Saturday 25 April 2020

जान है तभी भगवान है : नए भारत का नारा आपकी ज़िन्दगी केवल आपकी ही नहीं है इस साल नहीं पिघलेंगे आस्था के अमरनाथ



होली में लोग गले नहीं मिले , मिलन समारोह भी नहीं हुए , नवरात्रि , राम नवमी , महावीर जयन्ती , हनुमान जयन्ती , गुड फ्रायडे , ईस्टर , बैसाखी , आम्बेडकर जयन्ती आदि भी सांकेतिक तौर पर घरों के भीतर मना ली गई |  और अब रमजान पर भी उसी तरह घर पर ही  सभी धार्मिक रस्में निभाई जायेंगी | बद्रीनाथ और केदरनाथ के कपाट बजाय हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति के सीमित  लोगों के साथ  खोले जाने का निर्णय किया गया है |

अक्षय  तृतीया पर परशुराम जयन्ती के जुलूस रद्द कर दिए गये | गर्मियों में होने वाली शादियाँ तथा अन्य मांगलिक कार्यक्रम भी स्थगित किये जा चुके हैं | आगामी 1 मई को मजदूर दिवस पर होने वाली रैलियां भी नहीं होंगी.| क्रिकेट का कमाऊ आयोजन आईपीएल तो पहले ही रद्द किया जा चुका था | उसके बाद ये फैसला भी किया गया कि अमरनाथ यात्रा भी इस साल नहीं होगी | उल्लेखनीय है गत वर्ष भी अनुच्छेद 370 हटाये जाने से उत्पन्न हालात के कारण उसे बीच में रोकना पड़ा था | गार्मियों की छुट्टियों में होने वाला सैर सपाटा भी कोरोना की भेंट चढ़ गया | बच्चे दादा - दादी , नाना - नानी के यहाँ नहीं जायंगे | 3 मई के बाद लॉक डाउन हटा तो भी पूरे देश से नहीं हटेगा | पैसे की गर्मी वाले जिन लोगों को देश की गर्मी सहन नहीं , होती वे यूरोप चले जाते थे | लेकिन इस बार उनकी हसरत अधूरी  रह गयी |

इस प्रकार देखें तो हम सभी ने अपनी आस्था , मनोरंजन , सामाजिक सम्बन्ध  , आदि से बिना ऐतराज किये समझौता कर किया |  क्या साधारण स्थितियों में इस तरह का धैर्य , संयम , अनुशासन  और सहयोगात्मक रवैया संभव था ? और उत्तर है कदापि नहीं | किसी  धार्मिक  जुलूस का समय और रास्ता बदलने पर या तो बवाल मच जाता या फिर उच्च और सर्वोच्च न्यायालय तक मामला जा पहुंचता | चंद दिनों के फासले में हिन्दू , जैन  , मुस्लिम , सिख और ईसाई धर्म के प्रमुख त्यौहार पड़े | संविधान निर्माता की जयंती भी आई | लेकिन न किसी ने जुलूस निकालने की  जिद पकड़ी और न ही मूर्तियों  पर माला पहिनाते किसी ने अपनी फोटू खिंचवाई |

संकेत साफ़ है कि अपनी और अपनों की जान सभी को प्यारी है |

धर्म , आस्था , सामाजिक परम्पराएं और आदर्श  के प्रति विश्वास और सम्मान के लिए बात - बात में मरने - मारने पर आमादा लोग आराम से घर में बैठकर अनुशासित नागरिक होने का जो प्रमाण दे रहे हैं , उसी में छिपी हुई  है नए भारत की तस्वीर |

देश केवल नदी , पहाड़ , जंगल , मिट्टी से नहीं बनता | उसका निर्माण  होता है लोगों से और वही लोग चूँकि आज खतरे में हैं इसलिए समाज की सामूहिक चेतना में  निजी और छोटे समूहों की भावनाओं का विलीनीकरण  हो गया | भारत जैसे उत्सव प्रधान देश में इस तरह का आचरण कुछ समय पहले तक कल्पनातीत था | लेकिन एक महामारी ने वह सब कर दिखाया जिसे सरकार और सर्वोच्च न्यायालय तक नहीं करवा पाते थे |

इसके उदाहारण भी कम नहीं हैं | तमिलनाडु का जलीकुट्टी , दीपावली पर देर रात  तक कानफोडू पटाके और ऐसे ही तमाम धार्मिक मामलों में देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले तक को लोगों ने नजरंदाज कर  दिया |

लेकिन इस समय किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के प्रति न कोई आग्रह कर रहा है और न ही दबाव डालने की कोशिश ही  है | शत- प्रतिशत  अनुशासन का पालन बेशक न हो रहा हो किन्तु  जितना भी देखने में आ रहा है वह भारतीय समाज की बहुधर्मी विविधता और परम्पराओं के निर्वहन के प्रति कट्टर सोच के मद्देनजर एक बड़ा आश्चर्य है |

और इसका स्वागत होना चाहिए क्योंकि यही  समझदारी भविष्य के भारत की बुनियाद होगी | आज जो लोग भी इसके विरुद्ध जाने की मूर्खता कर  रहे हैं , वे कितने भी संगठित या दुस्साहसी हों  , लेकिन समाज की सामूहिक रचनात्मक  सोच के आगे नहीं टिक पाएंगे |

इस लॉक डाउन ने हमारे देश के बारे में  स्थापित उस सोच को झुठला दिया है कि यहाँ कुछ नहीं हो सकता | एक माह से घरों में बैठे अनगिनत लोगों के मुंह से एक बात जो स्वप्रेरणा से बाहर निकलकर आई , वह है प्रदूषण में कमी से पर्यावरण में आये सुखद परिवर्तन की स्वीकारोक्ति | नदी , जंगल ,  पहाड़ की स्थिति में जो चमत्कारिक सुधार बीते एक माह में हुआ उसने देशवासियों के मन में ये भाव पैदा कर दिया है कि ये आगे भी जारी रहे |

एक समय था जब अमरनाथ की गुफा में बर्फ से बनने  वाले   स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन सभी तीर्थयात्रियों को होते थे | लेकिन आस्था के अतिरेक ने ये नौबत ला दी कि यात्रा शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही  वे पिघलने लगे | यात्रियों की बेतहाशा भीड़ के बाद वहां हेलीकाप्टर सेवा भी शुरू हो गयी | उत्तराखंड के धामों में भी यही हाल था | लेकिन अभी तक के जो समाचार हैं उनके अनुसार समूचे हिमालय क्षेत्र में इस समय प्रकृति अपने असली सौदर्य के साथ उपस्थित है | अनेक वनस्पतियाँ और औषधियां जो पर्यटकों की उपस्थिति से बढ़े तापमान की वजह से लुप्तप्राय थीं , वे भी इस साल उत्पन्न होने की संभावना है |

कश्मीर से  आ रही खबरों के अनुसार यदि इस साल अमरनाथ यात्रा रुकी रही तो बर्फ से बनने वाला प्राकृतिक शिवलिंग अपनी पूरी ऊँचाई तक पहुंचने के साथ ही लम्बे समय तक बना रहेगा |

रही बात  धार्मिक आस्थाओं की तो हमें ये याद रखना चहिये कि उनके पीछे हमारी बनाई परम्पराएँ ही हैं | महाराष्ट्र में  गणेश पूजा परिवारिक आयोजन होता था | लोकमान्य तिलक ने उसे सार्वजनिक रूप देकर स्वाधीनता आन्दोलन के लिए जनचेतना जगाने का अपना लक्ष्य पूरा किया था | अब ऐसे में किसी आपदा की वजह से वहां का गणेश महोत्सव आयोजित न हो सके तो इससे आसमान फट नहीं जाएगा |

इसी तरह इस वर्ष लाखों  लोग मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , चर्च नहीं जा सके तो क्या उन सब पर गाज गिर जायेगी ? गंगोत्री , यमुनोत्री में इस साल यदि श्रद्धालु नहीं जाएं तो गंगा - यमुना उन्हें ज्यादा आशीर्वाद देंगीं | और भगवान अमरनाथ अपने उत्साही भक्तों  की धमाचौकड़ी से मुक्ति पाकर उसी दिव्य शांत वातावरण का अनुभव करेंगे जिसमें बैठकर उन्होंने पार्वती जी को अमरत्व का रहस्य बताया था |

देश के मैदानी इलाकों में मई का महीना आने को है लेकिन अभी तक तापमान बढ़ने से होने वाली परेशानी महसूस नहीं हुई |

दो दिन पहले ही एक मित्र से फोन पर मौसम में आये आश्चर्यजनक बदलाव की बात चली तो वे बोले क्यों न कोरोना के बाद हम अपनी मंडली को लॉक डाउन क्लब का नाम देते हुए लोगों को इस बात के लिए प्रेरित करें कि कम से कम सप्ताह के एक दिन स्वस्फूर्त लॉक  डाउन का पालन किया जाये | मैंने प्रस्ताव रखा कि सप्ताह में एक दिन कोई विशेष अनिवार्यता न हो तो पेट्रोल -  डीजल चलित वाहन का उपयोग न  किया जावे | इस पर भी सहमति के स्वर सुनाई दिए |

जबलपुर के मेरे साथी पत्रकार Manish Gupta ने सोशल मीडिया पर देशाटन नामक एक अभियान शुरू करते हुए लोगों को बजाय विदेश जाने के घरेलू पर्यटन को प्रोत्साहित करने हेतु आगे आने का आह्वान किया , जिसे उत्साहजनक समर्थन मिल रहा है |

ये रचनात्मक बदलाव भले ही अभी सतह पर नहीं आये क्योंकि लोग घरों में हैं लेकिन लॉक डाउन ने लोगों की मानसिकता को जिस गहराई से प्रभावित करते हुए उनकी विचारशीलता को जाग्रत किया वह छोटी बात  नहीं है | जिसका दूरगामी परिणाम अवश्यंभावी है |

लॉक डाउन होते ही शहर के तकरीबन सभी निजी प्रैक्टिस वाले डाक्टर्स के दवाखाने बंद हैं | इस कारण  उन मरीजों को परेशानी भी हो रही है जिन्हें चिकित्सकीय परामर्श की जरूरत निरंतर पड़ती थी  | लेकिन उनमें कई हैं जिन्हें उसकी आवश्यकता नहीं पड़ी | मेरे निकट संपर्क में ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के भी कुछ ऐसे मरीज हैं जो पिछले एक माह में खुद को स्वस्थ अनुभव करने लगे |

कल एक घनिष्ट मित्र को फोन करने पर उनके बेटे ने उठाया और मेरे कुछ पूछने से पहले ही बोला चाचाजी , पापा छत पर पतंग उड़ा रहे हैं | और मम्मी भी अपनी बहू और पोतियों के साथ वहीं हैं | बाद में मित्रवर का फोन आया और उन्होंने बचपन के उस शौक के सफलतापूर्वक नवीनीकरण को एक बड़ी कामयाबी की तरह बखान करते हुए बताया कि आज दो पेंच भी काटे | उनका कहना था कि अब वे इस शौक को छोड़ेगे नहीं क्योंकि इससे मिलने वाली खुशी भी शुद्ध पर्यावरण जैसी है |

अनेक परिवारों में बूढ़े और बच्चे साथ बैठकर वे खेल , खेल रहे हैं जो घर के किसी कोने में उपेक्षित पड़े हुए थे | उस दृष्टि से देखें तो ये संकट भारत में परिवार नमक संस्था के महत्व को पुनर्स्थापित करने का माध्यम बन गया है | लोगों को ये बात अच्छी तरह समझ में आने लगी कि तकलीफ में भी आनद कैसे तलाशा जा सकता है ?  कोरोना कितना भी खिंचे लेकिन उसे जाना तो पड़ेगा ही और उसके बाद भारतीय समाज में एक अभूतपूर्व परिवर्तन नजर आयेगा | लोगों में संयम , मितव्ययता , धीरज , आपसी सहयोग , अनुशासन जैसे गुण तो दिखाई देंगे ही , जो सबसे बड़ा बदलाव आयेगा वह होगा समझदारी |

प्रकृति  के साथ अब तक किये गए अत्याचार को लेकर जो स्वप्रेरित अपराधबोध इस दौरान जागा वह बहुत बड़ी उपलब्धि है | नदी का स्वच्छ जल , और हवा में आई अजीब सी खुशबू ने उस वर्ग को अंदर तक छुआ है जो अपनी सम्पन्नता के मद में प्रकृति को अपना गुलाम बनाने की मानसिकता  में डूबा हुआ था |

सरकार या सर्वोच्च न्यायालय समझाकर हार गये | पर्यावरण को बचाने  के लिए सक्रिय संस्थाएं भी लोगों को उतना प्रेरित नहीं कर पाईं जितना इस लॉक डाउन ने कर दिखाया | यद्यपि अनेक मित्र मेरी इस सोच को जल्दबाजी बताते हुए कहते हैं कि अव्वल तो कोरोना का असर पूरी तरह समाप्त  होने में अभी लम्बा समय लगेगा , जिसकी वजह से आज जो लोग लॉक डाउन के प्रति आभार जता रहे हैं वे ही अधीर होकर विरोध में उतर आयंगे तथा जो आशावाद  नजर आ रहा है वह स्थिति सामान्य होते ही फुर्र हो जाएगा |  लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि समाज के शिक्षित  वर्ग के साथ ही युवा पीढ़ी पर लॉक डाउन ने जो  मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ा है उसके कारण वे पहले से अधिक जिम्मेदार , पारिवारिक और सामाजिक होकर निकलेंगे |

समूची दुनिया की खबर रखने वाले युवाओं के मन में भारत को लेकर बनी नकारात्मक छवि दूर होना बड़े बदलाव का कारण बनेगा | और तो और जिस पुलिस विभाग के बारे में अपवादस्वरूप ही कोई अच्छी धारणा रखता था उसमें जो  सेवा भाव देखने मिल रहा है उसने भी नए भारत को लेकर उम्मीदें मजबूत की हैं | मान ही लें कि आपदा खत्म होने के बाद सब कुछ इतना अच्छा शायद न रहे लेकिन ये भी उतना ही सच है कि कर्तव्य पथ पर कुछ समय चलने के बाद व्यक्ति की मानसिकता पर सात्विकता का असर पड़ता ही है |

चर्चा  जहाँ से शुरू की वहीं खत्म करें तो अच्छी बात है कि लोगों को ये समझ में आ गया है कि  इन्सान की ज़िन्दगी से मूल्यवान दुनिया में और कुछ भी नहीं है | हमारे द्वारा धर्म और सामाजिकता के निर्वहन से चूंकि औरों की ज़िन्दगी भी खतरे  में पड़ सकती है इसलिए आम भारतीय इस रहस्य को जान गया है कि हमारी ज़िन्दगी  केवल हमारी नहीं अपितु दूसरों को जीवित रखने में भी  सहायक बन सकती है | और इसी सोच की वजह से करोड़ों भारतवासी अनगिनत  परेशानियों के बावजूद भी  घरों में बने हुए हैं |

इस एक महीने  में अधिकतर लोगों को ये  समझ में आ चुका है कि जान है तो  जहान है  तथा   जान भी और जहान भी जैसे नारे अब पुराने हो चुके हैं |

नये भारत का नारा होगा :-

जान है तभी भगवान है |

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