Wednesday 15 April 2020

कोरोना के बाद भारत का अच्छा भविष्य




कोरोना संकट से जूझने  के साथ ही पूरी दुनिया इस बात को लेकर भी विचारमग्न है कि इस अदृश्य शत्रु से लड़ाई के दौरान अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी  पर कैसे लाया जा सकेगा। भारत में भी बड़ी चिंता  का विषय ये है कि उम्मीद के अनुसार यदि 30 जून तक भारत कोरोना  मुक्त हो सका तब उसके बाद देश के अर्थतंत्र को दोबारा मजबूती कैसे प्रदान की जा सकेगी? बीते एक साल में ही विकास दर को लेकर सारे अनुमान संशोधित करने पड़े। कहाँ तो उसके दहाई के आंकड़े को छूने की उम्मीद व्यक्त की जा रही थे और कहाँ  नौबत ये आ गयी कि अब 2 और 3 फीसदी रहने को भी बड़ी बात माना जाने लगा। लेकिन आर्घिक मामलों  के जानकार ये भी मान रहे हैं कि जब अमेरिका, फ्रांंस , ब्रिटेन, इटली जैसे देशों की विकास दर नकारात्म्क  होने की स्थिति में जा पहुँची है तब भी यदि भारत का अर्थतन्त्र तेज न सही किन्तु धीमे से भी चलता दिख रहा है तब ये वाकई  बहुत बड़ी बात है। आज जो जानकारी आई है उसके अनुसार गेंहू की बम्पर पैदावार से आने वाले साल में अन्न संकट की आशंका खत्म हो गई है। सरकार द्वारा रबी फसल की खरीदी शुरू किये जाने से भी किसानों की चिंता दूर होने की उम्मीद है। इसके साथ ही विश्व की बड़ी रेटिंग एजेंसियों के अनुमान हालाँकि अलग-अलग हैं लेकिन एक बात पर सभी एकमत हैं कि कोरोना के बाद का समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अनुकल रहेगा। उसका बड़ा कारण देश में मानव संसाधनों की भरपूर उपलब्धता के अलावा निर्यात में होने वाली संभावित वृद्धि होगी। दुनिया के तमाम विकसित देशों की अर्थव्यवस्था जिस बड़े पैमाने पर चौपट हुई है उसके बाद उन्हें संभलने में बड़ा वक्त लगेगा। आर्थिक के साथ ही उनको बहुत ज्यादा जनहानि भी उठाना पड़ी। जबकि जैसी उम्मीद की जा रही है भारत इस मामले में बहुत ही सौभाग्यशाली है। दूसरी बात ये है कि भारत में चूंकि कोरोना संक्रमित लोगों की संख्य का  का अधिकतम आंकड़ा 1 लाख माना जा रहा है तथा मृत्यु  का अनुपात भी बहुत कम है इसलिए यहाँ की जनता में वैसा अवसाद नहीं है जिससे अमेरिका , इतली , ब्रिटेन , फ्रांस आदि गुजर रहे हैं। शुरुवात  में रूस इससे बचा लगता था लेकिन ताजा खबरों के अनुसार अब उसकी स्थिति भी चिंताजनक हो गयी है। भारत को सबसे बाड़ा लाभ  ये मिलेगा कि यहाँ के आम नागरिक की जीवन शैली में मितव्ययता का संस्कार है परिस्थिति के अनुरूप अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर लेना शायद पश्चिम  के समाज लिए सम्भव नहीं है लेकिन भारत के आम परिवारों में ये कला सभी जानते हैं। छुटपुट अपवाद हो सकते हैं लेकिन बीते 21 दिनों का अवलोकन करने के बाद पूरे देश से जैसी जानकारी  मिली उसके अनुसार लोगों का मनोबल ऊंचा है और हर वर्ग नई ऊर्जा से काम करने की  मानसिकता दिखा रहा है। किसी भी देश के  अर्थव्यवस्था में जो आधारभूत जरूरतें होते हैं उनका भारत में अभाव नहीं होना शुभ संकेत हैं। जैसा कहा  जा रहा है उसके अनुसार यूरोप और अमेरिका के कई क्षेत्र कोरोना के कारण पूरी तरह से लडखडा गये हैं। भारत के सेवा क्षेत्र को आगामी महीनों में अकल्पनीय व्यवसाय दुनिया भर से मिलने की आशा निरंतर मजबूत होती जा रही है। इस बारे में उल्लेखनीय है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका से बाहर हो रहे काम को बंद करवाने की जो नीति बनाई थी वह  कोरोना के बाद वाले समय में प्रभावहीन होकर रह जायेगी जिसका सीधा लाभ भारत के हिस्से में आयेगा। इसी तरह अमेरिका और दुसरे विकसित देशों की जो बड़ी कम्पनियां चीन से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में जुट गईं हैं वे भी भारत में अपने लिए संभावनाएं देख रही हैं। भारत की विश्वसनीयता वैश्विक स्तर पर जिस तरह से बढ़ी है उसकी वजह से ऐसा होना मुश्किल नही दिख रहा। यूँ भी भारत का अपना उपभोक्ता बाजार ही इतना विशाल है कि उत्पादकों को कहीं भटकने की जरुरत नहीं पड़ेगी। भारत के पास विदेशी मुद्रा का भंडार अभी भी पर्याप्त है तथा इस दौरान व्यापार असंतुलन भी काफी कुछ दूर हुआ है। अच्छी रबी फसल की वजह से भारत का कृषि क्षेत्र आत्मविश्वास से भरा हुआ है। बिजली पानी की स्थिति भी ठीक है। उससे भी बड़ी और स्वागतयोग्य बात ये है कि भारत का प्रशासनिक ढांचा इस संकट में और ज्यादा सक्षम हुआ है। इक्का-दुक्का घटनाएं अलग कर दें तो अनुशासन के साथ लॉक डाउन का पालन हो रहा है। पूरे देश में नागरिक आपूर्ति की व्यवस्था आम दिनों से भी बेहतर है। रसोई गैस और मुफ्त अनाज मिलने से गरीब तबके को बड़ी राहत मिली। कुल मिलाकर सीमित संसाधनों में भ्रष्ट और निकम्मी समझे  जाने वाले प्रशासनिक तंत्र ने  जिस दायित्वबोध का परिचय इस दौरान दिया उसने दुनिया का ध्यान खींचा है और कोरोना बाद के दौर में भारत के लिए अच्छा रिपोर्ट कार्ड तैयार करने का आधार बनेगा। चीन की घटती विश्वसनीयता और कुटिल रवैया पूरी दुनिया की लिए चिढ़ का कारण बनने से भी भारत का भविष्य उजला दिख रहा है। 2020- 21 में तो खैर ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं लेकिन उसके बाद वाला वित्तीय वर्ष जरुर भारत के लिए अच्छी खबरें लेक्रर आयेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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