Thursday 9 April 2020

धार्मिक आस्था और ईश्वर में विश्वास भारत की आत्मा है और आत्मा अमर होती है




 पत्थर में भगवान का एहसास करने वाले इस देश को दुनिया भर में सपेरों और मदारियों के देश के रूप में प्रचारित करते हुए इसका उपहास लम्बे समय तक होता रहा | नदी , तालाब , कुए , समुद्र सभी में देवताओं का वास मानकर उनके प्रति श्रद्धा भाव को भी अंधविश्वास का नाम देकर मजाक उड़ाया जाता रहा | वृक्ष और पर्वत की पूजा को पागलपन  मानकर आलोचना करने वाले भी कम नहीं हैं | प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के संस्कार को   विकास विरोधी बताकर  उसको पोंगापंथ की संज्ञा दे दी गई | हमारी जीवन पद्दति , आचार और व्यवहार सभी में पिछड़ेपन की झलक भी कुछ लोगों को नजर आती है | खान पान - पहिनावा , रीति रिवाज , भाषा , बोली , लोक संस्कृति सभी को दकियनूसी मानकर उसके विरुद्ध दुश्प्राचार भी कम नहीं हुआ | परिवार नामक संस्था और सामजिक ताने - बाने को छिन्न - भिन्न करने का सुनियोजित षड्यंत्र भी अनवरत  रूप से चला आ  रहा है |  भारतीय संस्कृति और संस्कारों को धीमा जहर देकर  खत्म करने की कार्ययोजना भी अमल में लाई जाती रही | इसके परिणाम किसी से छिपे नहीं हैं | लेकिन कोरोना वायरस के हमले से उत्पन्न हालात में भारतीय जीवन मूल्यों की अहमियत को जब पूरी दुनिया अपनाने   की मानसिकता बना रही है तब हमारे देश के कुछ अति बुद्धिजीवी इस बात को प्रचारित करने में लग गये हैं कि ईश्वर नाम की कोई चीज है ही नहीं | देश के सुप्रसिद्ध मंदिरों और तीर्थस्थलों में तालाबंदी किये जाने से अभिप्राय निकाला जा रहा है कि उनमें  विराजमान मूर्तियों में अपने भक्तों की रक्षा का सामर्थ्य चूँकि नहीं है  इसलिए भगवान को भी लॉक डाउन में रख दिया गया | मस्जिद , गुरुद्वारे , चर्च आदि बंद होने को भी इसी श्रेणी में रखा जा रहा है | 

सवाल ये है कि ईश्वरीय सत्ता के प्रभाव और अस्तित्व को नकारने की इस कोशिश के पीछे उद्देश्य क्या है ? और फिर ऐसे समय जब कोरोना से आतंकित लोगों का मनोबल बढाने के लिए उनको हौसला देने की आवश्यकता है तब उनको मानसिक सुरक्षा और संबल देने वाले विश्वास के प्रति अविश्वास उत्पन्न करना महज कुंठा है या भारतीय समाज की एकता , समन्वयवादी सोच और हर संघर्ष में ईश्वर की शक्ति के  सहारे विजयी होने के आत्मिविश्वास को कमजोर करने का घिनौना प्रयास , ये विचारणीय  सवाल है | 

आम भारतीय कर्म के साथ ही ईश्वरीय कृपा में आस्था रखता है | उसके ईश्वर भी अनगिनत हैं | वह हिमालय की चोटियों में भी उनकी उपास्थिति  का एहसास कर लेता है  तो  श्मसान की वीरानगी  में भी | अपने गाँव या कस्बे की किसी छोटी सी नदी में  स्नान करते समय भी वह गंगा जल की पवित्रता को महसूस करते हुए संतुष्टि के चरम तक चला जाता है |

 कण - कण में भगवान की कल्पना उसके लिए केवल शब्दों तक सीमित न होकर अखिल ब्रम्हांड के प्रति उसके जुड़ाव का प्रतीक है | यही दृष्टिकोण वर्तमान आपदा को पराजित करने के आत्मविश्वास का आधार है वरना भारत जैसे देश में जहां अस्पातालों में कुत्ते के काटने पर लगाया  जाने वाला रैबीज का इंजेक्शन तक सुलभ न हो वहां इतनी बड़ी महामारी को लेकर तो अकल्पनीय हालात बन जाते | यद्यपि ऐसा नहीं है कि स्थिति  पूरी तरह नियन्त्रण  हों तथा सब कुछ व्यवस्थित और अपेक्षित तरीके से चल रहा हो लेकिन अचानक घरों में सिमट जाने के सरकारी फरमान को अधिकतर  लोगों ने  जिस सहजता से स्वीकार किया वह इस बात का परिचायक है कि इस देश का मानस विपरीत  पारिस्थितियों में भी धैर्य नहीं छोड़ता जो उसकी आध्यात्मिक आस्था  और विश्वास के कारण कायम है |

 यद्यपि अनेक या यूँ कहें कि काफी जगह लोगों ने व्यवस्था भंग की लेकिन ये भी सही है कि वे समझाने पर मान भी गये | इसकी  वजह भी यही है कि वे मानवीय जीवन का शत्रु बनकर आये कोरोना जैसे अदृश्य शत्रु को पराजित करने के लिए ज्ञान - विज्ञान द्वारा सुझाये रास्ते पर चलने  के साथ ही उस ईश्वरीय शक्ति में अपनी आस्था को भी मजबूती से थामे हुए है जिससे उनका  बचपन से ही नाता जुड़ा हुआ है |

 इस कठिन समय में जब मृत्यु का खौफ समूचे वातावारण में मंडरा रहा है और पूरा देश घरों में सीमित हो गया है तब आध्यात्मिक विश्वास से प्राप्त होने वाली ऊर्जा एक  अतिरिक्त शक्ति  स्रोत बनकर अपना प्रभाव छोड़ती है | बड़े - बड़े चिकित्सक भी इलाज के दौरान मरीज के परिजनों को दवा के साथ दुआ करने की सलाह देते हैं  , तो  क्या उनको भी अन्धविश्वासी मान लिया जावे | देश के  नामी - गिरामी अस्पतालों तक में ध्यान और प्रार्थना हेतु कक्ष बनाये जाते हैं | जो इस बात का प्रमाण है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी इस वास्तविकता  को मानता है कि आध्यत्मिक विश्वास भी  उपचार में सहायक होता है |

 ये बात तो ठीक है कि धर्म के व्यापारियों और कलियुगी भगवानों ने श्रद्धालुओं के विश्वास का गलत फायदा उठाकर धर्म को बदनाम करते हुए आस्था को ठेस  पहुंचाई किन्तु जहां तक बात उस परम अलौकिक शक्ति में विश्वास की है तो वह यदि यथावत है तो मान लेना गलत न होगा कि हमारे संस्कार और संस्कृति का आधार जिस चिंतन पर आधारित है वह वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है | भले ही उसे प्रतिपादित करने की योग्यता रखने वाले पूर्वापेक्षा कम होते गये | लेकिन जिस तरह कृष्णपक्ष आने के बाद चन्द्रमा की चमक प्रतिदिन कम होने के बाद भी उसके प्रति आस्था कम नहीं होती ठीक वैसे ही अध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वरीय शक्ति को कमतर बताने के प्रयास भी अमावश्या के पूर्ण अन्धकार को अपनी विजय मानकर उछलने  के बाद शुक्लपक्ष की पहली रात में ही पराजय की ओर बढने मजबूर हो जाते हैं |

 मौजूदा दौर पूरी मानव जाति के अस्तित्व पर संकट बनकर आया है | भारत के बारे में ये आशंका व्यक्त की जा रही है कि कोरोना के फैलाव के लिए ये आसान देश है | लेकिन ये भी सही है कि तमाम विसंगतियों  और विरोधाभासों के बावजूद आध्यात्म और ईश्वरीय शक्ति में अटूट विश्वास के कारण आम भारतीय मानसिक तौर पर पूरी तरह मजबूत है और यही मानसिकता किसी भी व्यक्ति और समाज की संघर्ष क्षमता का मापदंड होता है |

 तर्क देने वाले कह सकते हैं कि जिन देशों में कोरोना का तांडव मचा हुआ है उनमें चीन को छोड़कर तो बाकी सभी आस्तिकता में यकीन रखते हैं | तब उनके यहाँ ईश्वर ने कृपा क्यों नहीं की ? प्रश्न स्वाभाविक है किन्तु ऐसा कहने वाले भारत और यहाँ के लोगों को या तो ठीक से समझते नहीं या फिर उनकी सोचने की शक्ति  ही विकृति का शिकार होकर रह गई है |

 स्व. देव आनंद की 'गाइड'  नामक एक फिल्म सत्तर  के दशक में आई थी जो सुप्रसिद्ध लेखक आर.के नारायणन के उपन्यास  पर  आधारित थी | फिल्म के पूरे कथानक की बजाय उसके अंतिम भाग का उल्लेख मैं यहाँ करना चाहूँगा | जेल से सजा काटकर निकला नायक लोकनिंदा और शर्मिंदगी से बचने के लिए बजाय अपनी माँ और प्रेमिका के  पास लौटने के बजाय भटकता हुआ एक गाँव के मंदिर में जाकर थका हारा लेट जाता है | गांव वाले उस पर दया कर उसे वहीं रहने की जगह दे देते हैं | चूँकि वह पढ़ा - लिखा था इसलिए कुछ दिनों में ही लोग उसके प्रशंसक  हो जाते हैं | वह उन्हें उन पाखंडियों से बचकर रहने की शिक्षा देता है जो  भोले - भाले गाँव वालों की भावनाओं को भुनाते थे | एक दिन वह उन्हें कहानी सुनाता है जिसमें किसी गाँव में सूखा  पड़ने पर एक साधु वर्षा के लिए उपवास शुरू कर देता है | और कुछ दिन बाद गाँव में खूब बरसात होती है | कहानी के माध्यम से  देव आनन्द ये सन्देश देते हैं कि  साधु को ये विश्वास था कि वर्षा होगी और विश्वास में  बड़ी शक्ति होती है ।

 संयोगवश जल्द ही उस गाँव में सूखा पड़ जाता है और तब गाँव वाले उस कहानी के आधार पर देव आनंद के  पास आकर आग्रह करते हैं कि वह भी उपवास करे | वह उन्हें काफ़ी समझाता है कि साधु - वाधु नहीं है  और कहानी सच हो ,  ये जरूरी नहीं है | लेकिन गाँव वाले उसके  पैर पकड़ लेते हैं और संकोचवश वह उनको न नहीं बोल पाता | 

उपवास शुरू  होते ही दूर - दूर तक खबर फ़ैल जाती है | जनता देव आनंद के दर्शन  करने आने लगती है | उसकी माँ और प्रेमिका भी अखबार में पढकर वहां आती हैं | इस दौरान एक विदेशी महिला पत्रकार देव आनंद का साक्षात्कार लेते हुए पूछती है , स्वामी , क्या आपको विश्वास है कि बरसात होगी और तब देव आनंद भूख से कमजोर हो चुकी आवाज में जवाब देते हैं कि मुझे गाँव वालों के  विश्वास पर विश्वास है | अंत में देव आंनद की मौत हो जाती है | लेकिन उसकी सांस रुकते ही जोरदार बारिश आ जाती है | सब लोग  ये खुशखबरी सुनाने मन्दिर के भीतर जाते हैं लेकिन उसका निर्जीव  शरीर देखकर दुखी हो जाते हैं |

 पाठक सोच रहे होंगे कि गाइड फिल्म के उल्लेख का यहाँ क्या औचित्य है ? लेकिन मैं केवल देव आनंद द्वारा विदेशी पत्रकार को दिए उत्तर को संदर्भ बनाना चाहता हूँ कि गाँव वालों के  विश्वास पर मुझे विश्वास है | 

आज की विषम परिस्थिति में हमें भी अपने विश्वास और आस्था को सुद्रढ़ रखना चाहिए | इसे डिगाने वाले किसी भी तरह से हमारे शुभचिंतक नहीं है | ऐसे लोगों को ये नहीं भूलना चाहिए कि धार्मिक आस्था और ईश्वर में  विश्वास भारत की आत्मा है और हमारा दर्शन हमें बताता आया है कि 
आत्मा अमर है |

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