Tuesday 7 April 2020

देश को अराजकता में धकेलने की साजिश गृहयुद्ध की आशंका फैला रही रुदाली गैंग - आलेख : रवीन्द्र वाजपेयी



 
आज जब देश एक असाधारण संकट में फंसा हुआ है और कोरोना नामक महामारी का प्रकोप चंद शातिर षड्यंत्रकारियों की वजह से अचानक देशव्यापी होने के साथ ही दोगुनी रफ्तार से बढ़ने लगा तब जरुरत है लोगों को हिम्मत और हौसला देने की क्योंकि इस अदृश्य दुश्मन से लड़ना उतना आसान नहीं जितना समझा गया था | 

बीते  तकरीबन दो सप्ताह से पूरा देश घरों में सीमित है | बहुत ही जरूरी होने पर बाहर जाने की अनुमति है और वह भी बहुत ही कम समय के लिए | पहले ये समझा जा रहा था कि 14 अप्रैल  तक कोरोना की श्रृंखला  को तोड़कर उससे आजादी हासिल कर ली जावेगी किन्तु बीते  एक सप्ताह के भीतर दिल्ली स्थित तबलीगी जमात के मुख्यालय मरकज से निकले जमाती कोरोना के संवाहक बन गये और आज पूरे पूरे देश में कुल संक्रमित लोगों में से तकरीबन 40 फीसदी लोग मरकज से  निकले हुए हैं | गत दिवस तमिलनाडू में जो 50 नए संक्रमित निकले उनमें 48 जमात से हैं | इसी तरह उप्र में 28 में 21 नए कोरोना  ग्रसित मरकज से वापिस आये थे |

 ये सब देखते हुए 14 अप्रैल से लॉक  डाउन हटाने को लेकर संशय की  स्थिति बन गयी है | अनेक राज्य इसे धीरे  - धीरे हटाने की प्रक्रिया पर विचार करने लगे हैं | उनका मानना है कि आखिर कब तक ये स्थिति बनाकर रखी जायेगी | अभी तक तो जनता ने धैर्य दिखाया लेकिन आगे क्या होगा ये सोचना मुश्किल है | सबसे बड़ी दिक्कत दिहाड़ी मजदूरों और रोज कमाने , रोज खाने वाले छोटे कारोबारी की है | इसके विपरीत तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने प्रधानमन्त्री से मांग की है कि लॉक डाउन बढ़ाया जाए | उनका कहना  है अर्थव्यवस्था तो बाद में भी सुधारी  जा सकती है लेकिन लोगों की जान वापिस नहीं लाई जा सकती |

 
अनिश्चय के इस माहौल में ये आवश्यक है कि जनता का हौसला बनाये रखा जावे और इसीलिये गत रविवार को प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरे देश में सामूहिक प्रकाशोत्सव जैसा आयोजन हुआ | केंद्र  और राज्यों की सरकारें बिना किसी राजनीतिक मतभेद के कोरोना से लड़ने में जुटी हैं | समाज  भी पूरी  संवेदनशीलता के साथ अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है | दैनिक जीवन में अकल्पनीय परेशानियों के बाद भी  हर वर्ग अपने जिम्मेदार नागरिक  होने का परिचय दे रहा है |

 लेकिन इस माहौल के बीच एक तबका ऐसा है जो बजाय लोगों को प्रोत्साहित करने के  भय और आशंकाओं का प्रसार करने के काम में लगा है | संचार माध्यमों के जरिये  इस तरह की सामग्री प्रसारित की जा रही है  जिससे लोगों में घबराहट फ़ैल जाए और वे आपा खो बैठें |

लॉक डाउन के बावजूद कोरोना ग्रसित लोगों की संख्या में वृद्धि से पता चलता है कि कुछ गड़बड़ है | चंद लोगों की बेवकूफी और असहयोग के कारण वातावरण भी बिगड़ने लगा है |

 इस स्थिति में एक वर्ग विशेष को जनता की शांतिप्रियता और अनुशासन लगता है रास नहीं आ रहा और इसीलिये वह निराशावाद के प्रसार के माध्यम से लोगों को भड़काने का तानाबाना बुनने के अपने परंपरागत कार्य में  लग गया है | 

एक तरफ तो भारत जिस बहादुरी और धीरज के साथ इस महामारी से देशवासियों को बचाने के प्रयास कर रहा है , पूरी दुनिया उसकी तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देख रही है | विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो यहाँ तक कहा कि कोरोना को  अब भारत ही परास्त कर  सकता है | आलम ये है कि अमेरिका के राष्ट्रपति भारत से दवाइयां भेजने की अपील कर रहे हैं | ईरान को तो भारत ने एक टेस्टिंग लैब बनाकर ही उपहार में भेज दी |

 इसी के साथ भारत उन चुनिन्दा देशों में है जिसने कोरोना के जन्म स्थान चीन के वुहान में फंसे भारतीयों को तब निकाला जब वहां कदम - कदम पर मौत मंडरा रही थी | इसी तरह ईरान और इटली जैसे देशों में कोरोना का जबर्दस्त प्रकोप होने के बाद भी वहां मुसीबत में फंसे भारतीयों को हमारे विमान वापिस लाये | जबकि पाकिस्तान ने चीन में फंसे अपने लोगों की सुध तक नहीं ली |

 भारत में कोरोना की चिकित्सा और जांच के पर्याप्त साधन नहीं  होने के बाद भी आपदा प्रबन्धन का हर सम्भव प्रयास किया गया और कोरोना की रोकथाम के साथ संक्रमित लोगों के समुचित इलाज का इंतजाम करते हुए मृत्यु दर को काबू में रखने में कामयाबी भी मिली |

 135  करोड़ की आबादी को चंद घंटे की अल्प सूचना पर तीन सप्ताह के लिए लॉक डाउन कर  देना आसान नहीं था | लेकिन प्रधानमन्त्री ने इतना बड़ा निर्णय करने के तीन  दिन पहले 22 अप्रैल  को जनता कर्फ्यू जैसा प्रयोगात्मक कदम उठाकर लोगों  की मानसिकता का पता किया और जब वे आश्वस्त हो गये कि जनता देश पर आये इस संकट से लड़ने में उनके साथ है तब उनने  बड़ा फैसला किया | अचानक घरों में सिमटकर रह जाने के निर्देश का  प्रारंभिक अफरातफरी के बाद लोगों ने पूरी तरह से पालन किया और इससे कोरोना से लड़ने के लिए बनाई गई टीम का मनोबल बढ़ा और उनका काम  भी आसान हुआ |

 जरूरी चीजों की आपूर्ति बनी रहने से जनता को काफी राहत मिली | गरीबों  को भोजन , तीन महीने के राशन के अलावा अतिरिक्त कोटा , तीन  महीने तक प्रतिमाह एक रसोई गैस सिलेंडर के अलावा बैंक खातों  में सीधे नगद राशि ट्रांसफर  किये जाने जैसे कदमों से जनता की  तकलीफें दूर करने का प्रयास भी तेजी से किया गया जिसका अनुकूल परिणाम भी मिला |

 सरकार लगातार ये आश्वासन देती जा रही है कि वह जल्द ही देश को इस महामारी से उबारकर पहले जैसी  स्थिति कायम करने में सफल होगी बशर्ते जनता लॉक डाउन के अंतर्गत लगाई गयी पाबंदियों का सही तरीके से पालन करते हुए कोरोना  को फैलने से रोके | सरकार क्या पूरी तरह सफल रही और उसके  द्वारा किये गये प्रयास लोगों की परेशानियां दूर करने में सहायक बने ये समीक्षा  का विषय है लेकिन उसके लिए ये सही समय नहीं है | 

आज आवश्यकता है उन जांबाज लोगों का साहस बढ़ाने और सहयोग करने की जो अपनी जान जोखिम में डालकर भी कोरोना को हराने के काम में  दिन - रात जुटे  हुए हैं |

 लेकिन इससे अलग कुछ लोग नकारात्मक खबरें फैलाकर समाज का मनोबल तोड़ने के गंदे खेल में लग गये हैं | उन्होंने ये प्रचारित करना शुरू कर दिया है कि कोरोना संकट खत्म होते ही देश में बड़े पैमाने पर नौकरियां छिन जायेंगी , जो श्रमिक लौटकर गाँव गए हैं उन्हें दोबारा शहरों में रहना और खाना दूभर हो जायेगा | भुखमरी फैलेगी जिससे वर्ग संघर्ष बढ़ेगा और तो और दो सम्प्रदायों के झगड़े की वजह से गृहयुद्ध की स्थिति तक बन सकती है |

 इस दुष्प्रचार के पीछे वही लोग हैं जो बीते छह बरस से मुख्य धारा से निकलकर बाहर हो गए और जिनकी प्रासंगिकता अब नाममात्र की रह गई है | ये लोग हर उस कोशिश को पलीता लगाने की कूटरचना करते हैं जिससे भारत मजबूत हो सके | एक तरफ जहां विश्व की प्रमुख वित्तीय संस्थाए कोरोना के बाद के दौर को भारत का दौर बताने की भविष्यवाणी कर रही  हैं वही ये तबका समाज में नैराश्य फ़ैलाने से बाज नहीं आ रहा |

 पुरानी  बात नहीं है जब केंद्र  सरकार ने जम्मू कश्मीर में भारत विरोधी तत्वों की संरक्षक बनी हुई धारा 370 को एक झटके में हटाने का साहस दिखाते हुए  कश्मीर घाटी में अलगाववाद की जड़ें खोदकर फेंकने का ऐतिहासिक फैसला किया तब यही वर्ग रुदाली गैंग बनकर पूरे देश में छाती  पीटता फिरा | यहां तक कि विदेशों तक में देश हित के विरूद्ध माहौल बनाने जैसा घिनौना कार्य  किया | 

उस समय भी ये लोग यही प्रचारित करते रहे कि जैसे ही वहां कर्फ्यू हटेगा और संचार सुविधाएँ बहाल होगीं त्योंहीं जनता केंद्र के विरुद्ध सड़कों पर उतर आयेगी | लेकिन उनका वह आशावाद मिथ्या साबित हुआ  |

 कोरोना संकट की वजह से घरों में रहने को मजबूर लोगों की मदद  करने या उनका हौसला बढ़ाने की बजाय आने वाले दिनों में अराजक हालात पैदा होने का भय पैदा कर उन्हें भड़काने का पाप ये गिरोह कर  रहा है |

 हालांकि इसकी आवाज और असर अब सीमित रह गए हैं और  जनता इनके घ्रणित इरादे समझकर जिम्मेदार हाथों में बागडोर दे चुकी है लेकिन जहर की खेती करने वाले इन कुंठाग्रस्त विघ्नसंतोषियों के इरादों का पर्दाफाश जरूरी हैं | संकट की घड़ी में जब देश का साधारण व्यक्ति तक इस विपदा से लड़ने में सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है तब मंथरा के ये कलियुगी अवतार अपनी अपशकुनी सोच का परिचय देने से बाज नहीं आ रहे |

 ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि कोरोना से चल रही लड़ाई को नुक्सान पहुँचाने में लगे ये लोग किसी ऐसी विदेशी ताकत की कठपुतली हैं जो इस अवसर का फायदा उठाकर अव्यवस्था और अराजकता फ़ैलाने पर आमादा हैं |

 ऐसे लोगों के दुष्प्रचार के पीछे के मकसद को समझना हर जिम्मेदार देशवासी के लिए जरूरी है | कोरोना के साथ देश को कमजोर करने वाली इन ताकतों से भी लड़ना होगा जिनका उद्देश्य येन केन प्रकारेण भारत में गृह युद्ध की स्थितियां उत्पन्न कर  देना है |   कोरोना जिस देश से आया वह भारत में बैठे अपने मानसपुत्रों के जरिये जो चक्रव्यूह रच रहा है उसे बनने के पहले ही ध्वस्त करना जरूरी है ।

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