुवात में वेंटीलेटर की कमी चिंता का विषय बनी रही लेकिन अब जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार उसकी जरूरत बहुत कम लोगों को पड़ती है। ऑक्सीजन लगने की नौबत भी कम लोगों को ही आई। हालांकि बंगाल को लेकर भ्रम की स्थिति है। वहां की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने केन्द्रीय टीम भेजे जाने पर ऐतराज जताते हुए उसके काम में अड़ंगा लगाया। ऐसा माना जाता है कि वहां कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा छिपाया जा रहा है। पहले लगा था कि केंद्र सरकार राजनीतिक आधार पर बंगाल को बदनाम कर रही है किन्तु गत दिवस लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी ममता सरकार पर आंकड़े छिपाने का आरोप लगा दिया। ऐसा कहा जा रहा है कि राज्य के अंदरूनी इलाकों में हालात चिंताजनक हैं और बड़ी बात नहीं यदि बंगाल आने वाले दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर हॉट स्पॉट बनकर उभरे। ये स्थिति और राज्यों के साथ भी हो सकती है। ये भी कहा जा रहा है कि अनेक जिलों के अधिकारी भी नये संक्रमणों की जानकारी देने में विलंब कर रहे हैं। हालांकि इस बीच कुछ अच्छी खबरें भी आईं हैं। जिनमें भारत में ही जांच किट का निर्माण और वैक्सीन विकसित करने में मिली सफलता है। फिर भी ये माना जा रहा है कि मई के दूसरे हफ्ते बाद ही ये पता चल सकेगा कि देश में कोरोना की सही स्थिति आखिर है क्या? क्योंकि तब तक लॉक डाउन खोलने को लेकर भी ठोस निर्णय करना पड़ेगा। आज जैसे हालात हैं उनमें कुछ राज्यों ने भले ही थोड़ी ढील दी है लेकिन कुछ ने लॉक डाउन को 3 मई के बाद भी बढ़ाने का फैसला कर लिया है। ऐसे में जब तक देश के अधिकांश राज्यों में स्थिति सामान्य नहीं हो जाती तब तक कुछ भी कह पाना कठिन है। शैक्षणिक सत्र तो आगे बढ़ ही चुका है लेकिन व्यापार जगत के लिए सामान्य परिस्थितियां जब तक नहीं बनती तब तक जनजीवन भी पटरी पर नहीं लौट सकेगा। दरअसल सरकार के लिये भी यही चिंता का दूसरा बड़ा कारण है। क्योंकि व्यापार-उद्योग शुरू हुए बिना उसे भी राजस्व नहीं मिलेगा। यद्यपि पूरी दुनिया की तरह भारत भी ये मान चुका है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष एक तरह से शून्य रहेगा। कोरोना का संक्रमण भले रुक जावे किन्तु उसका प्रभाव लम्बे समय तक बना रहने से  जनता और सरकार दोनों प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। इसलिए हमें आने वाले अनेक महीने एक तरह के आपातकाल में गुजरने की मानसिकता बना लेनी चाहिए। लॉक डाउन के समाप्त होते ही जनजीवन के सामान्य होने की आपाधापी खतरनाक होगी। बेहतर हो छूट मिलने के बाद भी अनुशासित जीवन हेतु हम सब तैयार रहें। विकास दर चूंकि शून्य से भी नीचे जाने का अंदेशा है इसलिए वही आने वाले समय में अपने पांव मजबूती से जमाये रख सकेगा जो बदले हुए हालातों से सामंजस्य बिठाकर चल सके। सबसे बड़ी बात होगी लोगों में कार्य संस्कृति का विकास। सरकारी अनुदानों पर जि़न्दगी बसर करने वाले करोड़ों लोगों को भी काम में लगाना जरूरी होगा। अब वो समय नहीं रहा जब आबादी का बड़ा हिस्सा निठल्ला बैठा रहे। आगामी कुछ महीने तो कोरोना से हुए नुकसान को समेटने में ही लग जायेंगे। इस दौरान देश की वही स्थिति होगी जो किसी इंसान के लम्बी बीमारी से उठने के बाद होती है। कमजोरी के बाद भी उसे काम शुरू करना होता है। लेकिन सक्रिय होने से उसकी शारीरिक शक्ति के अलावा मनोबल भी वापिस लौटता है। भारत भी इस समय लम्बी बीमारी से निकलने की तैयारी में है। शुरुवात में वह भी खुद को अशक्त महसूस करेगा किन्तु यदि 135 करोड़ लोगों का ठीक से उपयोग किया जा सके तब बड़ी बात नहीं, कुछ महीनों बाद ही विकास की गति तेज हो जाए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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