Wednesday 29 April 2020

इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए



इस समय पूरी दुनिया के आर्थिक विशेषज्ञ कोरोना के बाद के परिदृश्य की कल्पना में जुटे हुए हैं। चीन को लेकर कहीं खुलकर तो कहीं दबी जुबान नाराजगी व्यक्त की जा रही है। अमेरिका और उसके समर्थक विकसित देश तो उससे जुर्माना वसूलने तक की बात कर रहे हैं। हालाँकि चीन लगातार ये सफाई दे रहा है कि कोरोना के विश्वव्यापी फैलाव में उसका कोई षडयंत्र नहीं था लेकिन अपने वुहान  नामक शहर में स्थित प्रयोगशाला के निरीक्षण की अनुमति विश्व समुदाय को देने से वह जिस तरह पीछे हट रहा है उसे देखते हुए उसके चारों तरफ संदेह का घेरा और गहरा होता जा रहा है। इसका अंतिम परिणाम क्या होगा ये तो अभी कह पाना कठिन है लेकिन जो सबसे बड़ी बात इस दौरान निकलकर सामने आई वह है चीन का अकेला पड़ जाना। चूंकि रूस भी कोरोना की चपेट में आ चुका है और वहां के हालात भी बाकी यूरोपीय देशों जैसे ही हैं इसलिए वह भी मन ही मन  चीन पर भन्नाया हुआ है।हालांकि वह अमेरिका का  साथ नहीं दे रहा । आज की स्थिति में भले ही चीन अपने को कितना भी निर्दोष साबित करने का प्रयास करे लेकिन कोरोना एक गंभीर आरोप की तरह उससे चिपक गया है जिसे अलग करने में वह फिलहाल तो सफल नहीं हो पा रहा। चूंकि कोरोना ने पूरी दुनिया को भयंकर तबाही की खाई में धकेल दिया है इसलिए चीन को वैश्विक बिरादरी में जो संभावित विरोध झेलना पड़ेगा उसमें उसके साथ खड़े होने वाले देश कहीं नजर नहीं आ रहे। उत्तर कोरिया तो वैसे ही सबसे कटा हुआ है और उपर से उसके तानाशाह किम जोंग की सेहत को लेकर तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही हैं जिनमें मृत्यु होने तक की बात कही जा रही है। क्यूबा भी बहुत ज्यादा सहायता करने की स्थिति में नहीं होगा, वहीं पाकिस्तान जैसा चीन का पिछ्लग्गू इस समय जिस विपन्नता की स्थिति में है उसमें अतर्राष्ट्रीय बिरादरी में उसकी हैसियत धेले भर की हो गई है। ईरान यद्यपि अमेरिका से जबरदस्त नाराज है लेकिन वह खुद कोरोना का दंश झेलने के बाद हलाकान है ।
 सबसे बड़ी बात ये है कि चीन के तकरीबन सभी नजदीकी पड़ोसी देशों तक में उसे लेकर भय का माहौल है। ऐसे में कोरोना के बाद की वैश्विक राजनीति में चीन पूरी तरह अलग थलग पड़ सकता है । कोरोना उसका पैदा किया हुआ संकट था या नहीं ये कभी स्पष्ट नहीं हो सकेगा लेकिन चीन की छवि पहले से और खराब होती जा रही है। हालांकि कोरोना के काफी पहले से ही अमेरिका और उसके बीच ट्रेड वार चल रहा था। दुनिया में अपना आर्थिक साम्राज्य स्थापित करने के फेर में चीन जिस तेजी से आगे बढ़ रहा था उससे अमेरिका सहित दूसरे विकसित देशों में चिंता थी ही लेकिन वे चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। लेकिन कोरोना ने पूरी वैश्विक व्यवस्था को जिस तरह उलट-पुलट दिया उसके बाद चीन की घेराबंदी आसान हो गई। हालाँकि उसने कोरोना से लड़ने वाले उपकरण और सामग्री की आपूर्ति के जरिये अपनी छवि सुधारने की कोशिश तो की लेकिन उसमें भी वह धूर्तता करने से बाज नहीं आया। कहीं घटिया किस्म के वेंटीलेटर भेज दिए तो कहीं अंडर गारमेंट से बने मास्क। भारत में घटिया टेस्टिंग किट भेजने का मामला ताजा है। ये सब देखते हुए चीन की रही सही विश्वसनीयता भी घटती जा रही है। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस , दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देश खुलकर उसके विरुद्ध आ गये है। कोई उससे आर्थिक क्षति वसूलने की बात कर रहा है तो कोई अपने देश की कंपनियों को चीन से कारोबार समेटने के लिए प्रोत्साहन राशि देने की पेशकश कर रहा है। अमेरिका इस अवसर का लाभ उठाकर चीन को संरासंघ की सुरक्षा परिषद से हटवाने तक की रणनीति बनाने में जुट गया है। क्या होगा ये कोई नहीं जानता लेकिन भारत के लिए ये स्थिति कूटनीतिक के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी बेहद अनुकूल है। वैश्विक स्तर पर हो रहे विश्लेषणों में चीन से निकलने वाले उद्योगों के जिन देशों में जाने की संभावना जताई जा रही हैं उनमें मुख्य रूप से ताईवान, वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्री लंका और भारत हैं । विश्लेषण करने वाले इस बात का भी अध्ययन कर रहे हैं कि कौन सा उद्योग किस देश में जा सकता है। उनका आकलन है कि भारत में सम्भावनाएं सबसे बेहतर हैं क्योंकि कोरोना से लड़ने के मामले में अब तक का भारत का प्रदर्शन 135 करोड़ की विशाल आबादी को देखते हुए काफी बेहतर माना जा रहा है। लॉक डाउन को सफल बनाने में भारत सरकार की सफलता भी वैश्विक स्तर पर प्रशंसित हो रही है। लेकिन चीन से उठने वाली इकाइयों का भारत आना इतना आसान नहीं है क्योंकि ऊपर वर्णित सभी देश अपने-अपने तरीके से उनको आकर्षित करने में जुटे हुए हैं। भारत सरकार के वाणिज्य और विदेश विभाग ने इस बारे में जमीनी तैयारियां शुरू तो कर दी हैं किन्तु कोरोना के बाद की दुनिया में गलाकाट प्रतिस्पर्धा शुरू होगी और चीन से निकलने वाले उद्योग जहां ज्यादा सहूलियतें मिलेंगीं वहां अपना डेरा ले जायेंगे। हालात भारत के अनुकूल हैं। बस प्रयासों की पराकाष्ठा चाहिये। भारत के लिए कोरोना ने एक स्वर्णिम अवसर उत्पन्न किया है। भारत सरकार को चाहिए वह कोरोना संकट से जूझने के साथ ही इस दिशा में भी अपने प्रयास तेज करे क्योंकि ऐसे कामों में देर से हाथ आया अवसर लौट जाता है। कोरोना से अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई करने का यही एकमात्र उपाय है। यदि हम इस कार्य में सफल हो सके तभी 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का जो सपना नरेंद्र मोदी देख रहे हैं वह पूरा हो सकेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment