Monday 13 April 2020

क्योंकि धारावी में लोग नहीं वोट रहते हैं !लोकतंत्र के लिए जरूरी ही हैं तो नेताओं के बंगलों में बसाईं जाएं झुग्गियां....





 
जो भी लोग हवाई जहाज से मुम्बई गये होंगे या वहां से उड़ान भरी होगी  उन्हें  थोड़ी सी ऊंचाई से नीचे का दृश्य देखकर शर्म भी आई होगी और दुःख भी हुआ होगा ।  क्योंकि देश की  व्यवसायिक राजधानी में एशिया की सबसे बड़ी धारावी नामक झोपड़ पट्टी है | इसमें मोटे अनुमान के मुताबिक 8  से 10 लाख आबादी रहती है | भारत में कोरोना वायरस का पदार्पण होते ही उसके सामुदायिक संक्रमण का जो खतरा महसूस किया गया तो इसकी वजह धारावी ही थी | 

और अब जबकि  मुम्बई में देश के सबसे ज्यादा कोरोना मरीज हो गये और जिसका डर था वही हुआ भी,  धारावी में संक्रमण के फैलाव के तौर पर । अब तक वहां अनेक मौतें हो चुकी हैं और सघन जाँच करने पर न जाने आंकड़ा कहाँ पर जाकर रुकेगा |

 इसी के कारण कहा जाने लगा कि मुम्बई भारत का न्यूयार्क बन गया है | सर्वविदित है कि न्यूयार्क अमेरिका की व्यवसायिक राजधानी होने के साथ ही सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है और बहुत पैसे वाला भी | लेकिन मुम्बई की तुलना अमेरिका के इस शहर से की भी गयी तो इसलिए कि वह  भी सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित शहर बन गया है , जहां हजारों लोगों की मौत हो चुकी है | भारत के कुल संक्रमित लोगों से ज्यादा न्यूयार्क में संक्रमित हैं | और इस कारण वहां चिकित्सा सुविधाएँ पूरी तरह चरमरा चुकी हैं |

 अमेरिका के उक्त शहर में संरासंघ का मुख्यालय होने से उसका वैश्विक महत्व भी है | लेकिन कोरोना के सबसे ज्यादा मामलों के कारण मुम्बई की तुलना उससे करना हास्यास्पद है क्योंकि बड़ी आबादी के बावजूद न्यूयार्क में धारावी जैसी बसाहट की कल्पना तक नहीं की जा सकती |

स्मरणीय है डा. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मुम्बई को चीन की व्यवसायिक राजधानी शंघाई बनाने का ऐलान किया था | उन दिनों शंघाई विकास का पैमाना बन गया था | संयोग से उसे भी चीन की व्यवसायिक राजधानी का दर्जा प्राप्त है |

बाद में जब मुम्बई में बरसात का पानी भरने की समस्या उत्पन्न हुई और सड़कों की खस्ता हालत बदनामी का सबब बनने लगी तब शंघाई बनाने का मजाक उड़ने लगा | बरसों बाद एक बार फिर मुम्बई की विश्वस्तरीय शहर से तुलना हुई लेकिन ये गर्व का नहीं शर्म का विषय है | न्यूयार्क से तुलना कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या के आधार पर करना बौद्धिक दिवालियेपन का नमूना मात्र है |

 मुम्बई की तुलना अमेरिका के फिल्म उद्योग के केंद्र हालीवुड से करते हुए उसे बालीवुड भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय फिल्मों का ये सबसे बड़ा केंद्र है | इसे मायानगरी भी कहते हैं | देश के अधिकतर धनकुबेर इसी महानगर में विराजते हैं | सबसे ज्यादा  आयकर भी यही नगर देता है | यहाँ की महानगरपालिका का बजट अनेक छोटे  राज्यों की टक्कर का है |

 आधुनिक सुख सुविधाओं के मामले में भी मुम्बई का कोई जवाब नहीं | लेकिन इस महानगर के चौड़े माथे पर धारावी झोपड़ पट्टी किसी  कलंक  से कम नहीं है | इसके चित्र देखकर ही दिमाग घूम जायेगा कि लोग यहाँ रहते किस तरह हैं ? 

कहने को ये झोपड़ पट्टी है लेकिन यहाँ आप टीवी की छतरियां गिन नहीं सकेंगे | यहाँ रहने वाले सभी लोग गरीब नहीं हैं | कुछ तो 50 - 50 झोपड़ों के मालिक तक हैं और हर महीने उन्हें हजारों रूपये किराये के तौर पर मिलते हैं | कुछ जगह आपको कारें भी मिल जाएँ तो अचम्भा नहीं करना चाहिए |

 लेकिन यहाँ का जीवन किसी नर्क से कम नहीं है | कभी - कभी तो लगता है यहाँ रह रहे लोगों की ज़िन्दगी कीड़ों -  मकोड़ों से कम नहीं है | ये लोग यहाँ क्यों रहते हैं इसका जवाब सभी को पता है | लेकिन ये समूची झोपड़ पट्टी अचानक तो बनी नहीं | 

दशक दर दशक बीतते गये , मुम्बई का विकास और विस्तार भी होता गया लेकिन चरों तरफ गगन चुम्बी अट्टालिकाएं तन  जाने के बाद भी इन झोपड़ों की स्थिति में बदलाव नहीं आया | कई आलीशान होटलों की खिड़कियों से धारावी का नजारा दिखाई दे जाता है | मुम्बई में घरेलू कर्मचारियों की जरूरत भी यहीं से पूरी होती है तो मजदूरों की भी | और तो और अपराधी सरगनाओं की फ़ौज के सदस्य भी इन्हीं   झोपड़ों के वासी होते हैं | फरारी काटने वालों के लिए भी ये सुरक्षित स्थान है |

 लेकिन मुम्बई सरीखी जगह जहाँ जमीन के दाम आसमान छूते हों तब इन झोपड़ों के अवैध कब्जे हटाने के लिए किसी सरकार ने कोशिश क्यों नहीं की ? यहाँ तक कि स्व. बाल,ठाकरे जैसा दबंग नेता तक शिवसेना की राज्य सरकार और मुम्बई महानगरपालिका होते हुए भी धारावी खाली करवाने के बारे में नहीं सोच सका |

 इसका स्पष्ट कारण है धारावी के वे लाखों निवासी जो मतदाता भी हैं और राजनीति का व्यवसाय करने वाले इतनी बड़ी पूंजी को गंवाना नहीं चाहते | वरना क्या कारण हो सकता है कि समुद्र को पूर कर नवी मुम्बई बसाने जैसा कठिन काम करने वाले योजनाकारों ने कभी मुम्बई के दामन पर लगे इस बदनुमा धब्बे को साफ़ करने का विचार ही नहीं किया |

 और आज यही धारावी मुम्बई की श्वास नलिका को अवरुद्ध करने का कारण बनी जा रही है | महाराष्ट्र के कुल कोरोना संक्रमितों में से आधे से ज्यादा इसी महानगर के हैं | सबसे ज्यादा मौतें भी इसी के हिस्से में आईं | आगे क्या होगा ये कोई नहीं जानता लेकिन मुम्बई में रहने वाले छोटे - बड़े सभी के लिये धारावी एक दहशत का कारण बन गयी है | 

हालांकि दावा यही है कि वहां सामुदायिक संक्रमण के हालात अभी तक नहीं बने हैं तथा बड़े पैमाने पर जांच करते हुए स्थिति को काबू में कर लिया जावेगा लेकिन खुदा न खास्ता कहीं ये दावे गलत निकले तो जो होगा उसके बाद की स्थिति भयावह से भी भयानक हो सकती है |

 लेकिन देश में अकेली धारावी तो नहीं है | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की हालत भी कौन सी अच्छी है ? उप्र , बिहार , उत्तराखंड , झारखंड , राजस्थान , हरियाणा जैसे राज्यों के अनुमानित 40 से 50 लाख लोग दिल्ली की झुग्गियों में रहते हैं | चुनावी राजनीति ने इन अवैध कब्ज़ाधारियों को मुफ्त बिजली , पानी , इलाज जैसी सुविधाएं देकर अपनी सत्ता तो मजबूत कर लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में इस तरह की आवसीय दुर्दशा क्या डूब मरने लायक हालात नहीं हैं | मुम्बई की तरह इन झुग्गियों से ही दिल्ली की अनेक जरूरतें पूरी होती हैं लेकिन साथ ही ये अनेक समस्याओं का कारण भी बन जाती हैं | कमोबेश महानगर का ख़िताब प्राप्त बाकी शहर भी इसी कलंक को ढो रहे हैं |

 अब महानगरों से बाहर आयें तो झुग्गी झोपड़ी बनाकर सरकारी जमीन पर कब्जे  हर शहर में देखने मिल जाते हैं | यदि शासन - प्रशासन इन्हें हटवाने की कोशिश करते हैं तब नेता गिरी बाधा बन जाती है | वोटों की लालच में पार्षद , विधायक और सांसद इन अवैध बस्तियों में बिजली , सड़क और पानी की व्यवस्था करवा देते हैं | यदि न्यायालय के सख्त आदेश के बाद कहीं की अवैध बस्ती हटाई जाती है तो वहां के रहवासियों को दूसरी सरकारी जगह पर बसाया जाता है |

गरीबों को सहारा देना किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है लेकिन झुग्गी - झोपड़ियों में उनकी उम्र कट जाए ये विकास का कौन सा मॉडल है ? यदि शहरों का नियोजन करने वाला तंत्र और उसे नियंत्रित - निर्देशित करने वाले नेता वाकई विकास चाहते तब नगर और महानगर इस समस्या से जूझ नहीं रहे होते |

प्रश्न उठ सकता है कि कोरोना जैसे संकट के समय इस तरह की बात छेड़ने का क्या औचित्य है ? लेकिन जिस तरह  कोरोना से बचाव के तरीके भी उसके हमले के बाद खोजे जा रहे हैं , ठीक वैसे ही हमारे देश को अब झोपड़ पट्टी नामक कलंक को मिटाने की तरफ गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए |  

लॉक डाउन करने के दो - तीन बाद ही दिल्ली से प्रवासी मजदूरों के थोक में पलायन से जो विकट स्थिति उत्पन्न हुई उससे कोरोना के सामुदायिक संक्रमण के साथ ही अनेक राज्यों तक फ़ैल जाने का भय पैदा हो गया | तकरीबन हर राज्य इस कटु अनुभव से गुजर रहा है | मुस्लिम बस्तियों की बेतरतीब बसाहट के कारण वहां से भी बड़ी संख्या में संक्रमित लोग निकल रहे हैं |

 लेकिन कोई नेता और  अधिकारी खुलकर ये स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पा रहा है कि ये अवैध बस्तियां ऐसी महामारी के फैलने की लिए सबसे अनुकूल जगह हैं | मोदी सरकार ने आवास योजना के तहत बना  हुआ मकान देने और घर बनाने के  लिए ढाई लाख रूपये देकर बड़ी मात्रा में जनसमर्थन प्राप्त किया लेकिन अभी भी  झुग्गी  - झोपड़ियों के पूरी तरह खात्मे की हिम्मत कोई नहीं दिखा रहा | 

कोरोना संकट के बाद भारत को अपने आप में अनेक बदलाव लाने होंगे औऱ शहरों की बसाहट को भी नये सिरे से नियोजित करना पड़ेगा | किसी गरीब को बेघर कर देना तो अमानवीय है लेकिन सोचने वाली बात ये है कि चन्द्रमा के धरातल को छूने के लिए प्रयासरत हमारे देश में धारावी जैसी बस्ती भी है और वह भी देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई के बीचों - बीच |

इन्हें हटाना आसान नहीं होगा लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता तो फिर ये मानकर चलने में कोई बुराई नहीं है कि हम मौत की इन नर्सरियों को प्रेरित और प्रोत्साहित कर रहे हैं | 

समय आ गया है जब देश के व्यापक हितों की खातिर हमें कड़े से कड़े निर्णय लेने का साहस अपने में पैदा करना होगा | राष्ट्रव्यापी लॉक डाउन जैसा कठिन निर्णय लेकर उसे सफलतापूर्वक लागू करवाना आसान नहीं था | इससे सबित हो गया कि वोटों का लालच त्यागकर ही ऐसे फैसले किये जा सकते हैं , जिनसे देश का लाभ होता हो |

भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर झोपड़ पट्टी और झुग्गी झोपड़ी जैसे धब्बे स्थायी रूप से साफ करने की जरूरत है | कोरोना से बचने के बाद भी इस बात की सतर्कता बरतनी होगी कि भविष्य में आने वाली किसी भी महामारी में भारत सामुदायिक संक्रमण से बचा रह सके जिसके लिए अपने नगरों को झुग्गी विहीन बनाना होगा |

 बड़ी बात नहीं यदि मुम्बई से धारावी हटा दी जावे तो अनेक देश बजाय न्यूयार्क और शंघाई के मुम्बई को बतौर मॉडल अपनाने लगेंगे |

आइये , हम सब अपने  - अपने  इष्ट देव से प्रार्थना करें कि वे सबसे पहले तो मुम्बई - दिल्ली को सामुदायिक संक्रमण से बचा लें और साथ ही नेताओं को ये सद्बुद्धि दें कि हमारे शहरों का सत्यनाश करने वाले इन कलंकों का  धोने का साहस दिखाएँ | 

और यदि झोपड़ पट्टी और झुग्गियों की बस्ती लोकतंत्र के  लिए बेहद जरूरी हैं तब मुम्बई के जुहू , मालाबार हिल , बांद्रा और नई दिल्ली में सांसदों और मंत्रियों के बंगलों के बगीचों में भी झोपड़ियां बनवा दी जाएं |

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