Friday 3 April 2020

ये जाहिलपन इंसानियत पर हमला है



गत दिवस अनेक स्थानों से चिकित्सकों, नर्सों एवं कोरोना वायरस के प्रकोप से लड़ रहे शासकीय अमले के साथ मारपीट , दुव्र्यवहार की जो खबरें आईं उनको सुनने के बाद ये लगा कि इंसान की शक्ल में भेडिय़ा वाली उक्ति  ऐसे ही लोगों के लिए बनाई गई होगी। इंदौर की  एक बस्ती में जाँच हेतु गये दल पर पथराव किया गया जिससे उसे जान बचाकर भागना पड़ा। उल्लेखनीय है इंदौर मप्र में कोरोना का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है सबसे ज्यादा मौतें भी वहीं हो रही हैं तथा नये संक्रमित सामने आ रहे हैं। शासन के कड़े रुख के बाद हमलावर पकड़े गए और उनके विरुद्ध रासुका के अंतर्गत कार्रवाई होने की बात कही गई है जो पूरी तरह जायज है। ऐसा ही दिल्ली में भी सुनाई दिया। वहां तबलीगी जमात के मुख्यालय मरकज से निकाले गये जिन जमातियों को क्वारंटाइन में रखा गया वे नियमों का उल्लंघन करने पर आमादा हैं। बजाय एक दुसरे  से दूर रहने के सामूहिक नमाज पढ़ रहे हैं। यही नहीं चिकित्सकों को जांच नहीं करने दे रहे और कह रहे हैं उन्हें कुछ नहीं है और  होगा भी तो अपने आप ठीक हो जायेंगे। गाजिय़ाबाद से खबर मिली कि जमात के जो लोग क्वारंटाइन हैं वे नग्नावस्था में घूमते हुए  ड्यूटी कर  रही नर्सों को अश्लील इशारे कर रहे हैं।  बीड़ी-सिगरेट की मांग  भी उनने  रखी। उनके आपत्तिजनक आचरण के विरुद्ध वहां के जिलाधिकारी ने लिखित शिकायत की। दिल्ली में तो नमाजियों के उत्पात को रोकने चिकित्सा स्टाफ  के साथ पुलिस तैनात करनी पड़ी। सिकंदराबाद में क्वारंटाइन किये अनेक जमातियों ने मनपसंद भोजन नहीं मिलने की शिकायत करते हुए हंगामा मचाया। बिहार , उप्र , गुजरात सहित अनेक राज्यों से भी कोरोना मरीजों की जांच और सेवा में लगे लोगों पर हमले , दुव्र्यहार और इलाज से इनकार की खबरें लगातार आने से पूरा देश चिंतित हो उठा। इस बीच निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मुख्यालय के मौलाना साद  का एक आडियो सन्देश प्रसारित हुआ जो उनके पूर्व में दिए उस भाषण के एकदम  विपरीत था जिसमें वे अपने अनुयायियों को दूर रहने की बजाय मस्जिद में पास-पास रहने की हिदायत देते हुए कोरोना से बचाव के तरीकों को इस्लाम के विरुद्ध साजिश बताकर कह रहे थे कि मरना ही है  तो मस्जिद में आकर मरो जो इसके लिए सबसे अच्छी जगह है। लेकिन अब वही मौलाना अपने ताजे बयान में सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने खुद को क्वारंटाइन किया हुआ है। साथ ही ये अपील भी कर डाली कि कोरोना संबंधी सरकार की सलाह को मानकर सोशल डिस्टेसिंग का पालन करें। ऐसा लगता है सरकार द्वारा कसे गए शिकंजे के बाद जेल जाने के भय से वे पलटी मार गये लेकिन इसके पहले के अपने रवैये से उन्होंने  कोरोना के विरुद्ध लड़ाई को कितना नुकसान पहुंचाया ये किसी से छिपा नहीं है। उनके अडिय़ल रुख की वजह से ही देश भर में उनके अनुयायी अमानवीय व्यवहार करने लग गए। यही नहीं मुस्लिम समुदाय के बाकी तबके भी कोरोना के विरुद्ध चल रही लड़ाई को उनकी धार्मिक आस्था के विरुद्ध मानकर असहयोग पर उतारू हो गए। ये तो ठीक है कि देश भर में उन हरकतों की घोर निंदा हुई लेकिन इस वजह से अच्छा भला सामाजिक वातावारण भी  खराब हो गया। ऊपर से सुप्रसिद्ध शायर मुनव्वर राणा ने कोरोना को मुसलमान बनाये जाने जैसा तंज कसकर आग में घी डालने जैसा काम कर दिया। ये समय है जब मुस्लिम समुदाय के शिक्षित  और सुलझे हुए लोग सामज का नेतृत्व करने आगे आयें। धर्मगुरुओं के निर्देश यदि केवल धर्म पालन तक सीमित रहें  तब तो ठीक लेकिन वे यदि देश और मानवता के विरुद्ध हों तो उनका प्रतिकार बुद्धिजीवियों को करना चाहिए। संकट के समय ही समाज सुधार की प्रक्रिया जन्म लेती  है और भारत के मुस्लिम समाज के लिए भी ये सुनहरा अवसर है। लेकिन इसकी बागडोर बुद्धिजीवियों को संभालना पड़ेगी। इस बारे में भारत के मुसलमानों को संयुक्त अरब अमीरात से भी सीखना चाहिए जहां इस्लाम का पालन किये जाने के साथ ही आधुनिक सोच को भी बराबरी से स्वीकार करते हुए विकास की राह पर बढ़कर आधुनिकता और परम्परा का संतुलन बनाए रखा गया। ज्ञान-विज्ञान के रास्ते पर चलते हुए भी धर्म का पालन किया जा सकता है ये बात हर किसी को समझ लेनी चाहिए। कोरोना जैसी महामारी से लडऩे के लिए अंधविश्वास से ऊपर उठकर रचनात्मक और सहयोगात्मक सोच की जरूरत है। गत दिवस प्रधानमन्त्री ने मुख्यमंत्रियों से वीडियो चर्चा के दौरान भी इसीलिये धर्मगुरुओं की मदद लेंने की सलाह दी जिससे मौलाना साद जैसे विध्वंसक मानसिकता वाले तथाकथित धर्मगुरु मानवता विरोधी षडय़ंत्र में सफल न हो सकें। भारत में कोरोना जिस स्थिति में पहुंच गया है वहां से उसे रोकने के लिए पूरे देश के संयुक्त प्रयास जरूरी हैं। यदि कोई एक समुदाय या धर्मगुरु उन कोशिशों को बेअसर करने की कोशिश करता है तो उससे अब तक की गयी तमाम कोशिशों पर पानी फिर जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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