गत रात्रि 7 वर्षीय मेरे नाती दिव्यांश से फोन पर बात हुई | घड़ी 11 बजा रही थी | अमूमन वह इस समय तक जागा करता है | लेकिन कल मैंने उससे पूछा क्या कर रहे हो तो बोला सोने जा रहा हूँ | जल्दी सोने का कारण पूछा तो बोला कल सुबह मेरी मैथ्स की क्लास है इसलिए माँ ने कहा जल्दी सो जाओ | मैंने कहा स्कूल तो बंद हैं तब बोला मैम कम्प्यूटर से पढ़ाएंगी | होम वर्क भी देती हैं | दूसरी मैम भी क्लास लेती हैं | होम वर्क माँ चैक करती हैं और मैम को रिपोर्ट दे देती हैं | उसकी बात से मुझे अचम्भा नहीं हुआ | पूरे देश में यही हो रहा है | अब तो कॉलेज और विश्वविद्यालयों में भी ऑन लाइन शिक्षा की व्यवस्था हो रही है | और तो और कोचिंग सेंटर्स ने भी ऑन लाइन क्लास लगाकर अपना व्यवसाय सुरक्षित रखने का प्रबंध कर लिया |
कई दशक पहले तक हिंदी साहित्य सम्मेलन और भारतीय विद्या भवन नामक संस्थान दूर - दराज के उन छात्रों को डिग्री हासिल करने की सुविधा देते थे जो किसी कारणवश नियमित पढ़ नहीं पाते थे | उनके अलावा हाई स्कूल और कालेज स्तर पर प्रायवेट छात्रों को घर बैठे पढ़कर परीक्षा देने की सुविधा थी | कामकाजी छात्र इसका लाभ उठाते थे | बाद में इग्नू नामक संस्था ने भी पत्राचार पाठ्यक्रम के जरिये उच्च शिक्षा का प्रबंध किया | धीरे - धीरे स्मार्ट क्लासेस प्रणाली आई और अब ऑन लाइन पढ़ाई का नया तरीका |
हालाँकि विकसित देशों में ये सब काफी पहले से चल रहा है | लेकिन भारत में कोरोना संकट ने घर बैठे पढ़ाई करवाने का ये तरीका ईजाद किया | शुरू - शुरू में समझा गया कि ये निजी संस्थानों द्वारा फीस वसूलने के लिए किया जा रहा प्रपंच है , जो पूरी न सही लेकिन काफी हद तक सही भी है | लेकिन लॉक डाउन हटने के बाद भी कोरोना का खतरा बने रहने की आशंका से ये संभावना व्यक्त की जा रही है कि एक जुलाई से शुरू होने वाले शैक्षणिक सत्र को एक सितम्बर से प्रारंभ किया जावे |
विवि अनुदान आयोग ने तो उसकी सिफारिश भी कर दी है | स्कूली शिक्षा के लिए भी पाठ्यक्रम में इस तरह का बदलाव किये जाने की खबर है जिससे सत्र देर से शुरू होने पर भी नियत समय में वह पूरा हो सके |
शासन , प्रशासन , व्यापार , प्रबन्धन , बैंकिंग आदि क्षेत्रों में ऑन लाइन , डिजिटल और वीडियो तकनीक का इस्तेमाल अचानक अपरिहार्य हो चला है | प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों से , मुख्यमंत्री जिले में बैठे अधिकारियों से और वे अधिकारी भी अपने मातहतों से निरंतर संपर्क और संवाद कर रहे हैं । लेकिन कोई किसी से व्यक्तिगत नहीं मिल रहा | सामान्यजन भी संचार क्रांति के ज़रिये घर बैठे पूरी दुनिया से अपना जीवंत सम्पर्क कायम रखे हुए हैं |
हालांकि होने तो ये पहले से लगा था लेकिन एक अदृश्य वायरस ने वह कर दिखाया जो सरकार तमाम प्रयासों के बावजूद नहीं करवा सकी | इसे कोरोना क्रांति कहा जाना गलत नहीं होगा | इस संकट से निपटने के बाद भारत में आने वाले बदलाव में सबसे बड़ा यही होने जा रहा है | सरकारी विभागों के अलावा निजी क्षेत्र ने भी कोर्पोरेट मीटिंग वगैरह को बंद करते हुए वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये ही काम करने की तैयारी कर ली है |
काम करते हुए दूर बैठे हुए किसी नामी संस्थान से व्यवसायिक योग्यता बढ़ाने वाले कोर्स करना अब और आसान हो जायेगा | सरकारी विभाग भी अपने अधिकारियों को अध्ययन अवकाश देकर बाहर भेजने की बजाय ऑन लाइन कोर्स पर जोर देंगें |
कुल मिलाकर एक बड़ा बदलाव सामने नजर आ रहा है | उच्च शैक्षणिक योग्यता प्राप्त व्यक्ति विशेष रूप से गृहस्थ महिलाओं के लिए वर्क फ्राम होम का नया क्षेत्र खुल सकता है | विशेषज्ञ के रूप में एक व्यक्ति घर बैठे अनेक संस्थानों को सेवाएं दे सकेगा | स्कूल कालेज में दाखिला लेकर पढ़ने की जगह घर में बैठे - बैठे शिक्षित होने से शिक्षा का औपचारिक स्वरूप बदलकर अब आभासी हो जाएगा | जिसमें न गुरु शिष्य को पहिचानेगा और न ही शिष्य अपनी सफलता पर जाकर गुरुदेव के चरण स्पर्श कर सकेगा |
वैसे भी हम सभी एक ऐसी दुनिया के हिस्से बन चुके हैं जहां हजारों लोग आपस में निरंतर सम्पर्क में रहकर भी एक दूसरे को जानते पहिचानते नहीं हैं | किसी जगह अचानक पास आकर कोई अनजान अभिवादन के साथ पूछता है , आपने मुझे पहिचाना और हम सकुचाते हुए कहते हैं लगता तो है कहीं देखा है लेकिन याद नहीं आ रहा । तब सामने वाला मुस्कुराकर बताता है मैं आपका फेसबुकिया मित्र हूँ |
इस आभासी दुनिया में मित्रता का दायरा और परिभाषा दोनों बदल गए | पहले ज़िन्दगी में दस अच्छे मित्र भी बमुश्किल बनते थे लेकिन अब तो हजारों ऐसे लोगों से मित्रता हो रही है जिनसे जीवन में शायद ही कभी मुलाकात हो |
मुझे याद है 1968 में पिता जी दो माह के लिए विदेश यात्रा पर गये थे | बीच - बीच में उनके पत्र आते रहे जिनसे हालचाल मिलता था | लेकिन उनके भेजे कई पत्र उनके लौटने के भी कुछ दिनों बाद आये | लेकिन अब विदेश पहुंचते ही व्हाट्स एप पर चित्र आना शुरू हो जाते हैं | यद्यपि हमारा देश परिवर्तन को आसानी से स्वीकार नहीं करता किन्तु कम्प्यूटर , मोबाइल और अब डिजिटल तकनीक को उसने जिस तरह अपनाया वह पहले तो आश्चर्य लगता था , लेकिन अब नहीं |
और कोरोना आने के बाद जिस तरह करोड़ों भारतीय घरों में सिमटने मजबूर हुए उसने चाहे - अनचाहे हम सभी को तकनीक का सहारा लेने को मजबूर कर दिया है | लेकिन इससे ये सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि जिसे बचपन से ही तकनीक के सहारे जीने की आदत पड़ गयी, कहीं वह भी मशीन की तरह भावना शून्य न हो जाये |
कोरोना से उत्पन्न स्थितियों में तो ये मजबूरी हो सकती है लेकिन आने वाले समय में शिक्षण संस्थान विद्यालय में आने के दिन घटाते हुए कहीं घर बिठाकर ऑन लाइन शिक्षा को ज्यादा प्राथमिकता देने लगे तो सम्भवतः ये अभिभावकों के साथ ही बच्चों को भी सुविधाजनक महसूस हो और इससे उनका शैक्षणिक विकास भले हो जाए लेकिन सामाजिकता के लिहाज से वे बहुत पीछे हो जायेंगे , जो आगे जाकर उनकी मानसिकता पर विपरीत असर डाले बिना नहीं रहेगा | भारतीय सन्दर्भ में देखें तो बिन गुरु ज्ञान कहां से आवे वाली अवधारणा में शिक्षकों के प्रति जीवन भर कृतज्ञता का भाव संस्कार के रूप में विद्यमान रहता था | लेकिन विद्यार्थी और गुरु के बीच संपर्क और प्रत्यक्ष संवाद ही जब कम होता जायेगा तब गुरु - शिष्य परम्परा को जीवित रखना भी संभव नहीं रहेगा |
इसीलिये जिस नई सामाजिक व्यवस्था के स्थापित होने की चर्चा हर जुबान पर है उसके नकारात्मक पहलुओं का पूर्व विश्लेषण भी तत्काल होना चाहिए | विकसित देश तकनीक के विकास में इतने पागल हुए जा रहे हैं कि बात कम्प्यूटर से रोबोट तक पहुचने के बाद अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता ( Artificial Intelligence ) तक आ गई है | जिसे कम्प्यूटर विज्ञान का चर्मोत्कर्ष कहा जा सकता है | इसके अंतर्गत ऐसे कम्प्यूटर विकसित किये जा रहे हैं जो इन्सान की तरह सोच सकते हैं , आवाज पहिचान सकते हैं , समस्या का समाधान सुझा सकते हैं और सीखने - सिखाने के साथ ही योजना बनाने का काम भी कर सकते हैं |
लेकिन कप्यूटर विज्ञान के धुरंधरों ने ही इस कृत्रिम बुद्धिमत्ता के खतरों से आगाह करना भी शुरू कर दिया है | यहाँ तक कि इसे मानव द्वारा ही मानव सभ्यता के विनाश की तैयारी बताया जा रहा है | भारत जैसे देश में कम्प्यूटर ने ही एक तरफ तो वैश्विक स्तर के विकास से तो हमको जोड़ा लेकिन करोड़ों लोगों से रोजगार भी छीन लिया | गूगल नामक विश्वकोष के सीईओ सुंदर पिचाई के अनुसार तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता आग जैसी है जिस पर काबू पाना तो हमने सीख लिया लेकिन उसके खतरों को कम नहीं किया जा सका | चलती हुई किसी ऑटोमेटिक कार में इंजिन के पास आग लगने से उसका इलेक्ट्रानिक सिस्टम खराब हो जाता है जिससे उसके दरवाजे और खिड़कियों को खोलने वाली प्रणाली भी काम नहीं करती | अनेक ऐसे हादसों में कार में बैठे लोग जलकर मर गये |
आजकल प्रयोगशालाओं में भी कम्प्यूटर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग हो रहा है | या यूँ कहें कि उन्हीं का उपयोग हो रहा है | यदि जरा सी चूक हो गयी तब कोरोना जैसे एक - दो नहीं सैकड़ों विषाणु मानव जाति का विनाश करने पर आमादा हो सकते हैं | पौराणिक प्रसंगों से यदि उदाहरण लें तो शंकर जी द्वारा भस्मासुर को दिए गये वरदान जैसी स्थिति बन सकती है |
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के दो मॉडल्स के बीच का वार्तालाप इस बारे में काफ़ी चर्चित हुआ था | इनमें एक को पुरुष और एक को महिला के तौर पर विकसित किया गया | बातचीत के दौरान पुरुष ने ईश्वर में विश्वास से इंकार करते हुए महिला से कहा कितना अच्छा होता यदि दुनिया में कम लोग होते और ये सुनकर महिला बोली तो सबको नर्क पहुंचा देते हैं |
भले ही सुनने में ये हालीवुड में काल्पनिक पटकथाओं पर बनने वाली फिल्म का दृश्य लगे लेकिन मजाक - मजाक में ये विनाश की जमीन तैयार करने जैसा हो सकता है |
पाठक सोच रहे होंगे कि ये तो विषयान्तर हो गया लेकिन इस चर्चा के माध्यम से मैं ये आगाह करना चाहता हूँ कि कोरोना से बचने के बाद कहीं हम ऐसे आभासी संसार में न भटक जाएं जहाँ विकास की असीम संभावनाएं भावनाओं की लाशों पर खड़ी दिखाई देंगीं |
क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?
मेरे एक परिचित का बेटा कुछ वर्षों से अमेरिका में है | भारतीय मानकों के लिहाज से विवाह योग्य है | भारत आया तो माता - पिता ने कहा बेटा तेरी शादी करना है | कोई लड़की वहां पसंद कर ली हो तो बता दे , वरना हम यहाँ तलाशें । बेटा बोला अभी जल्दी क्या है ? माँ ने कहा तू ही बताता है अमेरिका में घरेलू कर्मचारी नहीं होने से सब काम करना पड़ता है | शादी हो जायेगी तो दो लोग मिलकर सब कर लेंगे | ये सुनकर बेटे ने हंसकर कहा , मैं जाकर एक रोबोट खरीदने वाला हूँ | वह घर का सब काम करवा देता है | उसके लिए शादी की क्या जरूरत ? माँ - बाप सन्न रह गए | भारतीय संस्कारों से जुड़ी मर्यादाओं ने उन्हें आगे कुछ कहने से रोक दिया |
तकनीक हमारे एहसासों पर इस हद तक हावी हो गई है कि सेलेब्रिटी कहलाने वाली अनेक महिलाओं और पुरुषों ने बिना विवाह किये ही किराये की कोख से उत्पन्न संतान के जरिये माँ और पिता बनकर अपने भावनात्मक होने का ढिंढोरा पीटा |
आज जब एक बड़े बदलाव की चर्चा हो रही तब ये देखना जरूरी है सोशल डिस्टेंसिंग कहीं अपने शाब्दिक अर्थ को ही हमारी मनोवृत्ति न बना दे | परिवर्तन सृष्टि का शाश्वत नियम है लेकिन वह हमारे समाज के लिए शुभ हो तभी स्वीकार्य होना चाहिए | यदि उससे हमारा सांस्कृतिक और वैचारिक आधार ही हिल जाए तो फिर उनको अस्वीकार करना ही हितकर होगा | पिछली सदी में परमाणु का विस्फोट करने के बाद बनाये अस्त्र आज अपनी निरर्थकता साबित करते हुए बैठे हैं | काश विनाश की जगह सुखद एहसास देने वाला विकास हो पाता |
आभासी दुनिया में मानवीय सम्वेदनाओं को कहीं कंप्यूटर का बटन डिलीट न कर दे ये चिंता करनी होगी , क्योंकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता बाकी सब कुछ भले कर दे किन्तु हमारी पीड़ा देखकर उसकी आँखें नहीं छलछलायेंगीं |
जिन शिक्षकों ने बचपन में हमारे कान खींचे थे वे कहीं भी मिल जाते हैं तो हाथ उनके चरणों तक चले जाते हैं क्योंकि उनकी बुद्धिमत्ता में कृत्रिमता नहीं आत्मीयता थी |
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