Wednesday 8 April 2020

लॉक डाउन : अगला हफ्ता बेहद महत्वपूर्ण



महाराष्ट्र से खबर आई है कि दिल्ली के मरकज से लौटे तबलीगी जमात के 60 सदस्य लापता हैं। उन्होंने अपने मोबाईल भी बंद कर दिए हैं जिससे उनका ठिकाना पता नहीं लग पा रहा। ये स्थिति पूरे देश में देखी जा रही है। जमात के अलावा भी अनेक लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी-अपनी बीमारी को छिपाए रखा और अपने अलावा औरों को भी संक्रमित करने का कारण बन गए। भोपाल में तो मप्र शासन के स्वास्थ्य विभाग की एक वरिष्ठ महिला अधिकारी की बीमारी समय पर उजागार नहीं होने से न सिर्फ  उनके अपने विभाग बल्कि सचिवालय के अनेक अधिकारी और कर्मचारी भी कोरोना संक्रमित या संदिग्धों की श्रेणी में आ गए। मैदानी रूप से तैनात अमले में संक्रमण फैलना स्वाभाविक है लेकिन प्रशासन के उच्च स्तर पर बैठे अधिकारियों की लापरवाही कितनी महंगी पड़ेगी ये कहना कठिन है। मप्र देखते - देखते जिस स्थिति में आ गया है वह बेहद चिंताजनक है। इंदौर के बाद भोपाल में जो हालात पैदा हो गए उनसे पूरे प्रदेश में घबराहट है। क्योंकि सूबे की सरकार जहाँ से चलती हो वहां यदि सब कुछ बंद हो जाये तब निर्णय लेने में भारी परेशानी होना स्वाभाविक है। इसे लेकर आलोचना के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। जिस महिला अधिकारी के कोरोना संक्रमित होने से स्वास्थ्य विभाग के तमाम लोग संक्रमण और संदेह के घेरे में आ गये उनका बेटा विदेश से लौटा था। अधिकारी का कहना था उसे कोई तकलीफ  नहीं होने से उन्होंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया। तब सवाल उठता है कि उन्हें संक्रमण आखिर कहाँ से हुआ? इसके बाद ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ कि शासन आम जनता और वीआईपी में भेद कर रहा है। किसी बस्ती में एक संक्रमित होने पर सभी लोगों पर शिकंजा कस दिया जाता है लेकिन अधिकारी द्वारा संक्रमण को छिपाने के बाद भी उसके प्रति रियायत बरती जाती है। निश्चित रूप से ये दोहरा रवैया है। यद्यपि मौजूदा हालात में शासन और प्रशासन का मनोबल तोडऩा उचित नहीं है लेकिन प्रदेश सरकार को अपनी बीमारी छिपाने वाली अधिकारी के विरुद्ध कुछ न कुछ तो ऐसा करना ही चाहिए जिससे आम जनता में ये सन्देश जाए कि गलती करने की सजा आम और खास के लिए एक जैसी है। गनीमत ये है कि अब तक लॉक डाउन के दौरान नेतागण सदल - बल नहीं निकल रहे। हालांकि राहत कार्यों में अनेक पूरी तरह सक्रिय हैं किन्तु दंगे फसाद के समय अपने और अपने समर्थकों के लिए थोक के भाव कफ्र्यू पास का जुगाड़ कर अपना रुतबा दिखाते हुए यहाँ - वहां मंडराने वाले नेता इस समय ठंडे हैं। इसे उनकी अनुशासनप्रियता नहीं मजबूरी कहना ज्यादा सही होगा क्योंकि सबके मन में ये बात बैठ चुकी है कि जान है तो जहान है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा और राज्यों के मुख्यमंत्री भी इसी आधार पर लॉक डाउन बढ़ाने के पक्षधर हैं। और इसमें कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि कोरोना की श्रृंखला को तोड़े बिना उसका खात्मा संभव नहीं होगा। और इसलिए ये आवश्यक है कि कोरोना वॉरियर्स के नाम से जाने जा रहे तमाम प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक और उनका सहयोगी स्टाफ , पुलिस महकमा, स्थानीय निकायों का अमला तथा नि:स्वार्थ भाव से मानव सेवा कर रहे समाजसेवी पूरी तरह सुरक्षित रहें। कोरोना से लड़ाई उतनी आसान नहीं जितनी शुरुवात में लग रही थी। मरकज काण्ड ने पूरे अभियान की हवा निकाल दी। पहले कोरोना रोगी सप्ताह में दोगुने हो रहे थे लेकिन मरकज से निकले जमातियों की वजह से अब चार दिन में ही संख्या दोगुनी होती जा रही है। ऐसे में ये जरूरी हो गया है जो भी लोग बचाव और इलाज में लगे हैं वे स्वस्थ और सुरक्षित रहें। और इसके लिए दायित्वबोध बहुत जरूरी है। जिस किसी को अपने बारे में तनिक भी शंका हो उसे फौरन अपनी जाँच करवाते हुए जो भी जरूरी हो करना चाहिए क्योंकि बीमारी छिपाने वाला खुद को तो नुकसान पहुंचाएगा ही अपने साथ सैकड़ों और हजारों को संक्रमित करने का कारण भी बनेगा। मरकज से निकले जमाती भी पता नहीं क्यों छिपे - छिपे फिर रहे हैं। मौलाना साद भले ही अज्ञातवास में चले गए हों लेकिन तबलीगी जमात के जो प्रवक्ता टीवी चैनलों पर आकर मरकज का बचाव करने में जुटे हैं उन्हें चाहिए वे मस्जिदों और बस्तियों में दुबके जमातियों से बाहर आकर जाँच में सहयोग करने की अपीलें करें क्योंकि ऐसा करने से ही वे बीमारी तथा कानूनी कार्रवाई से बच सकेंगे। यदि अभी भी वे ऐसा नहीं करते तब ये माना जायेगा कि कोरोना फैलाना तबलीगी जमात की कार्ययोजना का हिस्सा था। लॉक डाउन खत्म होने में अभी 6 दिन शेष हैं। यदि इस अवधि में भी कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या इसी तरह से बढ़ती रही तब देशवासियों को आगे भी घरों में रहने की मजबूरी झेलनी होगी। बीते एक दो दिन में जैसी जानकारी मिली है उसके आधार पर ये माना जाने लगा है कि जरा सी चूक होने पर कोरोना सामुदायिक संक्रमण वाले पायदान पर जाकर बैठ जाएगा और वह स्थिति भयावह होगी। इसलिए बेहतर होगा कि कोरोना को लेकर किसी भी तरह की ढिलाई नहीं बरती जाए। ये केवल तबलीगी जमात के लोगों को ही शिकंजे में लेगा ये सोचकर निश्चिन्त हो जाना मूर्खता है । आने वाला हफ्ता बहुत ही निर्णायक होगा।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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