Friday 24 April 2020

घर सजाने का तसव्वर बाद में ......



केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों का महंगाई भत्ता डेढ़ साल तक नहीं बढ़ाने का फैसला कर लिया। इस पर कर्मचारी संगठनों की प्रतिक्रिया अभी आनी बाकी है। रक्षा सौदे भी लंबित हो गए। सांसदों सहित संवैधानिक पदों पर बैठे महानुभावों के वेतन में तीस फीसदी की कटौती संभवतया इसीलिये पहले ही कर दी गई थी। जिससे किसी को उंगली उठाने का मौका न मिले। सांसदों की क्षेत्र विकास निधि भी दो साल के लिए बंद की जा चुकी है। सरकारी खर्च में बड़े पैमाने पर कमी किये जाने की खबर है। विकास कार्य भी इससे प्रभावित होना तय है। लॉक डाउन की वजह से पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में राजस्व वसूली के लक्ष्य पूरे नहीं हो सके। ये स्थिति केंद्र सरकार से लेकर नगरपालिका तक की है। ऊपर से राहत और कोरोना से बचाव पर पानी की तरह पैसा खर्च हो रहा है। और कब तक होगा ये कहना कठिन है। लॉक डाउन कब तक हटेगा ये अंदाज लगाना मुश्किल है। लेकिन उसके हटने के बाद भी उत्पादन शुरू होने और बाजार में आने में लम्बा समय लगेगा जिससे जीएसटी संग्रहण भी विलम्बित होगा। आर्थिक मंदी चल ही रही थी कि कोरोंना आ धमका। ऐसे में सरकार के पास भारी करारोपण की गुंजाईश भी नहीं है। उलटे मौजूदा करों की दरों को और घटाने का दबाव है। ये भी सही हैं कि कोरोंना के बाद जनजीवन सामान्य होने में लम्बा समय तो लगेगा। साथ ही भावी खतरे की आशंका में हर व्यक्ति अपने खर्चों में कमी करने की मानसिकता से प्रेरित्त होगा जिससे बाजार में सुस्ती बनी रहेगी जो अंतत: सरकार की आय पर बुरा असर डालेगी। पर्यटन, मनोरंजन जैसे व्यय भी घटना तय है। विलासितापूर्ण जीवन शैली पर भी कुछ तो असर पड़ेगा ही। शादी - विवाह में धन के प्रदर्शन की बजाय सादगी पर जोर दिया जायेगा। आमंत्रित अतिथि गण भी बोजन करने से कतराने लगेंगे। सोशल डिस्टेंसिंग एक बड़े वर्ग का स्वभाव बन जाएगा। और भी ऐसा बहुत कुछ होगा जिससे आर्थिक गतिविधियां पुरानी रफ्तार से नहीं दौड़ सकेंगी। कुल मिलाकर निष्कर्ष ये है कि खजाने में करों का प्रवाह धीमा रहने से पहले से ही कड़की में चल रही सरकार का हाथ आगे भी तंग बना रहेगा। इसी के साथ ये बात भी है कि कल्याणकारी योजनाओं पर आवंटन और बढ़ाना होगा। बेरोजगारों की बड़ी संख्या के पुनर्वास के लिए भी सरकारी संसाधन जुटाने पड़ेंगे। ऐसे में ये जरूरी होगा कि सरकार फिजूलखर्ची पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाये। सांसदों-विधायकों, मंत्रियों पर होने वाला खर्च आधा हो। उन्हें मिलने वाली असीमित यात्रा सुविधा पर भी नकेल कसी जाए। शिलान्यास , उद्घाटन और लोकापर्ण जैसे आयोजनों पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए। वीडियो तकनीक से इन आयोजनों में अथितियों की उपस्थिति की प्रथा विकसित की जा सकती है। उदाहरण के लिए लॉक डाउन के कुछ दिन पहले राष्ट्रपति का जबलपुर आने का कार्यक्रम था। महीनों पहले उसकी तैयारियां शुरू कर दी गईं। जिस सभागार में मुख्य आयोजन होना था उसे कायाकल्प के लिए दो महीने पहले बंद करते हुए तकरीबन चालीस लाख रूपये फूंक दिए गये। आयोजन रद्द हो गया और सभागार से होने वाली आय से भी नगर निगम वंचित हुआ सो अलग। बेहतर हो इस तरह के आयोजन पूरी तरह प्रतिबंधित हों। किसी सार्वजनिक सुविधा का लोकार्पण वीआईपी का समय नहीं मिलने के नाम पर रोका न जाए। इसी के साथ सरकारी अधिकारियों से होटल में ठहरने की सुविधा छीनकर सरकारी विश्रामालयों की पात्रता अनिवार्य हो। सरकारी खर्च पर होने वाली मौज मस्ती का आलम ये है कि किसी ख़ास के यहाँ शादी विवाह होने पर पूरी सरकार और उसके बड़े नौकरशाह व्यवहार निभाने किसी शहर में जमा होते हैं। अपनी जेब से खर्च न करना पड़े इसलिए उस दिन वहां कोई सरकारी आयोजन या विभागीय बैठक रख दी जाती है। इस कारण मंत्रियों तथा अफसरों को सरकारी व्यवस्था का लाभ मुफ्त में मिल जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर भी कोर्पोरेट की नकल करने का जो भूत बीते दो तीन दशकों में सवार हुआ उसे भी उतारने का वक्त आ गया है। ऐसे समय में जब सरकार पूरी तरह से दबाव में है तब ये कर्मचरियों ही नहीं हर किसी का दायित्व है कि वह अपने जीवन में मितव्ययता को महत्व दे। जहां तक बात वेतन और महंगाई भत्ते में कटौती की है तो निजी क्षेत्र में तो उसकी शुरुवात हो ही चुकी है। देश पर जो अभूतपूर्व संकट आया है उससे निपटने के लिए जो लोग सुविधापूर्ण स्थिति में हैं उन्हें आगे बढकर त्याग करना चाहिए। सरकार को चाहिए वह गैस सब्सिडी की तरह ही उच्च आय वाले वेतन भोगी वर्ग से अपील करे कि वे स्वेछा से अपने वेतन का एक हिस्सा राहत कोष हेतु प्रदान किया करे.। इससे उनमें दायित्व बोध जागेगा और समाज में भी सकारात्मक संकेत प्रसारित होगा। लॉक डाउन के दौरान पुलिस और प्रशासन ने जिस सेवाभाव का उदाहरण पेश किया उससे उम्मीद बंधी है। सरकार की तरफ से आह्वान हो तो बड़ी संख्या में लोग अपने लाभ में से कुछ न कुछ इस महामारी से लडऩे के लिए अवश्य देंगे। अतीत गवाह है कि नेतृत्व की नीति और नीयत साफ हो तो देशवासी भी पीछे नहीं रहते। उस दृष्टि से सौभाग्यवश मौजूदा समीकरण काफी अनुकूल हैं।
किसी शायर की ये पंक्तियाँ आज बेहद सटीक हैं :-
घर सजाने का तसव्वर बाद में, 
पहले सोचें कि घर बचाएं कैसे ?

- रवीन्द्र वाजपेयी

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